बुलबुल
हैरान थी . उसके तीन बच्चों में से दो बच्चे बड़े शौक से जल्दी उड़ना सीख गए थे .
एक बच्चा तो ,जो तीनों में सबसे ज्यादा तन्दुस्त और चुलबुला था वह इस टहनी से उस
टहनी तक उड़ानें भरकर माँ को अपना कौशल-करतब दिखा रहा था . दूसरा बच्चा भी माँ का अनुकरण
करते आँगन की मुँडेर तक और फिर मुँडेर से अमरूद की टहनी तक उड़ने में कामयाब हो
चुका था .अब वह नीम की शाखा तक पहुँचने की कोशिश कर रहा था . बुलबुल बराबर उसका
हौसला बढ़ा रही थी . लेकिन तीसरे बच्चे
में, जिसे सुविधा के लिये छुटकू कह सकते हैं, उड़ने की ललक जरा भी दिखाई नहीं देती
थी . इसलिये उसे उड़ना सिखाना कठिन हो रहा था .
छुटकू
बाकी दो बच्चों की तुलना में शुरु से ही कुछ मनमौजी और लापरवाह था . दोनों की
तुलना में कुछ छोटा और कमजोर भी . जब बुलबुल सुबह सुबह उनके नाश्ते के लिये इल्ली
,टिड्डा या कोई दूसरा कीड़ा पकड़ लाती तब दो बच्चे किलक कर चोंच खोल देते थे लेकिन
छुटकू आँखें बन्द किये आराम से बैठा रहता
“ओ आलसीराम ! जागो और अपने हिस्से का
नाश्ता लो .” –-एक बच्चा छुटकू को हल्का सा धकेलकर कहता .तब कहीं
छुटकू महाशय चोंच खोलते .
“अब मैं कुछ दिन ही तुम्हारे
लिये खाना लाऊँगी ..फिर अपने लिये नाश्ता तुम्हें खुद लाना होगा ..—बुलबुल ने
बच्चों को समझाया ..
“और अब हमें यह घोंसला भी छोड़ना होगा . इसलिये उड़ने
के लिये तैयार हो जाओ . आज से ही अभ्यास
करना है .
“हाँ माँ हम तैयार हैं .”.—दो बच्चों ने माँ की बात एक साथ चहके .
“छुटकू तुम भी .”–बुलबुल ने छुटकू को चुप
देखकर कहा .
“हाँ माँ मैं भी ..लेकिन मैं कुछ सोच रहा था .”– छुटकू ने कहा .
“क्या ?”
“यही कि अभी कुछ दिन और रहते
हैं ना इस घर में . “-- छुटकू ने अपने नन्हे कोमल पंखों
को सिकोड़ते हुए कहा .
“घोंसले में रहने के दिन बीत चुके हैं मेरे लाल . घर में ही रहोगे तो आसमान कैसे देख सकोगे ? .” –बुलबुल ने चोंच से उसके
नन्हे पंख सहलाकर कहा .ऐसा कहते हुए उसकी आवाज और मीठी होगई थी .
तभी दूसरा बच्चा बोल पड़ा--
“ओ भाई ! माँ ने कहा है न कि अब हमें
घर की जरूरत नहीं हैं . हम बड़े होगए हैं .अब उड़ भी सकते हैं और अपना भोजन भी खुद
ही ढूँढ़ सकते हैं .
छुटकू
ने कोई जबाब नहीं दिया .
“क्या तुम डर रहे हो ? मैं तो जरा भी नहीं डरा
..देखो ऐसे पंख हिलाते रहना .” पहले वाले बच्चे ने छुटकू को पंख फड़फड़ाकर दिखाए और
उड़कर छत की रेलिंग पर जा बैठा .
“ तुम जाओ मैं यहाँ कुछ दिन
और रहना चाहता हूँ .” छुटकू ने सीना फुलाने की कोशिश करते हुए कहा .
” शायद यह उसका डर ही है –बुलबुल ने सोचा और अचरज भी
हुआ आज तक वह कितने बच्चों को पाल पोस कर उड़ना सिखा चुकी है किसी ने ऐसा नहीं कहा . पंख होजाने पर भला
घोंसलों में कौन रहना चाहता है .”
फिर
उसने छुटकू से कहा –-“तुम अकेले ही यहाँ कैसे रह सकोगे जबकि हम सब एक नई और
सुन्दर दुनिया का हिस्सा बनने जा रहे हैं ? वहाँ तुम देखोगे कि फूलों
के आसपास कितनी सुन्दर तितलियाँ उड़ रही हैं ..आसमान कितना साफ है , कितनी चिड़ियाँ
उड़ रही हैं ..एक उड़ना ही तो चिड़ियों को ‘चिड़िया’ बनाता है .
“ इसलिये पहले उड़ना तो सीखलो .फिर जहाँ चाहो रहना ..—बुलबुल
ने समझाया .
तुम्हें
यह भी जानना जरूरी है कि पत्तों के साथ रह रहे कीड़े धोखा देने के लिये एकदम
पत्तों जैसे ही दिखते हैं . ऐसा न हो कि नाश्ते
में इल्ली या टिड्डे की बजाय पत्ता चबाते रहो ---बुलबुल की इस बात पर सब चहक उठे .
आओ छुटकू
मेरे साथ . बहुत बढ़िया नाश्ता तुम्हारा इन्तज़ार कर रहा है .” --–यह कहकर बुलबुल उड़कर नीचे
एक पौधे की टहनी पर बैठ गई . पर छुटकू घोंसले के किनारे पर बैठा माँ को देखता रहा
. वह यहाँ वहाँ ऊपर नीचे उड़ उड़कर छुटकू को उड़ने के गुर सिखा रही थी . पर छुटकू
टस से मस न हुआ .
“आ जा मेरे बच्चे ! डरो नहीं मैं हूँ ना यहाँ
..आ जा ..आजा .” नीचे जमीन पर बैठी बुलबुल ने पुकारा .
“इतने ऊँचे से !”- घोंसले के किनारे बैठा छुटकू
नीचे देखते हुए घबराया .
“जरा सा ही अन्तर तो है तुम्हारे मेरे बीच ..तुम बहुत
आराम से आ सकते हो क्योंकि तुम एक बहादुर बच्चे हो ! वैसे भी जैसे ही नीचे आओगे
तुम्हारे पंख ,जो अब उड़ने के लिये तैयार हो चुके हैं ,अपने आप खुल जाएंगे ..”
यह सुनते ही बड़ा बच्चा बोल पड़ा
“हाँ मैंने कुछ देर पहले एक आदमी को एक बड़ी सी
चिड़िया को पेट से गिरते देखा था ..थोड़ी ही देर में उसका बड़ा गोल पंख खुलकर ऊपर तन
गया था और वह आदमी मजे से उड़ता हुआ उतरा था .”
“हाँ , पर वह चिड़िया नहीं हवाईजहाज होता है .उसके पंख को आदमी लोग पैराशूट
कह रहे थे ” –बुलबुल ने बच्चों को बताया .तब छुटकू ने खुद को नीचे
छोड़ तो दिया पर उसने महसूस किया कि उसके पंख खुल ही नही रहे , वह घबराकर नीचे
फर्श की ओर आया लेकिन अच्छा ही हुआ कि फर्श से टकराने से पहले उसके पंख खुल गए और
उसका नन्हा नाज़ुक बदन पंखों ने सम्हाल लिया . इसलिये उसे चोट तो नहीं आई पर वह
घबरा गया . जब माँ उसके पास आई वह काँप रहा था .
“तुमने कितनी बढ़िया उड़ान भरी छुटकू !”
“मुझे पता है वह उड़ान नहीं थी माँ , मैं गिर रहा था
...वह ,बहुत डरावना अनुभव था .”
“कोई बात नहीं ..सीखने की शुरुआत अक्सर इसी तरह होती
है मेरे लाल .”
“मुझे ऐसी शुरुआत करनी ही नहीं है .” --कहता हुआ वह एक कोने में पड़े
सामान के पीछे जाकर छुप गया .
बुलबुल
सचमुच हैरान थी ..कोने में पड़े कबाड़ के पीछे से उसे निकालना बहुत मुश्किल था . मीठी
आवाज में अपनी बात कहे जा रही थी – “मेरे बच्चे यहाँ छुपाछुपाई खेलना
खतरनाक है .तुम मेरे साथ उड़कर चलो हम
दोनों शाखों और टहनियों में खेलेंगे ...”
छुटकू
...मेरे लाल ..बाहर आओ .मेरे साथ ..कोशिश तो करो . बुलबुल पुकारे जा रही थी . पर
छुटकू को माँ के साथ चुहल करने में आनन्द भी आ रहा था .माँ जैसे ही पुकारती वह और
अन्दर घुस जाता . इसी कोशिश में उसने खुद को एक ऐसी जगह पाया जहाँ लगभग अँधेरा था
. उजाला एकदम धुँधला था ..कुछ ही देर में छुटकू को लगने लगा कि यह जगह उसके लिये
नहीं हैं वह शायद खो गया है .
“अरे कोई मुझे पुकारो– “-- उसकी नन्ही पतली सी आवाज
थोड़ी दूर जाकर खत्म होगई .
“कौन हो तुम ? क्या नाम है ? अरे पंखों वाले होकर काकरोच
की तरह क्यों रेंग रहे हो ?” छुटकू ने दीवार पर चिपकी एक एक मटमैली सी छिपकली को
देखा . सोचा इसे क्यों बताऊँ असली बात .बोला--
“मैं ज़रा सैर के लिये निकला हूँ .देख रहा हूँ कि जमीन
पर चलना कितना अच्छा लगता है ”
“पर तुम्हारी सूरत बता रही है कि छुपकर भाग आए हो ...तुम
अपनी माँ की आवाज को नहीं सुन रहे ,जबकि हम साफ सुन रहे हैं !”-- छिपकली दीवार से नीचे
उतरी और कहती हुई सर्र से ऊपर चढ़ गई .
खुद ही
तो डर रही है –छुटकू ने सोचा तभी एक छोटी चुहिया भी फुदकती हुई आई .
“मैंने री ममा की बातें सुन ली है ..तुम उड़ना नहीं
सीखोगे तो सब तुम्हें चिड़िया नहीं ,चूहा कहेंगे .जैसे मुझे कहते हैं .”
“.अरे चूहा नहीं काक्रोच कहेंगे . बड़ी बड़ी मूँछों
वाला काक्रोच ...फिर एक दिन तुम सचमुच काक्रोच बन जाओगे . फिर ममा तुम्हें पहचान
भी नहीं पाएगी .” –छिपकली फिर आगई वह छुटकू की खीज का आनन्द लेना
चाहती थी .
“नहीं नहीं मुझे चूहा या काक्रोच हरगिज नहीं बनना . –छुटकू
घबरा गया . छिपकली की बातों से ऊब भी रहा था उसने पुकारा----“माँ ..माँ मुझे उड़ना है ...”
“कहाँ हो मेरे बच्चे ? बाहर आओ मैं तुम्हारा
इन्तज़ार कर रही हूँ .” छुटकू माँ की आवाज का पीछा करता बाहर आगया . बुलबुल
ने उसे चौंच में दबा टिड्डा दिखाते हुए कहा .
“देखो मै तुम्हारे लिये बहुत
बढ़िया नाश्ता लेकर आई हूँ . “
“मुझे यह चाहिये माँ ..मैंने कब से कुछ नहीं खाया—.” छुटकू की आँतें कुलबुला
उठीं .
“पर इसके लिये तुम्हें यहाँ इस टहनी तक उड़कर आना
पड़ेगा और तुम जरूर आ सकोगे . बस ज़रूरत है मन को पक्का करने की .
कहते
हुए बुलबुल बच्चे के पास आई और ,“अब तुम मेरा पीछा करना .”,कहते हुए उड़ गई . छुटकू देख
रहा था कि माँ कितनी आसानी से उड़ रही है . मुँडेर , फिर मुँडेर से नीम की शाखा तक
उड़ उड़कर उसे दिखा रही है .फिर बार बार नीचे उसके पास आकर फिर उड़ान भरकर छत की
मुँडेर पर जा बैठती है .
“जल्दी करो छुटकू . ऐसा न हो कि पूरा नाश्ता खत्म
होजाए .”
यह देख
उसके पंखों में जबरदस्त हलचल होने लगी ..और उड़कर मुँड़ेर पर जा बैठा .
“शाब्बास!” –बुलबुल चहकती हुई उसके
पास आई और उसकी पीठ पर चोंच फिरा कर प्यार किया .
“अब हमें उस टहनी तक जाना है .” कहती हुई बुलबुल उड़ी .
उसे देखते हुए छुटकू भी उड़ा .पहली बार टहनी तक तो न पहुँच पाया . नीम के तने में छोटी
सी शाख निकली थी उसी पर बैठ गया पर अगली बार उड़कर वह सीधा माँ के पास पहुँच गया जहाँ
मोटी शाख पर माँ के साथ उसके भाई-बहिन भी उसका स्वागत करने खड़े खूब चहक रहे थे .
“आखिर तुमने सीख ही लिया ना उड़ना ! जियो छुटकू !” –एक बच्चे ने चहक कर शाखा
पर फुदकते हुए खुशी जाहिर की .
“हाँ अब मुझे कोई काक्रोच तो नहीं न बुला सकेगा .” –छुटकू ने बड़े मासूम
अन्दाज में अपने मन की बात कहीं . सुनकर कुछ देर सब एक दूसरे को देखते रहे फिर एक
साथ चहक उठे . चहकने में सबसे मीठी और तेज आवाज छुटकू की थी .