शुक्रवार, 25 जुलाई 2014

कितने रंग तुम्हारे !


बादल भैया ,
अजब-गजब के हैं ये ढंग तुम्हारे ।
कितने रूप बदलते पल में ,
कितने रंग तुम्हारे ।

 कुल्फी, सॉफ्टी,आइसक्रीम 
तो कभी केक लगते हो 
कभी बाल गुड़िया जैसे ही 
बड़े 'फेक 'लगते हो ।


कभी हिरण ,खरगोश
कभी काले सफेद गुब्बारे ।
कभी भेड--बकरी जैसे ही 
चलते बना कतारें ।
जंगल बाग पहाड़ 
कभी तो महल-दुमहले न्यारे ।। 

भालू बन्दर शेर कभी
लगते हाथी के बच्चे 
या बरखा रानी के हो तुम 
मटके काले कच्चे ।
छूने से ही फूट पड़ें 
फिर छूट पड़ें बौछारें ।।

कभी कपासी और कभी ,
लगते हो तीतरपंखी
कभी सुनहरे लाल कभी 
हो जाते हो नारंगी ।
काजल जैसे भी तो तुम
लगते हो हमको प्यारे ।।