बुधवार, 10 अप्रैल 2013

नींद हुई नौ दो ग्यारह


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बडे सबेरे ,
नीम अँधेरे ।
सपनें की बस्ती में ,
मुन्नू लगा रहे थे फेरे ।
तभी पडी कानों पर दस्तक ---
कुकडूँ..कू...,
चीं..चीं..चूँ...चुक.चुक...।
सोये अब तक !!
छोडो चादर,
देखो बाहर ,
भैया आकर ।
सोया था जो साथ घनेरा ,
मित्र अँधेरा
,गया कभी का उठ कर ।
 दबा नींद के बिस्तर ।
पंछी देखो उडे चहक कर ,
नीले अम्बर ।
कलियाँ मुस्काई हैं खिल कर  
कर आई लो सैर हवा भी,
मीलों चल कर ,
भीनी-भीनी खुशबू लेकर ।
सुना ,
कुनमुनाए मुन्नू जी 
तुनके कुछ गरमाए ।
यह भी कोई बात कि ,
चाहे जो बेवक्त जगाए ?
आँखें मलते बाहर आए ,
जो टकराईं किरणें पहली,
धूप सुनहली ,
मोहक उजली ।
मुन्नू जी थे हक्के-बक्के ,
नींद हुई नौ दो ग्यारह ,
आलस के छूटे छक्के ।

9 टिप्‍पणियां:

  1. सुबह की खटपट जो नींद भागे चटपट ...बहुत सुन्दर रोचक रचना ..

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  2. आपके लेखन यह विस्तार देखकर दंग रह जाता हूँ दीदी.. बिलकुल बच्चों के बीच बच्चों सी कविता!!

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  3. हम अंकुर बाल पत्रिका निकालते हैं। अब यह नियमित निकलेगी। आप जुड़िएगा। जरूर

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  4. बहुत ही रोचक...मजेदार सी...मज़ा आ गया पढ़ के...

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