शनिवार, 7 दिसंबर 2024

पतंग--कहानी

 

पतंग

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सूरज मन में पतंगों की जितनी रंगीन और मीठी कल्पनाएं संजोये रहता था , उसके पिता उतनी ही कड़वाहट के साथ पतंग उड़ाने वाले लड़कों की आलोचना किया करते थे | कहते थे कि यह निरे उजड्ड और बैठे-ठाले लोगों का काम है . यही नहीं वे पतंगबाज लड़कों की पढ़ाई का भविष्य निन्यानवे प्रतिशत अंधकार में डूबा हुआ मानते थे .

हमारा सूरज ऐसे फालतू शौक नहीं पालता | उसे अच्छा विद्यार्थी बनना है .”-–वे अक्सर अपने आपसे भी कहते थे और लोगों से भी कहा करते थे | पिता के मुँह से यह सब सुनकर सूरज अपनी पतंग-विषयक इच्छा को दबा देता था | पिता की नजरों में अच्छा बच्चा बनने का दबाब था लेकिन जैसा कि होता है कि किसी इच्छा को दबाओ तो वह और प्रबल होजाती है ,सूरज के मन में पतंग का मोह बढ़ता जा रहा था |

एक दिन आसमान में लहराती एक रंग-बिरंगी पतंग कटकर उसकी छत से लगे बरगद की टहनियों में आकर अटक गई तो उसने जैसे सूरज की इच्छा को बल दे दिया |

पापा मुफ्त में मिली पतंग के लिये तो मना नहीं करेंगे | फिर पापा को बताना क्या जरूरी है |विशू अपने घरवालों से छुपकर मोरपंख ढूँढ़ने जाता है | डम्पी पापा से छुपकर पिल्लों को बिस्किट खिलाता है | रज्जी डाकबँगला से कई बार गुलाब के फूल लाया है | फिर वह छोटी सी बात नहीं छुपा सकता क्या ! वह खरीदकर तो पतंग लाया नहीं है | वह खुद उसके पास आई है तो उसकी क्या गलती ?’--उसने खुद को समझाया और पतंग को छत पर एक पाट के पीछे छुपा दिया | तभी उसने शेरू को दरवाजे में घुसते हुए देखा | कटकर आई पतंग उसी की थी जिसे वह लेने आया था |

शेरू सूरज का पड़ोसी है और कई बातों में सूरज से बहुत आगे है | अपने मम्मी पापा की तरफ से उसे हर तरह की छूट है वह कहीं भी खेलने जा सकता है | नहीं में घंटों तैर सकता है | जब तक चाहे साइकिल चला सकता है और वक्त पड़े पर एक तमाचे का जबाब दो तमाचों से दे सकता है | घरवालों का कोई प्रतिबन्ध नहीं है उसपर | जबकि सूरज पर पापा की कड़ी नजर रहती है| वे उसे हर बात पर टोकते ही रहते हैं | किसी से झगड़ा होजाए तो पापा पहले सूरज को ही डाँटते हैं ,चाहे उसकी गलती न भी हो |

सूरज को यकीन है कि पापा-मम्मी दोनों ही उसका फेवर नहीं करने वाले | पतंग को शेरू को पतंग दिलवा कर छोड़ेंगे | और यही हुआ | मम्मी ने कहा ---पतंग तुम्हारे पास हो तो बेटा दे दो | तुम क्या करोगे उसका ? पापा तुम्हारे लिये कितनी सारी चीजें लाते रहते है ! ”

“ ‘कितनी सारी का क्या मतलब ?”-–सूरज के अन्दर एक उबाल सा उठा--– उसे यही पतंग चाहिये , अपनी छत पर आई हुई | शेरू के घर से या उसके हाथ से छीनकर तो वह लाया नहीं | इस तरह शेरू को पतंग मिलती तो क्या वह लौटा देता ?  मम्मी ने बिना जाने समझे ही कह दिया , ‘दे दो बेटा ..पर बेटा नही देगा तो नहीं देगा | करो जो चाहो ..”---सूरज यही कहने वाला था कि तभी उसे ध्यान आया कि सच्चाई और वीरता की शान में राजपूत राजा बेकार ही जान तक दे डालते थे | पर विदेशियों ने शब्दों की हेराफेरी से ही कितने ही देशों पर कब्जा कर लिया था | क्या वह जरा सी पतंग पर कब्जा नहीं कर सकता ? सो अनजान बनकर बोला--

कौनसी पतंग मम्मी ? मैंने तो कोई पतंग नहीं देखी ..मुझे पतंग पसन्द भी नहीं | ”

माँ को सूरज की बात पर यकीन होगया | वह कई बार सच बोलने का प्रमाण तो दे ही चुका था | एक बार मिठाई के डिब्बे से कई लड्डू निकालकर खाने की बात उसने खुद ही स्वीकार करली थी ,जबकि माँ को रिंकी और संजू पर शक था | एक बार जब वह नकल से उत्तर लिख आया था , यह भी उसने पापा को बता दिया था |

शेरू मुँह लटकाकर चला गया | पर जाते जाते नजरों से ही सूरज के साथ अपनी दोस्ती की समाप्ति की सूचना देगया | सूरज ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया | उस समय उसके लिये दोस्ती से ज्यादा पतंग ज़रूरी लग रही थी | वैसे भी होमवर्क की कॉपियों के लेन देन से अधिक उनका मेलजोल था भी नहीं | उस समय तो वह अपनी कामयाबी पर खुश था | और उसे रखने के लिये सही जगह के बारे में सोचने लगा |कुछ दिन बाद जब सब भूल जाएंगे तब वह पतंग को निकाल सकेगा |

दूसरे दिन शेरू दूसरी पतंग ले भी आया और सूरज को दिखा दिखा कर उड़ाने भी लगा पर सूरज अभी तक पतंग के लिये कोई सुरक्षित गोपनीय स्थान की तलाश में था |छत पर रखे पाट के नीचे छुपाना बिल्कुल सुरक्षित नहीं था | नीटू किलकिल काँटे की लकीर खींचने कभी भी उसका उपयोग कर सकता था | अपने इस नटखट भाई पर सूरज भरोसा नहीं कर सकता था |

काफी सोच विचार के बाद उसे बैठक में लगी बड़ी तस्वीर के पीछे पतंग के लिये सही जगह लगी |वहाँ न नीटू के शरारती हाथ पहुँच सकते थे न पापा की तेज नजर | गुलकी उसके कामों में न दखल देती है न ही ज्यादा छानबीन करती है | पर सूरज को पहला मोर्चा उसी से लेना पड़ा |पतंग को अखबार में लपेटकर जैसे ही बैठक मैं पहुँचा गुलकी जैसे उसी का इन्तजार कर रही थी |

भैया लो ये कागज | मेरे लिये फूल बना दो | कल गुलदस्ता बनाकर स्कूल ले जाना है |”

वैसे सूरज गुलकी का हर काम खुशी खुशी करता है | फूल बनाना उसका शौक भी है पर उस समय गुलकी की माँग उसे बेवक्त की रागिनी लगी |

गुलकी अभी मैं कुछ व्यस्त हूँ | तू मिनी के पास चली जा ,वह तुझे बुला भी रही थी |”

मिनी ! वह तुम्हें कहाँ मिली भैया ? वह तो कल ही बुआ के यहाँ आगरा चली गई |”

तो शायद परसों मिली होगी , वही याद रह गया है | तू अभी जया आंटी के घर से माँ को बुला ला .

माँ से क्या काम है ?”

बताऊँगा , पहले बुलाने जा तो सही |”

पहले बताओ .”---गुलकी अड़ गई | सूरज ने बेवशी के साथ देखा |जानता था कि गुस्सा करने से तो वह और फैल जाने वाली थी इसलिये प्यार से समझाया कि वह कहना मानेगी तो ऐसे फूल बनाकर देगा कि सब देखते रह जाएंगे | नहीं तो फिर नहीं... यह सुनते ही गुलकी चली गई | सूरज ने पलंग पर चढ़कर पतंग को तस्वीर के पीछे छुपा दिया ,पर जैसे ही मुड़ा तो देखा नींटू जी कमरे में आ चुके हैं | आते ही सीधा सवाल ठोक दिया—

तुमने वहाँ क्या छुपाया है भैया ?”

हद होगई  |”–सूरज को यह सवाल बहुत अखरा | हर कोई उसके पीछे जासूस की तरह लगा है | गुलकी से पीछा छूटा तो ये महाशय आ धमके | झल्लाकर बोला –--“हाँ छुपाए हैं बड़े बड़े लड्डू ..|”

लड्डू !!”-–नीटू की आँखें बिल्ले की तरह चमकीं –--“तब तो मैं जरूर लूँगा . यह कहकर वह पलंग पर चढ़ गया और तस्वीर तक हाथ बढ़ाने लगा | सूरज परेशान होकर नीटू को देखा |यह उसकी सीमा का अतिक्रमण था | वह अपनी कोई चीज इससे बचाकर नहीं रख सकता | छोटा होकर भी उस पर हावी रहता है | पापा का समर्थन जो मिला हुआ है इसे | पर वह भी किसी से कम नहीं | वह किसी से नहीं डरता | पापा से भी नहीं | नीटू क्या है ! इतना सोचते ही उसने नींटू के दोनों हाथ पकड़कर झटका तो वह नीचे गिर गया और चीख मारकर रोने लगा | चोट के कारण नहीं , सूरज के अपराध को गंभीर बनाने के लिये ताकि उसे बड़ी सजा मिले .पर सूरज को कोई परवाह नहीं थी |

शाम को पापा ने सूरज की खूब खिचाई की ,कहा –-“इतना बड़ा होगया है पर इतना तमीज नहीं कि अपने छोटे भाई बहिन के साथ कैसा बर्ताव किया जाता है |”

सूरज को मालूम था कि पापा उसी को दोष देंगे इसलिये चुपचाप सुनता रहा | मन में एक सवाल जरूर उठा कि अपने हिसाब से पापा उसे जब चाहे बड़ा बना देते हैं और जब चाहे छोटा | क्यों ?  जब खाने की चीजें बाँटने या नीटू गुलकी की मदद की बात हो तो पापा उसे बड़ा कहते हैं और साइकिल चलाने , बाजार जाने या अपनी कोई राय देने की बात हो तो पापा उसे छोटा कहते हैं | पता नहीं क्यों उसकी इतनी खींचतान की जाती है |

उस दिन के बाद नीटू उसका खुलेआम विरोधी होगया | गुलकी को उसने अपने साथ कर लिया | दोनों साथ खाते और खेलते | सूरज को सुना सुनाकर बड़ी बड़ी योजनाएं बनाते | सूरज बहुत अकेला पड़ गया | अब उसे पतंग भी बोझ लगने लगी | पतंग छुपाने से उसे क्या मिला | न किसी को दिखा सकता है न उड़ा सकता है | शेरू को तो लौटाने से रहा और घर में बताना उनका विश्वास खोना होगा | उसे छुपाना भी एक समस्या है | फाड़कर फेंकने या जलाने से सारी कहानी खत्म की जा सकती है | पर ऐसा करना बुज़दिली होगा |सूरज बुजदिल नहीं है | अब वह पतंग को सुरक्षित जगह पर छुपाएगा भी और एक दिन उड़ाएगा भी |

मौका पाकर वह पतंग को लेकर अन्दर वाले कमरे में गया |कमरे में अँधेरा था जो बाहर से ज्यादा सघन लगता था |पर उसे परवाह नहीं थी | वैसे भी अभ्यस्त आँखों के आगे अँधेरा खुद ही कमजोर होजाता है |कमरे में एक बड़ा और पुराना सन्दूक ईँटों पर रखा था | उसके नीचे खाली जगह में सूरज ने पतंग को सरका दिया | यहाँ पतंग पूरी तरह सुरक्षित थी माँ झाडू लगाने जरूर आती थी पर सन्दूक के नीचे तो हाथ नही न डालती होगी | सूरज ने पतंग रख तो दी पर अनायास ही साँप बिच्छू की आशंका से जल्दी से हाथ खींचा तो सन्दूक की तली में निकली धारदार पत्ती कलाई को चीरती हुई निकल गई | खून की धार फूट पड़ी | वह पीड़ा से तड़फ उठा | जल्दी से जो कपड़ा मिला बाँध लिया | पर जो जमीन पर गिरी लाल बूँदें दिखीं तो पीड़ा को भूल गया | पापा को पता चलेगा तो सान्त्वना की जगह डाँटेंगे | एक बार इमली के पेड़ से गिर पड़ा था और पाँव में मोच आगई , तब पापा ने दिलासा तो नहीं दी , उल्टा दो थप्पड़ मारे और कहा कि ऐसे ऊधमी लड़कों को इससे भी ज्यादा दण्ड मिलना चाहिये | बिस्तर में पड़े पड़े उसे चिन्ता सता रही थी कि कलाई के घाव को कैसे छुपाए | पीठ पेट में होता तो कोई चिता न थी |  तभी उसे पूरी बाँह की शर्ट पहन लेने का विचार सूझा | इसके लिये चादर ओढ़े ही उसने माँ को पुकारा |

फुल शर्ट की क्या जरूरत पड़ गई सूरज ?”

जरा सर्दी लग रही है मम्मी | ”

सर्दी !...सर्दी का मौसम तो नहीं है | कहीं बुखार तो नहीं है ?”

नहीं मम्मी , बुखार उखार कुछ नहीं बस यूँ ही …|”

हूँ होगा तो भी तू क्या बताएगा ?”---यह कहकर माँ ने बुखार देखने के लिये वही हाथ पकड़ लिया |सूरज की कराह निकल गई .

अरे क्यों क्या हुआ ?”माँ ने कपड़ा खोलकर देखा |

अरे राम ! खून ..! सूरज यह कैसे लगी ? ”

कुछ नहीं मम्मी ,जरा सी तो चोट है | ठीक हो जाएगी |”

ठीक होगी बाद में | पहले यह बता कि लगी कैसे |”

छोड़ो भी मम्मी , लग तो गई ही है ना | पूछने से क्या फायदा | प्लीज पापा को मत बताना ..|”

माँ घाव पर मरहम लगाते हुए ध्यान से सूरज की बात सुनती रही |

दो तीन दिन बाद सूरज को उसके पापा ने अपने पास बुलाया | सूरज पिता के सामने जाने से डर रहा था वे ज्यादातर गलती पर डाँटने या समझाने पर ही बुलाते हैं | कलाई के घाव का उन्हें पता चल ही गया होगा | नहीं तो अब चल जाएगा |अब  होगा देखा जाएगा |

लेकिन वह चकित हुआ कि पापा ने उसे प्यार से पास बिठाया | हालचाल पूछा | सूरज के अन्दर कुछ हलचल सी हो रही थी | डाँट-फटकार से मन विद्रोह के बिगुल बजा देता है पर प्यार के दो बोल सब कुछ पिघला देते हैं | कुछ पल बाद पापा ने सूरज के सिर पर हाथ फेरकर पूछा –

पतंग उड़ाना बहुत अच्छा लगता है ?”

यह कैसा सवाल है ? किस घटना की भूमिका है ?’–सूरज का दिमाग चकराया | शायद पापा मन की थाह ले रहे हैं | इसलिये वह दृढ़ता के साथ बोला --

न ...नही तो , मैं तो पतंग का नाम भी नहीं लेता |”

नाम नहीं लेते हो पर पतंग के लिये कोई भी खतरा लेने तैयार रहते हो |”

न..नही तो पापा |”

डरपोक |” --पापा ने हल्की सी चपत लगाई  | सूरज और भी हैरान | पापा ने उसे डरपोक किस आधार पर कहा ? अँधेरा तो क्या , वह तो साँप-बिच्छुओं से भी नहीं डरता | तभी माँ उसी पतंग को लेकर आगई |देखकर सूरज की समझ में सब कुछ आगया | सिर झुकाकर अपनी गलती मान लेने के अलावा कोई चारा न था |

यह वही पतंग है न जिसे छुपाने तुम अँधेरे कमरे में गए , बिना किसी खतरे की परवाह किये हुए ? ”

जी . जी नहीं ..

तभी तो मैंने डरपोक कहा | जो अपने मन की बात नहीं कह पाए उसे और क्या कहा जाएगा ?”  

बेटा कोई सुने या ना सुने, समझे या ना समझे ,सच कहने में कोई हर्ज नहीं | बल्कि कहना ही चाहिये | कुछ कारण हैं कि मैं पतंगबाजी का विरोध करता हूँ पर इतना भी नहीं कि मेरे बेटे में सच बोलने का हौसला ही जाता रहे |”

यह कहकर पापा ने थैले में से दो सुन्दर पतंगें निकालकर सूरज को दे दीं | सूरज ने पापा के चेहरे को देखा | आँखों में नाराजी की जगह स्नेह था | उसने दोनों पतंगें एक तरफ सरकादीं और पापा से लिपट गया | अब उसे पतंग की जरूरत नहीं थी | उसे पतंगों से भी अच्छी चीज मिल गई थी –पापा का प्यार |

 

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