एक जगह जमीन बड़ी ऊबड़-खाबड़ थी । ऐसी कि वहाँ न अच्छी तरह खेती की जा सके न मकान बनाया जा सके । मिट्टी के टीले , बड़े हठीले जमे थे सालों से । हटने तैयार ही नहीं । तब वहाँ एक जेसीबी मशीन लाई । टीलों को देखकर गर्व से बोली –"–मैं जहाँ हाथ रखदूं पहाड़ गायब होजाए ,ये चिट्टे चिट्टे से टीले क्या हैं !”
“तुम्हारा एक ही हाथ है कैसे हटाओगी ये चिट्टे से टीले ?”–--आदमी जो जमीन का मालिक था ,बोला ।
मशीन चिढ़कर बोली---"तुम्हारे
दो हाथ हैं । जरा उस उस पत्थर को ही सरकाकर दिखाओ । मेरा एक हाथ ही काफी है ।
देखते नहीं कितना लम्बा और मजबूत है मेरा फौलादी हाथ ?”
“मुझसे भूल होगई ।”–आदमी ने मशीन
को गौर से देखा । सचमुच उसके मजबूत हाथ की पहुँच दूर तक थी । हाथ में एक बहुत बड़ा
दाँतेदार सूप भी था जिससे मिट्टी खोदने का काम बखूबी होता होगा ।
“खोदने का ही नहीं भरने का भी .”-–मशीन ने आदमी की जानकारी पूरी करते हुए कहा ।
“बस तुम्हें मिट्टी ढोनेवाला कोई पिट्ठू बुलाना होगा .”
“पिट्ठू नहीं, डम्पर कहो ।”---आदमी बोला--- “मिट्टी ढोने का काम उससे बेहतर कोई नहीं कर सकता ।”
“हाँ हाँ मेरा मतलब वही था ।”– मशीन लापरवाही से बोली । डम्पर को वह मशीन कुछ
शेखीखोर लगी ।
“तुम कुछ बढ़ चढ़कर नहीं बोल रही हो ।”
“यह तो तुम्हें मालूम होजाएगा जब मिट्टी ढोओगे ।”
“ठीक है ठीक है ।”--डम्पर ने
उसके बड़े हाथ और सूप के बड़े बड़े दाँते देखकर कहा ।
मशीन ने अपने दाँतेदार सूप को टीले में गहरा घुसाया और
ढेर सारी मिट्टी खोद ली और सूप भरकर डम्पर की पीठ में सरका दी । दस-बारह सूप में
डम्पर पूरी तरह भर गया । मिट्टी को कुछ दूर एक गड्ढे में उड़ेलकर डम्पर फिर आया । मशीन
फिर डम्पर में मिट्टी भरने लगी ।
“पहले कुछ ज्यादा थी मिट्टी । चढ़ने में मुश्किल हुई थी
। एक दो सूप कम ही डालना ।” --डम्पर
ने कहा ।
मशीन ने कोई जबाब नहीं दिया । बस मिट्टी खोदती और सूप
भरकर डम्पर में डालती रही । डम्पर ने रोका -
“बस ,बस काफी है
।”
“ अरे ,बस इतने में ही घबरा गए ! दो चार सूप और भरने दो ।”
“नहीं , बिल्कुल नहीं । मैं फिर लौटकर आता हूँ न । तब तक
मिट्टी खोदकर रखो .”-- डम्पर ने कहा पर मशीन नहीं मानी । इंजन
स्टार्ट करते करते उसने दबा दबाकर चार सूप मिट्टी और भरदी फिर विजयीभाव से अकड़कर बोली
--
“चलो ,अब जाओ ।”
“मैने तुमसे मना किया था न ?”
“तो क्या होगया ? इतने कमजोर हो क्या ? तुम तो सचमुच पिट्ठू ही निकले । ”
डम्पर को बहुत बुरा लगा । सोचा कि जेसीबी ने उसकी बात
नहीं सुनी और अब उसे नीचा भी दिखा रही है । तो ठीक है । डम्पर ने इंजन बन्द कर
दिया ।
डम्पर को खड़ा देख जेसीबी चिल्लाई –"खड़े क्यों हो ,जाओ ।”
“नहीं जा सकता । पहले मिट्टी कम करो ।”
“अब भर गई तो भर गई , भरी मिट्टी कम नहीं हो सकती ।”
“मिट्टी तो कम करनी ही पड़ेगी ।” डम्पर भी अड़ गया । एक घंटा बीत गया । आदमी ने देखा काम
ठप्प पड़ा है । वह कुछ कहता उससे पहले ही मशीन बोल पड़ी –--" इसकी जिम्मेदार मैं नहीं । मैने मिट्टी भरदी है । देखो
ना ,यह पिट्ठू आगे बढ़ता ही नहीं ।”
“मैं क्या करूँ इंजन
ने साफ मना कर दिया है चलने से । देखो ।” --डम्पर ने
घर्र घर्र इंजन चलाकर दिखाया । ढेर सारा धुँआ उड़ा पर गाड़ी आगे नहीं बढ़ी ।
“मेरे मना करने पर भी मिट्टी ठसाठस भरदी । अब मिट्टी कम हो
तो आगे बढूँ । ”
आदमी ने देखा डम्पर की बात सही है । मशीन से बोला --
“काम पूरा नहीं होता तो इसकी जिम्मेदारी तुम पर भी आएगी ।
जब काम दोनों को मिलकर ही करना है तो यह झगड़ा क्यों ? तुम मिट्टी कम करो ताकि काम आगे बढ़े ।”
मन मार कर मशीन को मिट्टी हटाने तैयार होना पड़ा । डम्पर
ने पीठ को झुकाया ,मशीन मिट्टी हटाने लगी
“ अब ठीक है ?”
“ नहीं , और हटाओ..हटाओ ..और और …”
यह कहते कहते डम्पर ने पूरी मिट्टी नीचे सरका दी ।
“यह क्या किया तुमने ?”
“मैने क्या किया ? मिट्टी तो
तुम्ही हटा रही हो ।”
मशीन चुपचाप दोबारा मिट्टी भरने लगी । लेकिन समझ गई कि
यह पिट्ठू उतना भी मामूली नहीं जितना उसने समझा था ।
वाह
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