मंगलवार, 19 मार्च 2024

बना रही है घर

 

बना रही है घर गौरैया।

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जब चाहे तब उडती थी .

आँगन-गली फुदकती थी।

जहाँ मिला कर लिया बसेरा,

चिन्ता उसे न रहती थी .

यही कि है बेघर गौरैया .

बना रही है घर गौरैया .

 

तिनका-तिनका चुनने को .

नया घोंसला बुनने को .

नये घोंसले में नन्हों की,

चीं--चीं...चूँ-चूँ सुनने को .

कितनी है आतुर गौरैया .

बना रही है घर गौरैया .

 

टुमक-टुमक--टुम चलती है .

पकड चोंच में घिसती है .

पटके ,तोडे तिनकों को ,

यों हर तरह परखती है .

कितनी कुशल सजग गौरैया .

बना रही है घर गौरैया .

 

गिलहरियों ने उसको छेडा .

कौआ-बिल्ली करें बखेडा .

जब भी जहाँ जमाए तिनके ,

अम्मा ने हर बार खदेडा ।

फिर भी है तत्पर गौरैया ,

बना रही है घर गौरैया ।

 

अम्मा ,यह उसका भी घर है .

नन्ही चिड़िया है, क्या डर है .

उसको नीड़ बनाने दो ,

सपने नए सजाने दो .

चूँ चूँ चक् चक् होगी मैया .

खुशियाँ लाएगी गौरैया .

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