नदिया बहती है ।
सबसे कहती है ।
गति ही तो जीवन है ।
गति ही अन्वेषण है ।
तुम चलते रहो ,डरो ना
मन में सन्देह भरो ना
जो पानी सा बहता है
जो पानी सा रहता है ।
फिर कौन उसे रोकेगा ।
फिर कौन उसे टोकेगा ।
जो खुद ही मुड जाता है,
तो कौन उसे मोडेगा ।
चट्टानों में भी बहकर ,
हर मुश्किल को भी सह कर,
खुद राह बना लेता जो
उसका ही अभिनन्दन है ।
हाँ गति ही तो जीवन है ।
हाँ गति ही अन्वेषण है ।
नदिया बहती है ।
यों सबसे कहती है ।
तुम सभी ध्यान से सुनलो
मेरी बातों को गुनलो ।
जल-धारा ही जीवन है ।
धरती माता का धन है ।
इससे ही हरियाली है।
इससे ही खुशहाली है।
यह प्राणों की रेखा है ।
यह वैभव अनदेखा है ।
यों करो न इसको दूषित ।
धरती इससे ही भूषित ।
यों मैला करो न जल को ।
क्यों बहा रहे हो मल को ।
मेरी पीडा को बिसरा
फेंको ना कूडा-कचरा
होता गन्दा तन मन है
यों नदी करे क्रन्दन है ।
यों नदी करे क्रन्दन है ।
सबसे कहती है ।
गति ही तो जीवन है ।
गति ही अन्वेषण है ।
तुम चलते रहो ,डरो ना
मन में सन्देह भरो ना
जो पानी सा बहता है
जो पानी सा रहता है ।
फिर कौन उसे रोकेगा ।
फिर कौन उसे टोकेगा ।
जो खुद ही मुड जाता है,
तो कौन उसे मोडेगा ।
चट्टानों में भी बहकर ,
हर मुश्किल को भी सह कर,
खुद राह बना लेता जो
उसका ही अभिनन्दन है ।
हाँ गति ही तो जीवन है ।
हाँ गति ही अन्वेषण है ।
नदिया बहती है ।
यों सबसे कहती है ।
तुम सभी ध्यान से सुनलो
मेरी बातों को गुनलो ।
जल-धारा ही जीवन है ।
धरती माता का धन है ।
इससे ही हरियाली है।
इससे ही खुशहाली है।
यह प्राणों की रेखा है ।
यह वैभव अनदेखा है ।
यों करो न इसको दूषित ।
धरती इससे ही भूषित ।
यों मैला करो न जल को ।
क्यों बहा रहे हो मल को ।
मेरी पीडा को बिसरा
फेंको ना कूडा-कचरा
होता गन्दा तन मन है
यों नदी करे क्रन्दन है ।
यों नदी करे क्रन्दन है ।
नदिया की बातों को समझना सरल हो गया आपकी रचना से।
जवाब देंहटाएंदीदी,
जवाब देंहटाएंआज की कविता में मुझे प्रांजलता कम दिख रही है.. मगर भाव और सन्देश स्पष्ट और मुखर हैं... और कमाल की बात तो यह है कि इसमें मुझे तीन सन्देश दिखाई दिए..
पहला, सदा मार्ग की बाधाओं से लड़ते हुए जीवन पथ पर अग्रसर रहो..
दूसरा, वे नदियाँ जो हमें इतना सुन्दर सन्देश देती हैं, उनका सम्मान करो और उन्हें प्रदूषण से बचाओ..
.
कविता से परे, तीसरा एक आध्यात्मिक सन्देश.. मानव जीवन बाधाओं और प्रदूषणों से लड़ते हुए नदी की तरह समुद्र तक की यात्रा का नाम है.. जहाँ जाकर नदी खो जाती है.. और रह जाता है केवल सागर... मनुष्य जब अपने अंतरतम की यात्रा में परमात्मा से मिलता है तो वही समाधि है.. प्रेम की पराकाष्ठा, धर्म का उच्चतम शिखर!! शायद इसीलिये इस यात्रा में परीक्षाएं बड़ी कठिन हैं!!
/
कुछ ज़्यादा ही हो गया ना?? आज तो आलोचना भी है!!
प्रणाम दीदी!!
आपने सही कहा । यह कविता एक शिक्षक के आग्रह पर उनके बच्चे के लिये लिखी थी । उन्हें पसन्द भी आई । लेकिन मुझे तो कविता से ज्यादा अच्छी और सच्ची आपकी टिप्पणी लग रही है । ऐसी दिशा ही तो चाहिये मुझे ।
जवाब देंहटाएंवाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
बहोत ही अच्छी कविता लिखी है
जवाब देंहटाएंबेहद और बेहद खूबसूरत कविता नदी पर मैंने अब तक जो भी कविताएँ सुनी उनमें ये भी श्रेष्ठतम है और ऊपर किसी ने कहा कि प्रान्जलता की कमी है ये कविता जिस प्रान्जल रूप में प्रकट है इससे ज्यादा वो अवश्य है अनुकरणीय है
जवाब देंहटाएं