“तनू
!
ए तनू !”----उर्वशी बाहर
खडी अपनी चार साल की बेटी तनु के बाहर निकलने का इन्तजार करती पुकार रही थी । और
तनु माँ की हर आवाज पर कह रही थी ---“आ
रही हूँ मम्मी बस दो मिनट...।“
सुबह के साढे नौ बजने जा रहे थे । उसे
ऑफिस के लिये देर हो रही थी । तनु बाहर निकले तो ताला लगाए । फिर उसे बडी बहन के
पास छोडे तब कही ऑफिस के लिये बस पकडे । वैसे उर्वशी की कोशिश रोज यही रहती है कि
तनु को स्कूल छोडती हुई ऑफिस निकल जाए पर अक्सर ही ऐसा नही हो पाता । स्कूल के
लिये निकलते वक्त ही तनु के पेट में कुछ-कुछ होने लगता है और वह लैट्रिन में जाकर
बैठ जाती है । जब कभी यह नही होता तो फिर यूनिफॅार्म पर दूध गिर जाता है या बहुत
जरूरी होमवर्क की कापी जो मेम को दिखानी होती है , नही मिलती । या
फिर रबर ,पेंसिल ढूँढने में ही सारा घर सिर पर उठा लेती
है ।
मैं इसके नाटक समझ रही हूँ । --उर्वशी
ने उसे उसी तरह झिंझोड डालती है जिस तरह पके बेर झराने के लिये लोग पेड को झिंझोड
डालते हैं । कभी-कभी तो तनु पिट भी जाती है । पर तनु उन बच्चों में से नहीं है जो
जरा--जरा सी बात पर रोने लगते हैं ।
“बडी
ढीठ होगई है । कोई असर ही नही होता डाँट-फटकार का । सचमुच इसकी आदतें बिगड रहीं है
.”---पापा भी माँ की बात की बात को सहारा
देते हुए कहते हैं । पर तनु सख्ती से होंठ बन्द किये चुपचाप खडी रहती है उसे जरा
भी रोना नहीं आता । बल्कि जब माँ और पापा का गुस्सा दूध की तरह उफन कर बाहर निकल
जाता है ,तब तनु दौड--दौड कर माँ के साथ बर्तन धुलवाने
या झाडू लगाने जैसे काम करने की कोशिश करती है । उर्वशी फिर निरुपाय सी हो जाती है
। एडमीशन को दो महीने होने आगए ,होता यही है कि तनु का स्कूल जाना टल
ही जाता है
आज भी उसकी मंशा स्कूल जाने की नही थी
। पर आज उर्वशी ने तय कर लिया था कि तनु को स्कूल पहुँचा कर ही दम लेगी यही नही
उसकी टीचर्स से भी बात करेंगी । पर लडकी है कि निकलने का नाम ही नही ले रही । आखिर
कर क्या रही है वहाँ ।
“तनू....!”-- उर्वशी चिल्लाने को हुई पर विचार आया कि वहीं
जाकर उसे खींचकर लाना चाहिये । पर अन्दर
जो सीन था उसे देख उर्वशी हैरान रह गई । तनु ड्रेसिंग-टेबल के सामने खडी तौलिया से
चेहरे को रगड रही थी । क्रीम पाउडर से पुते चेहरे पर काजल व लिस्टिक बुरी तरह फैल
गई थी ।
“अच्छा
,
तो मैडम यहाँ मेकअप कर रहीं हैं । चल आज मैं तेरा मेकअप कर देती हूँ
अच्छी तरह ..।“ उर्वशी ने खींच
कर दो तमाचे तनू के गाल पर जड दिये । चेहरे को ऐसे रगड-रगड कर साफ करने लगी जैसे
पीतल के बर्तन को चमकाने के लिये रगडा जाता है । पर वह जरा भी टस से मस नही हुई ।
जैसे कि इस सजा के लिये वह पहले से ही पूरी तरह तैयार हो । चाहे माँ गुस्से में
उसके गालों को आम की तरह निचोड डालने की हसरत पूरी करे या बालों को खरपतवार की तरह
जड से उखाड डालने के उपाय अपना ले । वह गुमसुम और बेअसर बनी रहती है ।
“मम्मी
तुम भी तो लगाती हो यह सब फिर...।“
तनु ने मम्मी के गुस्से का उफान थोडा कम हुआ देख पूछ लिया ।
“तू
मेरी बराबरी करले मेरी नानी..।“ माँ ने झल्ला
कर कहा पर तनु को माँ की बात जरा भी समझ नही आई । बस माँ की ओर देखती रह गई ।
“मम्मी
,तुम
रोज--रोज ऑफिस क्यों जाती हो ?”
“तू
रोज--रोज ऐसे नाटक क्यों करती है ?”
--माँ ने तनु के सवाल का जबाब देने की बजाय दूसरा ही सवाल किया जो बेशक तनु को चुप
करने के लिये था ।
“तुझे
आज भी स्कूल नही जाना था न । पहले ही बता देती तो मेरा सामान व समय तो खराब न होता
। मुझे देर हो रही है । चल मौसी के यहाँ छोडदूँ ।
तू उन्ही के हाथ आती है ।“
यह कह कर उर्वशी तनु को लगभग घसीटती
हुई लेगई जैसे कोई बच्चा अपनी खिलौनागाडी को गली में लापरवाही से ढरकाता हुआ ले
जाता है ।
अपनी बहन रेवा के दरवाजे के भीतर
उर्वशी ने तनु को जल्दी से अखबार की तरह फेंका और जोर से सुनाते हुए कि ,”दीदी
मैं जा रही हूँ .” --तेजी से चली
गई । दीदी के बाहर आने का भी इन्तजार नही किया । यहाँ तक कि तनु को भी -बाय नही
कहा । लेकिन वह दूसरे तमाम बच्चों की तरह मम्मी के ऑफिस जाने पर रोती नही बल्कि
सोचती है कि मम्मी को जाने क्यों इतनी जल्दी रहती है । हर काम घडी की सुइयों को
देखती हुई करतीं हैं । एक मिनट मुस्कराने की भी फुरसत नही होती । गीत और कहानी तो
मम्मी ने जाने कब सुनाए होंगे ।
तनू की मौसी रेवा अकेली रहती है । उनके
बच्चे बाहर चले गए हैं । काफी सख्त स्वभाव की हैं ।खास कर उन बच्चों के लिये जो
पढाई से जी चुराते हैं । तनु को मौसी भी कभी--कभी स्कूल की टीचर जैसी लगती हैं ।
पर तनु ने सब आसानी से स्वीकार कर लिया है । घर और स्कूल में कोई खास फर्क जो नही
है ।
“अरे
तनू ---आज स्कूल नही गई ?”---मौसी ने ऐसे
अचरज प्रकट किया मानो स्कूल मम्मी का ऑफिस हो जहाँ न जाने के पीछे कोई न कोई कारण
हो । और उसे बताना भी जरूरी हो । पर तनु को वह कारण बताना बिल्कुल जरूरी नही लगा ।
हँसते हुए बोली--
“नही
गई तभी तो यहाँ आई हूँ मौसी ।“
“अच्छा---अच्छा--अन्दर
आ जा ।“ मौसी ने जल्दी से किवाड लगाए । और
चौका में आगईं ।
“देख
,अच्छे
बच्चों की तरह यहाँ बैठ जा । मैं अपना काम कर रही हूँ ।“
“ठीक
है मौसी .”--तनु पटरे पर
बैठ गई ।
ऐसे में अक्सर तनु का ध्यान मौसी की हर
गतिविधि पर होता है । चेहरे की हर लकीर को पढती है । मौसी की भौंहें तनीं-तनी सी
क्यों रहती हैं । नाक भी कुछ खिंची हुई सी लगती है । आँखें ऐसी रूखी क्यों हैं
--एकदम हैं । एकदम सूखी ब्रेड जैसी । मुसकराएं तो कितनी सुन्दर लगें । वह जब रोटी
बनाती है तो तनु बडे ध्यान से देखती है ।
“मौसी
तुम्हारी रोटी इतनी सुन्दर और गोल कैसे बन जाती है ?”
“इसमें
पूछने की क्या बात है ? वह तो
बनाते--बनाते आ ही जाती है ।“
“मैं
बनाऊँ ?”---तनु मौसी से बेलन लेने का मौका
चाहती है । पर मौसी डाँट देती है ।
“नहीं
। चुपचाप बैठो ।“-- तनु कुछ देर के
लिये चुप होगई । फिर पूछा--
“मौसी
,
रोटी फूल क्यों जाती है ?”
मौसी ने फिर डाँट दिया ---“अरे पागल सेकने पर रोटी फूलेगी नही तो क्या होगा ?”
“पर
मौसी सभी रोटी तो नही न फूल रहीं । ऐसा क्यों ?”
“ऐसा
तेरा सिर .”--मौसी झल्ला
उठी ।
“पढने
लिखने की बजाय बेसिरपैर के सवालों में दिमाग उलझाए रखती है । तेरे साथ के बच्चे
दूसरी कक्षा में आगए । और तू है कि अभी यूकेजी में अटकी है .”
मौसी भी मम्मी की तरह ही पढाई की बात
करके उसे चुप कर देती है पर उसका दिमाग कही चुप रहता है । दिमाग में ऐसे ही ढेरों
सवालों के बुलबुले से उठते रहते हैं जैसे कि देखो रोटी दबाते हुए चिमटा गीला कैसे होगया ? मौसी की बनाई सब्जी मम्मी की सब्जी से ज्यादा स्वादिष्ट क्यों लगती
है ? रोटियों की महक से पेट खाली--खाली सा
क्यों लगने लगता है ? मौसी दिन भर
क्या पढतीं रहती हैं ? पढते हुए भी
तनु की हर बात पर नजर कैसे रख लेती हैं .जरा कुछ करो तुरन्त टोक देती हैं कि ---‘अरे तनु छत पर मत जा । कौवे सिर में चोंच मार देंगे । ए वो पतंग मत
लेना । भैया की है । तनु बेटा साइकिल से दूर रहो । लग जाएगी । दिन भर कुछ न कुछ
खाते रहना ठीक नही होता । तनु बच्चे मुँह खुला नही रखना चाहिये । और इतना बडा
ग्रास क्यों लेती है तनु । ग्रास को कम से कम बत्तीस बार चबाना चाहिये । बाप
रे...। मौसी इतनी सारी बातें कैसे याद रखती हैं ।
“मौसी
में भैया का बैट देखलूँ ?” तनु को क्रिकेट
का खेल बहुत पसन्द है ।
“लडकियों
वाले काम नही करेगी कभी तू हाँ..कभी बैट, कभी पतंग तो कभी
पिस्तौल...।“---मौसी झिडकतीं
हैं । तनु टुकर--टुकर मौसी को देखती है । वह अभी तक नही समझ पाई है कि उसे कौनसे
काम करने चाहिये और कौनसे नही । कुछ सोच कर वह बडा झाडू लेकर आँगन झाडने लगी ।
“अरे
छोड ,तनु वह तेरे मतलब का काम नही है । देख कूड़ा उधर ही उड रहा है ।“
“तो
बर्तन माँजलूँ ?”
“तू
ऐसा कर तनु कि भैया से कुछ पढले ।“
“भैया
से ! तनु घबराई –‘भैया से तो स्कूल में दीदी ही अच्छी है । वो पढाते कम हैं सवाल
ज्यादा करते हैं । कि चल सी से बनने वाले पाँच शब्द लिख कर ला । कि बता इस पेड में
कितनी शाखाएं हैं । पर भैया अभी सो रहे हैं । अच्छा है । लेकिन मौसी भैया को क्यों
नही जगातीं । इतनी देर तक सोते हैं ।
“मौसी
में कमरा एकसा करलूँ ?”
“अच्छा
.” मौसी ने कह दिया । उसे कुछ तो काम
चाहिये वरना दिन भर क्या करे । पर तभी एक साथ कुछ गिरने की आवाज आई । मौसी ने देखा
कि पूरे कमरे में अखबार बिखरे हैं । तनु बीच में अपराध का बोझ लादे ऐसी सूरत बनाए
खडी थी कि मौसी को दया आगई । पुचकारते हुए बोली ---“अरे
इसमें दुखी होने की क्या बात है ? ऐसा तो होता ही
रहता है । आ मेरे पास आ .”
यह कह कर मौसी ने तनु को गले लगा लिया
पर यह क्या ! तनु तो रोने
लगी . क्यों ?
क्या आप बता सकते हैं ?
बहुत प्यारी कहानी है। जिन बच्चों को हमेशा टोका जाता है,वे जरा सा प्यार पाते ही रो पड़ते हैं। बच्चों के साथ डांट और प्यार में हमेशा संतुलन रहना चाहिए।
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी कहानी लिखी है आपने।अचानक प्यार भरे बोल सुन कर अनु को रोना आ गया।
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जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर ,रश्मि जी ने सही कहा
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