सहमे से बोले अप्पू जी
"पाप जरा बताओ ।
क्या तुम दादी के बेटे हो ?
साफ-साफ समझाओ ।"
"हाँ..हाँ वह मेरी माँ हैं-"-
कहकर पापा मुस्काए ।
"बेशक मैं उनका बेटा हूँ ।"
सुन अप्पू घबराए ।
"और बुआ के भैया भी हो ?
दीपा के भी मामा भी...??"
"हाँ"---बोले पापा तो ,उनका
खिसका पाजामा भी ।
कोई पापा को या ,
पापा अपना कहें किसी को।
नहीं गवारा बिल्कुल-बिल्कुल
अपने अप्पू जी को ।
डाल गले में बाँह ,
ठुनक कर बोले चढा पाजामा
"पापा तुम बस मेरे ही हो ,
बेटा, हो या मामा....।"
"पाप जरा बताओ ।
क्या तुम दादी के बेटे हो ?
साफ-साफ समझाओ ।"
"हाँ..हाँ वह मेरी माँ हैं-"-
कहकर पापा मुस्काए ।
"बेशक मैं उनका बेटा हूँ ।"
सुन अप्पू घबराए ।
"और बुआ के भैया भी हो ?
दीपा के भी मामा भी...??"
"हाँ"---बोले पापा तो ,उनका
खिसका पाजामा भी ।
कोई पापा को या ,
पापा अपना कहें किसी को।
नहीं गवारा बिल्कुल-बिल्कुल
अपने अप्पू जी को ।
डाल गले में बाँह ,
ठुनक कर बोले चढा पाजामा
"पापा तुम बस मेरे ही हो ,
बेटा, हो या मामा....।"
अपनत्व की प्यारी भाषा।
जवाब देंहटाएंprem se juda har rishta anootha hota hai aur anoothi hoti hai harek ke liye iski paribhasha... :)
जवाब देंहटाएंअप्पू जी की बात तो ठीक है :)
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी कविता, बिल्कुल अप्पू जी जैसी। ख़ूब प्यार....
जवाब देंहटाएंबाल सुलभ प्रश्नोत्तरी... "फिर क्या होगा उसके बाद" कविता याद आ गई... झूमा तो बड़े होने तक भी यदि मैं किसी को बिटिया रानी कह दूं तो नाराज़ हो जाती थी... उसके अनुसार बिटिया रानी पर उसका एकाधिकार है!
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी कविता दीदी! यह आपके रचना संसार का विस्तार ही तो है - जो में हमेशा कहता रहता हूँ!