मेरी बकरी
है चितकबरी
पर वह थोडी सी है बहरी।
चाहे कुछ भी उसे सिखालो
वह तो ,मैं....मैं....पर ही ठहरी ।
मेरी बकरी
चटपट चबरी
खाने में पूरी बेसबरी
दिन भर मुँह चलाती रहती
पल-पल पूँछ हिलाती रहती
अचरा-कचरा सब खाजाती
सब्जी -भाजी चना चपाती
छिलका-भूसा चट कर जाती
जहाँ-तहाँ मैंगनी गिराती
मेरी बकरी
बडी गुनहरी
भोली-भाली सीधी-सादी
तीस मेमनों की वह दादी
जब भी चाहो दूध निकालो
बिना मुसीबत इसको पालो
है चितकबरी
पर वह थोडी सी है बहरी।
चाहे कुछ भी उसे सिखालो
वह तो ,मैं....मैं....पर ही ठहरी ।
मेरी बकरी
चटपट चबरी
खाने में पूरी बेसबरी
दिन भर मुँह चलाती रहती
पल-पल पूँछ हिलाती रहती
अचरा-कचरा सब खाजाती
सब्जी -भाजी चना चपाती
छिलका-भूसा चट कर जाती
जहाँ-तहाँ मैंगनी गिराती
मेरी बकरी
बडी गुनहरी
भोली-भाली सीधी-सादी
तीस मेमनों की वह दादी
जब भी चाहो दूध निकालो
बिना मुसीबत इसको पालो
कितनी मासूम रचना - कितने गहरे अर्थ
जवाब देंहटाएंमेरी बकरी
जवाब देंहटाएंबडी गुनहरी
भोली-भाली सीधी-सादी
तीस मेमनों की वह दादी
जब भी चाहो दूध निकालो
बिना मुसीबत इसको पालो.. सुन्दर भाव लिए बढिया रचना... आभार
बहुत सुन्दर कविता। स्वयं शून्य
जवाब देंहटाएंवाह !!
जवाब देंहटाएंमंगलकामनाएं आपको !!