tag:blogger.com,1999:blog-8929764135371179724.post1712212055208833822..comments2024-01-27T01:32:55.264-08:00Comments on विहान: पेड किसका है ?गिरिजा कुलश्रेष्ठhttp://www.blogger.com/profile/07420982390025037638noreply@blogger.comBlogger12125tag:blogger.com,1999:blog-8929764135371179724.post-4411228921950042142015-09-06T21:22:50.243-07:002015-09-06T21:22:50.243-07:00प्रिय विकास ,आपने ब्लाग सारी रचनाएं एक साथ पढ़ डाल...प्रिय विकास ,आपने ब्लाग सारी रचनाएं एक साथ पढ़ डालीं हैं ! यह जानकर किसी भी रचनाकार को हर्ष व विस्मय हो सकता है .दरअसल यही सफलता है रचना की . <br />आपने लिखा है कि मैं क्यूँ लिखूँ , यह आपका मेरी रचनाओं के सम्मान में उद्गार है फिर भी ऐसा सोचना ठीक नही क्योंकि सबकी अभिव्यक्ति अलग और विशिष्ट होती है . यकीनन आपके पास अभिव्यक्ति की सशक्त क्षमता है उसे जरूर सार्थकता के साथ उपयोग में लाते रहिये . मेरी रचनाओं के प्रति जो आपका भाव है उसे धन्यवाद कहकर हल्का न करूँगी . आप लिखते और पढ़ते रहिये . हाँ निष्पक्ष आलोचना भी अवश्य क्योंकि एक अच्छे पाठक की राय रचनाकार को कुछ अलग सोचने पर विवश करती है . गिरिजा कुलश्रेष्ठhttps://www.blogger.com/profile/07420982390025037638noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8929764135371179724.post-55503350417953151632015-09-06T11:17:48.944-07:002015-09-06T11:17:48.944-07:00आपने जिस प्रेम और स्नेह के साथ पाटी पर शब्द अंकन क...आपने जिस प्रेम और स्नेह के साथ पाटी पर शब्द अंकन किए हैं उसके प्रतिउत्तर में भी मैं कुछ कह पाने में असमर्थ हूँ और मुझे इस बात के लिए भी माफ कीजिएगा कि दब मैंने कल पूरा विहान देर रात तक सुबह ५ बजे तक पढा तब मैं आपकी कई सारी रचनाओं पे प्रतिक्रिया नहीं कर सका वो बस इसलिए नहीं कर सका कि मैने पढी नहीं वो इसलिए नहीं कर सका कि मैं अबोध बालक इतना असहाय हो गया अापकी कुछ कुछ रचनाओं को पढकर कि बस मौन रह गया आप निश्चन्ति रहिए मैंने पूरा विहान शब्द २ पढा है और यकीन मानिए कि जब भी मैं इतना अच्छा कुछ लिखा पाता हूँ तो हमेशा ही ये ख्याल आता है कि इतना कुछ तो रह गया है पढने को तो फिर मैं लिखूं क्यूँ और तब सच में मैं महीनों कुछ नहीं लिख पाता<br />पेड किसका है के अलावा लगभग सारी कहानियाँ कविताएँ इतनी सुन्दर हैं कि सच में मैं खुद को प्रतिक्रिया देने के लायक नहीं समझता सादर प्रणाम अपना वात्सल्य बनाए रखिएगा विकास कुमारhttps://www.blogger.com/profile/15504866920850217760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8929764135371179724.post-29689746686660195622013-07-31T23:30:10.335-07:002013-07-31T23:30:10.335-07:00मनोहर जी आपको इसमें कुछ नकारात्मक व बुराई भरा लगा ...मनोहर जी आपको इसमें कुछ नकारात्मक व बुराई भरा लगा यह जान कर खेद हुआ ।गिरिजा कुलश्रेष्ठhttps://www.blogger.com/profile/07420982390025037638noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8929764135371179724.post-37021089481590869112013-07-31T23:11:35.741-07:002013-07-31T23:11:35.741-07:00कहाँ पढी होगी आपने यह कहानी । याद करिये । क्योंकि ...कहाँ पढी होगी आपने यह कहानी । याद करिये । क्योंकि अन्तर्जाल पर मैंने केवल यहीं प्रस्तुत की है । हाँ बालभास्कर चकमक तथा एकलव्य के ही कहानी संग्रह मिट्टी की बात में अवश्य आई है और प्रशंसा भी पाई है । यदि किसी ने मेरी जानकारी के बिना कहीं दी है तो वह निश्चित ही ठीक नही है ।गिरिजा कुलश्रेष्ठhttps://www.blogger.com/profile/07420982390025037638noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8929764135371179724.post-5413355842060944762013-07-31T00:27:20.540-07:002013-07-31T00:27:20.540-07:00बहुत बढ़िया कहानी। मुझे लगा जैसे मैने इसे पहले भी ...बहुत बढ़िया कहानी। मुझे लगा जैसे मैने इसे पहले भी पढ़ा है, यहीं अंतर्जाल में कहीं..! देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8929764135371179724.post-31021842023643787902013-07-11T08:44:44.158-07:002013-07-11T08:44:44.158-07:00सुंदर कहानी....सुंदर कहानी....Ankur Jainhttps://www.blogger.com/profile/17611511124042901695noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8929764135371179724.post-42100484012551241252013-07-08T20:36:26.059-07:002013-07-08T20:36:26.059-07:00वाह..
बहुत सुंदर कहानी , बधाई आपको !वाह..<br />बहुत सुंदर कहानी , बधाई आपको !Satish Saxena https://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8929764135371179724.post-78968677610692247962013-06-28T06:05:54.623-07:002013-06-28T06:05:54.623-07:00अच्छी कहानी। हालांकि इसका प्रारम्भ बहुत ही नकारात्...अच्छी कहानी। हालांकि इसका प्रारम्भ बहुत ही नकारात्मक और बुराईयों से भरा हुआ लगता है। लेकिन पढ़ते-पढ़ते सारी बातें समझ में आने लगती है। वैसे यह जरूरी भी नहीं कि हम समाज का आदर्श रूप ही दिखाये। समाज में नकारात्मक और आलोचनात्मक तथा जलन से भरा माहौल तो है ही। फिर अंत भला तो सब भला। हां। वाक्य कहीं कहीं और सरल हो सकते थे। वैसे मैं अच्छी है कह कर आगे निकल जाता लेकिन मुझे लगा कि मुझे अपने मन की बात कहनी ही चाहिए। एक बात और संवादों में तल्खी न भी हो तो भी चरित्र-चित्रण अच्छा-बुरा बन जाता है। फिर शायद-शायद कह रहा हूं कि शायद तब नफरत भरे वाक्य हम पात्रों से क्यों कहलवाये? वैसे रचनाकार का अपना नजरिया अपना होता है। आशा है अन्यथा न लेंगी। सादर,Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/11909480380442669988noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8929764135371179724.post-2960180953078443262013-06-25T08:23:38.594-07:002013-06-25T08:23:38.594-07:00बहुत बढ़िया कहानी...बहुत सुन्दरता से इसका ताना-बाना...बहुत बढ़िया कहानी...बहुत सुन्दरता से इसका ताना-बाना बुनते हुए इसकी रचना की गयी है...बहुत-बहुत बधाई...प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' https://www.blogger.com/profile/03784076664306549913noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8929764135371179724.post-48113774786091655722013-06-21T18:23:24.040-07:002013-06-21T18:23:24.040-07:00बहुत बढ़िया कहानी बहुत बढ़िया कहानी Vandana Ramasinghhttps://www.blogger.com/profile/01400483506434772550noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8929764135371179724.post-68966022450742749652013-06-13T08:36:00.734-07:002013-06-13T08:36:00.734-07:00दीदी,
मज़ा आ गया कहानी को पढकर.. कम से कम इस ब्लॉग ...दीदी,<br />मज़ा आ गया कहानी को पढकर.. कम से कम इस ब्लॉग के कारण वो निधि जो बरसों से बैंक के लॉकर में बंद थी, सूद सहित वापस मिल गयी है.. हमारा बचपन.. बहुत प्यारी कहानी..<br />कहानी का आकर्षण प्रत्येक विवरण के साथ उत्तरोत्तर बढाता ही जाता है और अंत में जिस प्रकार आपने क्लाइमैक्स गढा है, वह होठों पे मुस्कान और ह्रदय में ममता की गुदगुदी छोड़ जाता है. <br />इस कथा के परिप्रेक्ष्य में जब आतंकवाद को देखता हूँ तो लगता है कि वे तो उस चांडाल कौवे से भी गए गुज़रे हैं जिन्हें मासूमों पर भी दया नहीं आती!!<br />आपने तो यह गुनगुनाने पर मजबूर कर दिया है - कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन!!चला बिहारी ब्लॉगर बननेhttps://www.blogger.com/profile/05849469885059634620noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8929764135371179724.post-88161372918572586692013-06-13T08:34:09.494-07:002013-06-13T08:34:09.494-07:00जो जितना नया है जगत में, जिसे जितना अधिक जीना है ज...जो जितना नया है जगत में, जिसे जितना अधिक जीना है जगत में, उसका उतना ही अधिक अधिकार है जगत में। सुन्दर कहानी।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.com