उस समय पूरब के आसमान में लालिमा फैल गई थी . चिड़ियाँ भी अपने अपने
नीड़ छोड़कर दाने की तलाश में उड़ गईँ थीं . बिरज माँ घर-आँगन बुहार चुकी थी
और पिता गाय बैलों को चारा-पानी डाल चुके थे पर बिरज और मुन्नी अभी भी गहरी नींद
में सोये पड़े थे .
"बिरज ! ओ बेटा बिरजू ! उठ ,रखवाली के लिये खेतों पर नही जाना क्या ?"
बिरज के पिता ने उसे झकझोर कर जगाया .
“जाता हूँ बापू .”–कहकर बिरज ने उठने का बहाना किया और बापू के
वहाँ से जाते ही फिर सोगया . नींद का भी गज़ब हाल है कि ऐन जागने के समय ज्यादा
गहरी और मीठी होजाती है . सपने भी खास तौरपर इसी समय आते हैं .चलते फिरते जागते से
सपने जिन्हें बिस्तर में पड़े-पड़े देखना अच्छा लगता है .बिरज भी जरूर ऐसे ही कुछ
सपने देख रहा होगा . लेकिन वह इस तरह सोते हुए ज्यादा देर तक खटिया में पडा न रह
सका । दूसरी बार तो उसकी माँ ने आकर उसे उठाकर बिठा ही दिया और मुँह पर पानी के
चार छींटे मारकर बोली ---"अभी तक नींद नही खुल रही तेरी ‘कुम्भकरन ! जब चिड़ियाँ आधा
खेत चौपट कर देंगी तब जाएगा क्या ?"
“जब देखो हर काम के लिये सब मुझे ही रगेदते रहते हैं . मुन्नी महारानी
से तो कोई कुछ कहता ही नहीं . मैडम जी चाहे जब तक सोती रहें . न खेतों पर जाना पडे
और न स्कूल का झंझट । कितना अच्छा होता कि मैं मुन्नी की जगह होता और मुन्नी मेरी
जगह ---बिरज आँखें मलते--मलते भनभनाया ।
“बेटा तू बड़ा है और जिम्मेदार भी . मुन्नी तेरी उमर की होगी तब देखना
उसे भी ऐसे ही काम करने पड़ेंगे . मेरा राजा बेटा ..सारे काम तो मेरा बिरजू ही
करता है .” ..माँ
ने लाड़ दिखाया तो बिरज ने उठकर जल्दी से हाथ-मुँह धोया , कपड़े में अचार के साथ
दो रोटियाँ लपेटीं और खेतों की ओर दौडा ।
सितम्बर का महीना था । आसमान साफ था । चिड़ियाँ चहचहाती हुई कहीं उडी जारही थी। आम के पेड के पीछे से सूरज धीरे धीरे
ऊपर उठ रहा था जैसे किसी ने बडी लाल गेंद लुढ़का दी हो । सुबह-सुबह घास पर ओस की बूँदें झिलमिला रहीं थीं। बाडों पर तोरई की बेलों में पीले फूल मुस्करा रहे थे । तिल के सफेद फूलों की जगह छोटी छोटी फलियों ने ले ली थी . आसपास गन्ने के खेतों से मीठी सुगन्ध आ रही थी। सुबह की ठण्डी हवा में ज्वार और बाजरे की रुपहली सी दूधिया बालें झूमती हुई बहुत सुन्दर लग रहीं थीं । रज्जू के मन में अपने खेतों की शोभा पर बडा प्यार उमडा। यह शोभा बापू जैसे ही दूसरे कई लोगों की दिन-रात की मेहनत का नतीजा है।रज्जन खुद अपने बापू के साथ खेतों में काम करता है । बापू कहते हैं किधरती अपनी मैया जैसी है . एक बीज के पचास बीज तक करके लौटा देती है .बिना स्वाभव की तासीर ,रंग और स्वाद बदले .
इस तरह चारों ओर देखते और खुद से बतियाते बिरज कब अपने खेत पर पहुँच
गया पता ही न चला . उस समय झुण्ड की झुण्ड काली ,भूरी, तोतिया ,पीली ,नीली चिड़ियाँ
बाजरे की बालों पर झूल रहीं थीं और मजे में दूधिया दाने निकाल रही थीं .चारों ओर
चहचहाहट और कल्लोल मची हुई थी .
"अच्छा ! तो यह बात है । अम्मा की नाराजी सही थी . देखो तो महारानियाँ
खेत में ऐसे जमी हैं जैसे हमने इनके लिये ही तो जोत-बोकर फसल तैयार की है .—बिरज ने सोचा फिर चेतावनी के लहजे में कहा --लेकिन समझलो कि यह कोई मुफ्त का माल नहीं जो
तुमने लूट मचा रखी है भुक्खड़ो!"–यह
कहकर उसने अपनी ‘गोफिन’ को सम्हाला और बहुत सारे कंकड पत्थर के छोटे टुकड़े और मिट्टी के
ढेले समेटकर मचान पर चढ गया। जो उसने गोफिन में कंकड रखकर गोफिन को घुमाते हुए
गोली की तरह कंकड छोडा तो 'फुर्र' की तेज आवाज के साथ ही बेशुमार चिड़ियाँ एक साथ
उडीं।
“देखो तो ...बापू सही बोल रहे थे . ये तो सचमुच फसल को चौपट कर देतीं .”-- बिरज ने कहा और
फिर बैठकर पास ही रखा पुराना कनस्तर बजाने व गाने लगा --"ओ हरी हरी अमियां
हरिया कुतर गए ...।"
कुछ देर गाने के बाद वहचुप होगया और मचान पर बैठे बैठे शान्त होकर चारों
ओर धरती पर टिके गोल कटोरा जैसे आसमान को देखने लगा . सोच रहा था कि वह जगह कैसी
होगी जहाँ यह नीला आसमान टिका होगा धरती वहीं तक तो होगी . बापू कहते हैं कि धरती
का कोई छोर नही है .कैसे नही है .
“अरे बिरजू !कौनसी दुनिया में खोया है ?”—मेड़ पर जाते हुए सुन्दर काका ने टोका .
“रखवाली खेत की हो रही है कि चिरैयों की ?समझ ले ,आज शाम को तेरी अच्छी धुनाई होने
वाली है .”
“हें.!! ”..बिरज जैसे एकदम जागा .उसे सचमुच अपनी भूल का अहसास हुआ . सारा खेत
फिर चिड़ियों से भर गया था .बाजरे के दूधिया दानों को बड़ी तल्लीनता के साथ लगीं
थीं मजे में खाने ..
“अरी बेशरमो ! मेरी बात एक बार समझ में नहीं आई तुम्हें ? तो लो फिर से खेत में आने का मजा चखो .”--उसने मारे गुस्सा
के फिर गोफिन उठाई और घुमा-घुमाकर तीन-चार बार चारों तरफ कंकड़ और ढेले फेंके । कंकड़
तीर की तरह सनसनाते हुए चारों तरफ गिरे और उसके साथ ही चिड़ियों का झुण्ड फुर्र्
से फिर उड़ा.इससे पहले कि शरारती बच्चों की तरह बिरज को चिढ़ाती हुई वे फिर पौधों
पर आकर झूलें .वह भी देर लगातार कंकड़ फेंकता रहा .इसके बाद चिड़ियाँ आसपास
मँडराती रहीं पर खेत में नहीं आईं .लेकिन एक छोटी सी चिड़िया वहीं पास दाना चुनने
में तल्लीन थी . मचान के पास होने के कारण कंकड़ की मार उस तक नहीं पहुँच रही थी .
पहुँच भी रही होगी तो उस पर खास असर नही हो रहा होगा या फिर उसे परवाह ही नहीं
होगी । बिरज का ध्यान उस पीले-मटमैले रंग की एक छोटी सी चिड़िया पर अटककर रह गया .वह उड़-उड़ाकर
जल्दी ही फिर से बाजरे की किसी बाली पर आ बैठती थी . बिरज ने एक बार उसी पर कंकड़
फेंका . वह उड़ तो गई लेकिन उड़ने का बहाना सा करके फिर कच्चे दूधिया दानों वाली
रुपहली बालपरआ बैठी .
“बड़ी ढीठ और बेसरम चिड़िया है . क्या अभी तक इसका पेट नही भरा होगा ?जरा सा पेट ,और
कितना खाएगी ?.”–बिरज को खीज हुई वह एक बार और बड़ा सा कंकड़ फेंकने ही जा रहा था कि
कुछ सोचकर रुक गया और ध्यान से उसे देखने लगा . वह बहुत जल्दी जल्दी चोंच चलाकर
कुछ दाने लेकर उड़ जाती और कुछ ही देर में वापस आकर किसी बाल पर बैठ जाती .
देखना चाहिये कि आखिर सारा दाना कहाँ लेकर जा रही है?और किसके लिये? ---बिरज की
जिज्ञासा तेज हुई तो वह चिड़िया का पीछा करता हुआ खेत के कोने पर खड़े नीम के पेड़
तक पहुँच गया .उसने देखा कि चिड़िया पास ही खड़े एक शीशम के पेड़ की टहनियों के
झुरमुट में कहीं किसी टहनी पर बैठ गई है । इसके साथ ही घोंसला में चींचीं..चींचीं
की आवाजें उभरीं ।
"अरे वाह ! वहाँ तो घोंसला है और उसमें बच्चे भी हैं शायद. इसे तो देखना होगा
."
वह नीम की डाली पर चुपचाप दबे पाँव चढ गया और वहाँ से झाँककर देखा कि
शीशम के झुरमुट में बने छोटे से घोंसले में तीन-चार चोंचें खुलीं हैं और बेसब्री
के साथ माँ से दाना माँग रहीं हैं । आगे बढ बढ़कर , चोंच खोल खोलकर ।
"आ हा "—बिरज का मन खिल उठा .
" अच्छा तो बाजरे के दूधिया दाने यह अपने बच्चों के लिये ला रही थी ! ये
बच्चे भी तो हमारी तरह ही खाने की चीजों पर झपट रहे हैं । हमारी तरह ही शिकायत करते
हैं कि माँ तुमने मुन्नी को ज्यादा दिया है। माँ तुम मुझे हमेशा बाद में देती हो।
और कम भी..."
बिरज को लगा कि चिड़िया माँ की तरह ही उन्हें समझा रही
है--"धीरज रखो मेरे बच्चो! हमारे पास इस समय खूब सारा भोजन है ।पास ही खेत
में स्वादिष्ट दूधिया दानों का भण्डार है । तुम जितना चाहो खा सकते हो।"
इसके साथ ही बिरज को महसूस हुआ कि चिड़िया अफसोस भी कर रही
है--"लेकिन एक लड़का है न ,बार-बार भगा देता है । ठीक से दाना निकाल भी नही
पाती कि चिल्ला उठता है । कंकड़ मारता है ।"
बिरज को यह सोच कर ग्लानि का अनुभव हुआ । उसने चिड़ियों को बिल्कुल
दाना चुगने नहीं दिया . चिड़ियाँ अपना पेट कहाँ से भरें और कैसे भरें । उनके कोई
खेत या नौकरी तो है नही। और उनका नन्हा सा पेट । आखिर कितना खाएंगी!
इसके बाद उसने सारे कंकड़ फेंक दिये औरदेर तक उस छोटी चिड़िया का
चुगना-चुगाना देखता रहा ।
चकमक नवम्बर 1988 में प्रकाशित
चकमक नवम्बर 1988 में प्रकाशित
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