एक रूप रुपहला तारा
जैसे थाली भर पारा
या परी भुलक्कड भूली
अपना सिंगार पिटारा
एक झिलमिल सा आईना
टीका है जडा नगीना
नीले सरुवर में मानो
एक श्वेत कमल रसभीना
नभ की दीवार घडी है
बिन्दी जो रतन जडी है
खालो ,है बर्फ का गोला
खेलो वह बॅाल पडी है
यह चाँदी का सिक्का है
या ताश तुरुप इक्का है
कुरमुर पापड चावल का
या आलू का टिक्का है
क्या साइज है इडली का !
या प्याला भरा दही का
मीठा लड्डू मावा का ?
या घेवर फीका-फीका ?
रबडी का भरा कटोरा
बिखरा मिसरी का बोरा
माँ धरती नीली-नीली
पर मामा गोरा-गोरा ।
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चित्र-गूगल से साभार
पोरबन्दर
दो अक्टूबर,
करमचन्द और पुतली के घर
जन्मे थे अभिराम
बापू तुम्हें सलाम ।
दुबला तन
पर ताकतवर मन ,
सत्य ,अहिंसामय था जीवन ।
सुख-साधन आराम,
लिखा सब आजादी के नाम ।
बापू तुम्हें सलाम ।
भारत हो या हो अफ्रीका ,
बहुत दुखा दिल बापू जी का ।
भारत -वासी जीते थे ,
बन कर मजदूर गुलाम ।
बापू तुम्हें सलाम ।
गोरे क्रूर कुटिल अभिमानी ,
याद करादी उनको नानी ।
सत्याग्रह के बल पर,
उनको ,झटके दिये तमाम ।
बापू तुम्हें सलाम ।
नियमों के थे अविकल सच्चे ।
पर अन्तर के कोमल कच्चे ।
दुःखी, दलित ,निबलों विकलों की,
सेवा की अविराम ।
बापू तुम्हें सलाम ।
करुणा का लहराता सागर ,
पूँजी थी बस लकुटी चादर ।
सादा जीवन ऊँचा चिन्तन ,
था आराम हराम ।
बापू तुम्हें सलाम ।
अस्त्र-शस्त्र निर्बल का सम्बल।
मन की शक्ति अपरिमित अविचल ।
पाकर ऐसी शक्ति बनें ,
हम भी अजेय अभिराम ।
बापू तुम्हें सलाम ।
भारत माँ के 'लाल 'बहादुर
उनका भी दिन दो अक्टूबर
सूझ-बूझ नैतिक बल से
जीते सारे संग्राम
उनको मेरा सलाम ।