पोरबन्दर
दो अक्टूबर,
करमचन्द और पुतली के घर
जन्मे थे अभिराम
बापू तुम्हें सलाम ।
दुबला तन
पर ताकतवर मन ,
सत्य ,अहिंसामय था जीवन ।
सुख-साधन आराम,
लिखा सब आजादी के नाम ।
बापू तुम्हें सलाम ।
भारत हो या हो अफ्रीका ,
बहुत दुखा दिल बापू जी का ।
भारत -वासी जीते थे ,
बन कर मजदूर गुलाम ।
बापू तुम्हें सलाम ।
गोरे क्रूर कुटिल अभिमानी ,
याद करादी उनको नानी ।
सत्याग्रह के बल पर,
उनको ,झटके दिये तमाम ।
बापू तुम्हें सलाम ।
नियमों के थे अविकल सच्चे ।
पर अन्तर के कोमल कच्चे ।
दुःखी, दलित ,निबलों विकलों की,
सेवा की अविराम ।
बापू तुम्हें सलाम ।
करुणा का लहराता सागर ,
पूँजी थी बस लकुटी चादर ।
सादा जीवन ऊँचा चिन्तन ,
था आराम हराम ।
बापू तुम्हें सलाम ।
अस्त्र-शस्त्र निर्बल का सम्बल।
मन की शक्ति अपरिमित अविचल ।
पाकर ऐसी शक्ति बनें ,
हम भी अजेय अभिराम ।
बापू तुम्हें सलाम ।
भारत माँ के 'लाल 'बहादुर
उनका भी दिन दो अक्टूबर
सूझ-बूझ नैतिक बल से
जीते सारे संग्राम
उनको मेरा सलाम ।
सत्य एक मात्र सहारा रहा और उसी से सबको सशक्त बनाया।
जवाब देंहटाएंबापू का जीवन चरित समा गया इस कविता में...!!
जवाब देंहटाएंबापू को प्रणाम ..
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