सोमवार, 2 अगस्त 2021

सतरंगी और फूल


एक थी सतरंगी .

वह रंग-बिरंगे पंखों वाली एक सुन्दर तितली थी .वह केवल सुन्दर ही नहीं थी , बड़ी चचंल और मनमौजी भी थी .उसने जैसे ही उड़ना सीखा , बस अपनी मौज में यहाँ वहाँ उड़ती रहती थी .कभी इस टहनी पर तो कभी उस फूल पर . न उसे कोई रोकता था न टोकता था ..पेड़ पौधे फूल कलियाँ ,हवा ,आसमान सब कुछ जैसे उसका अपना था . जब वसन्त ऋतु आई और तमाम पेड़ पौधे लाल गुलाबी नीले पीले सफेद जोगिया ..हर रंग के फूलों से सज गए तो उसे लगा कि फूल उसे बुला रहे हैं . सतरंगी बहुत खुश थी .

एक सुबह नरम धूप में वह मौज में उड़ती हुई सैर को
निकली थी कि उसकी नजर एक पेड़ पर ठहरकर रह गई .वह पेड़ पूरी तरह फूलों से ढँका हुआ था . जैसे उसने फूलों की चादर सिर से ओढ़ रखी हो . उसकी टहनियों में पत्तों की जगह भी फूल ही थे . पाँच पंखुड़ियों वाले गुलाबी बैंगनी फूल . अगर मैं गलत नहीं हूँ तो वह पेड़ कचनार का था .

अरे वाह ,ये तो बड़े सुन्दर फूल हैं .इनके साथ मैं बहुत दिनों तक एक अच्छा समय बिता सकती हूँ


.”---सतरंगी ने तय किया और पेड़ के चारों ओर मँडराती हुई पूछने लगी –--“ओ फूलों से लदे हुए सुन्दर पेड़ , ये सारे फूल तुमने किसके लिये खिला रखे हैं ?

तुम्हारे लिये प्यारी तितली ! भला और किसके लिये  ?”——पेड़ ने सतरंगी को दुलार से देखते हुए कहा .उसे लगा कि मासूम सी नन्ही तितली के लिये इससे अच्छा जबाब नही हो सकता . पेड़ की बात सुनकर सतरंगी सचमुच बहुत खुश हुई . और एक फूल के पास जा बैठी .

‘”अहा इतने सारे और प्यारे फूल मेरे लिये !...अब मैं एक लम्बे समय इनके साथ रह सकूँगी . खूब बातें करूँगी और जब मन होगा मीठा मीठा रस भी पी लूँगी .

उसके और फूलों के बीच आकर कोई रंग में भंग न डाले , इसके लिये उसने एक तख्ती पर लिखकर टाँग दिया—

‘ये फूल सतरंगी के हैं इसलिये किसी का भी यहाँ आना सख्त मना है .

अब फूल किसी चहारदीवारी से घिरे तो थे नहीं ,जो दीवार लाँघनी पड़ती . हवा और धूप तो दीवार नहीं बनतीं न ? सो अगली सुबह जबकि धूप पेड़ों की फुनगियों से नीचे उतर भी न पाई थी कि काली और छोटी सी चिड़िया टहनियों पर फुदकती हुई फूलों तक आगई .मारे खुशी के उसकी पूँछ ऊपर--नीचे नाच रही थी . उसके पीछे ही भन् भन् करता एक भौंरा भी आगया और जल्दी ही कुछ कुछ मधुमक्खियाँ भी सन् सन् करती हुई आगईं सब फूलों से रस लेने में मगन हो गए . सतरंगी को यह बड़ा नागवार लगा . यह तो वही बात हुई कि मान न मान मैं तेरा मेहमान ... रूखे स्वर में बोली-- 

कौन हो तुम सब ? बिना किसी अनुमति के यहाँ क्यों आए हो ?”

हमें ये फूल बहुत अच्छे लगते हैं इसलिये इनसे मिलने आए हैं और क्या ...

पर ये फूल तो मेरे हैं .तुम इनसे नहीं मिल सकते . क्या तुम लोगों ने बोर्ड पर लिखी सूचना नहीं पढ़ी ?”

तितली रानी हमें पढ़ना नहीं आता .”—एक चिड़िया बोली . तितली तेवरों को और तेज कर बोली --

रानी.....?  मैं रानी कैसे हो सकती हूँ अभी तो बहुत छोटी हूँ ? ”

तो राजकुमारी तो हो सकती हो ...... हाँ तो राजकुमारी जी हमने तो कोई बोर्ड नहीं देखा ..”—एक भौंरा मजाक के लहजे में बोला .

दरअसल हमने जरूरी भी नहीं समझा .” मधुमक्खियाँ कुछ तेजतर्रार थीं सो बीच में आकर अकड़ उठीं बोलीं .पर उस समय तितली का ध्यान चिड़िया की बात पर था .

ओह ,बुरी बात कि तुमने पढ़ना नहीं सीखा ! अब सीखना शुरु करो बहुत जरूरी है ....खैर बोर्ड की सूचना मैं ही पढ़कर सुना देती हूँ .बोर्ड पर लिखा है कि इस पेड़ के पास आना सख्त मना है क्योंकि सारे फूल सतरंगी के हैं .

हें !!!...यह कब हुआ ?”—सब एकदम चौंक उठे . ऐसा तो कभी नहीं हुआ .

आज ही ..चाहो तो इस बड़े और फूलों वाले खूबसूरत पेड़ से खुद पूछलो . ये सारे फूल सिर्फ सतरंगी यानी मेरे हैं ना ? ” —अपनी बात की पुष्टि के लिये तितली ने पेड़ की ओर देखा .

यह तितली ने इतने विश्वास के साथ कहा कि पेड़ को हैरानी हुई . कुछ अफसोस भी . सतरंगी को बाँटकर खाने और मिलजुल कर रहना सीखना होगा ,पर अभी वह कुछ ऐसा नहीं कहना चाहता था जिससे नन्ही तितली दुखी हो जाए . अभी नया नया उड़ना सीखी थी . पेड़ को यह भी मालूम था कि जो कुछ कोई खुद अनुभव से सीखता है उसे वह दिल से मानता है और अपनाता भी है .

यहाँ और भी बहुत सारे फूलों वाले पेड़ हैं .जहाँ तुम लोग पराग रस लेने के साथ खुलकर गा भी सकते हो .  पेड़ ने चिड़िया भौंरे और मधुमक्खियों को कुछ इस तरह समझाया कि वे बिना किसी मलाल के दूसरे पेड़ों पर चले गए . वास्तव में वे सब नन्ही तितली को नाराज नही करना चाहते थे .

सतरंगी खुश होकर फूलों के बीच मँडराने लगी . अब वह थी और उसके पास थे बेशुमार गुलाबी बैंगनी फूल थे . उल्लास से भरी कभी उड़कर इस फूल पर तो कभी उस फूल से  . फूल खिलखिलाते रहे .

लेकिन फूल थे अनगिन . एक अनार सौ बीमार ...नहीं , कहना होगा --एक तितली और हजारों फूल . नन्ही सी जान किससे बात करे और किसे छोड़े . पर फूल पुकारे जाएं –--“सतरंगी यहाँ आओ ….सतरंगी मुझसे बात करो ...सतरंगी मेरी बात सुनो....सतरंगी तुम हमें अनदेखा कर रही हो .....ओ सतरंगी तुम मेरे पास कब आओगी ...”

चारों तरफ फूलों का शोर . सतरंगी हैरान . फूल लगातार पुकारे जा रहे थे .सतरंगी सतरंगी ...ओ सतरंगी .

ओफ् ओ ..मैं सबके पास एक साथ नहीं आ सकती ना ! मैं थक गई हूँ . ”---सतरंगी की कुछ परेशान होकर बोली .वह रस पी पीकर छक भी चुकी थी  फूलों के आसपास चक्कर लगा लगाकर थक भी गई थी .

हमें पता है कि तुम थक गई हो पर हम चाहते हैं कि तुम हमारा सारा पराग रस ले लो .—कई फूल एक साथ बोल पड़े .

हमारे पास बहुत सारा पराग रस है . वह बेकार चला जाएगा .

बेकार क्यों जाएगा ? मैं हूँ ना . धीरे धीरे सारा खत्म कर दूँगी . एक साथ नहीं कर सकती ..

ओह , ...पर नन्ही तितली हम इतना नहीं रुक पाएंगे हमें जाना है

जाना है ! क्यों ,कहाँ जाना है ?”---सतरंगी चौंकी .

वहीँ जहाँ पूरा खिलने के बाद हर फूल पेड़ को अलविदा कहकर जाता है . हमें कोई देखे न देखे ,चुने न चुने  पराग को कोई ले या न ले हमें तो जाना ही होता है .

तो पराग पाँखुड़ी सब बेकार ही चली जाती है ?”

और नहीं तो क्या . वैसे ही जैसे सही इन्तज़ाम या खरीददार न मिलने पर अनाज और सब्जियाँ फेंक दी जातीं हैं .

और जैसे खाने वाले न होने पर खाना फेंक देना पड़ता है ठीक वैसे ही ....”—सब रटे रटाए से संवाद बोल रहे थे . यह सब सुनकर तितली सोच में पड़ गई . फूल लगातार कहे जा रहे थे--

अच्छा होता कि हम ज्यादा से ज्यादा किसी के काम आते पर तुम तो अकेली हो .कहते हैं ना कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता . तुम बेचारी अकेली तितली क्या कर सकती हो .तुम्हारा कोई दोस्त भी तो नहीं ..

ओह , काश तुम ज्यादा दिन रुक सकते .या कि चिड़िया ,मधुमक्खियाँ आदि भी सब यहीं होते . तब तुम्हें यों निराश न जाना पड़ता .....”

तुम चाहो तो उन्हें अब भी बुला सकती हो .—पेड़ ने कहा . जबाब में तितली ने क्या कहा यह तो मालूम नहीं पर कुछ ही देर बाद कचनार का पेड़ चिड़ियों की चहचहाहट से झुनझुना बना हुआ था . भौंरे गुंजार कर रहे थे . मधुमक्खियाँ और कई कीट-पतंगे कचनार के फूलों से बतिया रहे थे . फूल भी खुश थे और सतरंगी भी . 

-------------------------------------