सोमवार, 15 जुलाई 2013

वर्षा का स्कूल

आसमान में शुरु होगया,
वर्षा का स्कूल।
सूरज की जो बजी 'बेल,'
सुन दौडे रेलमपेल।
नन्हे -नन्हे बादल ,
लादे भारी बस्ता ,
और पानी की 'बाटल '।

याद दिलाते मम्मी-पापा ,

नदी समन्दर ..यही निरन्तर,
कुछ गये तो नहीं भूल ??
   आसमान में शुरु हो गया ,
   वर्षा का स्कूल --।

कक्षाओं में ,

मचा शोर है ।
बडा जोर है --
"दीदी--दीदी..!..दीदी-दीदी.!!
कितने मुश्किल,
गिनती टेबल !
आज नहीं यह ,
"ए फार एपल  ।"
हम तो आज पढेंगे केवल,
मीठे--मीठे गीत ।"
मुस्काई सुन दीदी हवा  ---
"चलो तुम्हारी जीत ।"

पढकर खुशी-खुशी घर लौटे ,

नन्हे बादल ।
धूम मचाते और चिल्लाते ,
कविता बौछारों की गाते ।
पर्वत मैदानों ने खोले ,
हरियाली के छाते ।
"नहीं गई क्यों मैं भी पढने ?
यों शरमाई धूल ...
आसमान में शुरु होगया ,
वर्षा का स्कूल
( चकमक जुलाई 2000 में प्रकाशित)

6 टिप्‍पणियां:

  1. एकदम कोमल सी कविता है ये...आनंद आ गया पढने में! :) :) :)

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  2. वर्षा पर बड़ा प्यारा नवगीत है। इसका प्रवाह मन हर्षाता है तो भाव गुदगुदाते हैं।

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  3. अच्छी लगी यह बाल कविता भी.

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