सोमवार, 14 अगस्त 2023

आजादी का दिन

 

परिश्रम का सूरज नई भोर लाए।

विचारों में पूरब दिशा मुस्कराए

दिवस आजादी का यूँ ही सब मनाएं ।

 

न आँसू गिरें अब, न विश्वास टूटे,

न ईमान का घर कोई चोर लूटे ।

अनाचार को उसका रास्ता दिखाएं

दिवस आजादी का...........


हों संकल्प पूरे  मन से लगन से।

इरादे अडिग नेक चिन्तन मनन से ।

प्रलोभन कभी भी हमें ना डिगाएं

दिवस आजादी का....

 

अभी देश सीमा सुरक्षा जरूरी ।

अभी देश में है सजगता अधूरी ।

कि निष्ठा का पग-पग पे पहरा बिठाएं।

दिवस आजादी का.........

 

वतन के लिये प्राण तन से निछावर।

उगे पूर्व से ही प्रगति का दिवाकर।

कि अच्छाइयों को उजाले में लाएं।

दिवस आजादी का .........

 

मिटी है गुलामी प्रयासों से जिनके।

अमर हैं शहादत रँगे गीत उनके ।

वही राह पकडें वही गीत गाएं ।

दिवस आजादी का नए ढंग मनाएं।

शुक्रवार, 16 जून 2023

सूरज का कोई अपना है .

 

मई-जून है ,भैया सँभलो,

किसी तरह तो बचकर निकलो .

अनचाहे ही आया है जो ,

वह गुस्सैला है .

धूल–पसीना से लगता मैला-मैला है. 

लू और तूफानों से भरा हुआ थैला है .

तपती धूप भरे आँखों में.

पानी पीने , भर ले जाने 

लाल लाल मटके लाया है

सूरज का कोई अपना है .

बस गर्मी गर्मी जपना है . 

 

जाने कौन दिशा से आ धमका है.

नदी ताल पोखर पर आ बमका है .

छीन हवा से नमी-तरावट.

साँसों को दे दी अकुलाहट .

 

पानी-पानी मची दुहाई .

देखो इसकी लापरवाही .

रोम रोम से बहा पसीना .

कूलर लगता दीना-हीना .

 

बकरी भेड़ रँभाती गैया .

सूने पनघट ,ताल-तलैया

सूनी ,आकुल है गौरैया .

 

दूर क्षितिज पर धरती हाँफे

पाखर पीपल डर से काँपे .

ठंडक कोई कोना नापे .

 

सनन् सनन् सन् लू के झौंके

उफ् बे मौके ,कोई रोके .

धूल उड़ाता , नमी चुराता

भूख मिटाता प्यास बढ़ाता

खुल खुल खाँसे ,जलती साँसें

सनकी बूढ़ा ,

करकट-कूड़ा

बचकर निकलो ,

पकड़ बिठा लेगा तुमको

सुलगे अलावपर .

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शनिवार, 18 फ़रवरी 2023

आशुतोष इसलिये कहाते

 

जिनके भाल चन्द्रमा साजे.

गंगा मैया जटा विराजे .


कंठ सजी सर्पों की माला .

ऐसा जिनका रूप निराला .


भोले-शंकर उनका  नाम .

कैलाश पर्वत उनका धाम


अंग अंग में भस्म रमाए .

सारा जग उनके गुण गाए .


जल्दी ही वे खुश होजाते .

आशुतोष इसलिए कहाते .


दूर करें वे कष्ट तमाम .

भोले शंकर उनका नाम .

बुधवार, 8 फ़रवरी 2023

सूरज उतरा नदी किनारे

 रूप रुपहले पंख पसारे

सूरज उतरा नदी किनारे .

 

बिखरे शंख सीपियाँ चुनने

धूप का झोला बगल दबा रे.


हवा उतर आई पेड़ों से

सर सर सर सर गली बुहारे .


नदिया ने बाहें फैलादीं ,

जल में सूरज एक उगा रे .


लहरों को मुट्ठी में भरने ,

नटखट लहरों बीच चला रे .


चचंल लहरें हाथ न आए

कभी यहाँ तो कभी वहाँ रे .


नटखट लहरें वहीं छोड़कर

धूप सुखाली है निचोड़कर .


गीले तट फिर पाँव जमाए

रेत घरोंदे मिटा बनाए .