रविवार, 30 मई 2021

यों लगती है प्यास

 

गर्मी रानी ,क्यों लगती है ,

तुमको इतनी प्यास ?

पी जाती हो गटक् गटागट,

दिन भर कई गिलास ।

 

मटके रीते ,रीत चले हैं ,

कूप ,नदी और ताल ।

इन्हें रोज भरते--भरते ,

धरती नानी बेहाल ।

 

कभी चाहिये शरबत तुमको ,

कभी शकंजी ,लस्सी ।

आइसक्रीम तो , अरे बाप रे...,

पूरी..... सत्तर...अस्सी ।

एक न छोड़ी बोतल फ्रिज में,

कोल्ड-ड्रिन्क खल्लास ....

गर्मी रानी क्यों लगती है ,

तुमको इतनी प्यास ।

 

"क्यों लगती है प्यास ?

न पूछो मुझसे छुटकूलाल ।"

कहते--कहते गर्मी जी का ,

चेहरा होगया लाल ।

"सर्दी ने गुड ,गजक ,बाजरा ,

 उड़द मखानी दाल ,

 तिल की टिक्की गरम मँगौड़े,

 परसे भर-भर थाल ।

मैथी के चटपटे पराँठे ,

और कचौरी खस्ता ।

भजिये ,आलू-बड़े ,समोसे,

सब कुछ कितना सस्ता ।

इतना खाया.... ,इतना खाया

पिया गया ना पानी

अब लगती है प्यास ,तभी तो ,...

पानी ,..पानी...,पानी....

और ..और ..बस पानी