गुरुवार, 19 मार्च 2015

मुनमुन जी का पेपर

आज सुबह था मुनमुन जी का ;
पहला-पहला पेपर
पहुँच गई स्कूल हुलस,
सबसे पहले बनठन कर .
पेपर करके घर आई ,
दीदी पर रौब जमाया .
नखरों से खाना खाया ,
फिर ऊधम खूब मचाया .

चाचा बोले— ओ मुनमुन जी !
जरा दिखाओ पेपर .
देखूं तो दस में से कितनों के ,
सही लिखे हैं उत्तर .

क्या देखोगे चाचा ! मैं
लिख आई सबके उत्तर .”
अच्छा ?? देखूं तो , लिख आई
पहले का क्या उत्तर .

पहला ही बस छूट गया ,
बाकी सारे लिख आई .
और दूसरा ?
जाने कैसे इसे भूल ही आई .

चलो , तीसरा ?
इसे छोड़ बाकी सारे आते थे .
चौथे का क्या.. ?
चाचा ! बच्चे शोर मचाते थे .”
और पांचवां ,छठवां ?
ये दीदी ने नहीं पढाए .
सिर खुजलाती मुनमुन बोली ,
चाचाजी मुस्काए .

गोलमाल सातवाँ , आठवाँ
छूटा कहीं भटककर .
और पूछलो जो भी चाहो ,
केवल नवां गटककर .

दसवां तो कर आई होगी .”
हंसकर बोला बंटी .
लिखने ही वाली थी ,तबतक
बज गई टन टन घंटी .”