शुक्रवार, 29 नवंबर 2024

पंखों वाला बीज

दोस्तो यह कहानी मेरे नए कहानी संग्रह  'नदी झूठ नहीं बोलती ..' से अवतरित है जो प्रेम प्रवासी पब्लिशिंग भारत 3/186 राजेन्द्रनगर सेक्टर-2 साहिबाबाद गाज़ियाबाद 201005 से प्रकाशित हुआ है । अमेजॉन पर भी उपलब्ध है । कहानी पढ़कर लिखिये आपको कैसी लगी । हो सके तो मँगवाइये ।

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पंखों वाला बीज

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उस वीरान और सूखी ज़मीन में भी एक पौधा अपने हरे और दूध से भरे पत्तों के साथ खुश था . सफेद और हल्के जामुनी रंग के बटन जैसे छोटे छोटे फूलों वाले उस पौधे के सपने बड़े नहीं थे , कोई भी जगह मिले ,जहाँ कोई पौधा उगना पसन्द न करे ,वहाँ अपनी जड़ें जमा लेता .पानी खाद मिले या न मिले ,कोई उसकी ओर देखे या न देखे ,उसे कोई परवाह नही थी .वह अपने पत्तों में लबालब दूध भरे हवा में लहराता रहता .उसके गुच्छा गुच्छा फूल धूप में मुस्कराते रहते थे .शायद वे यह सोचे बिना कि दूसरे पौधों की तरह उनका किसी को ध्यान नहीं रहता ,दुनिया उनके लिये एक खूबसूरत उपहार जैसी है लेकिन डोडे के घर में बन्द बड़े हो रहे उसके बीज बच्चे ऐसा नहीं सोचते थे .उन्होंने  आँखें भी नहीं खोलीं थीं और डोडे के अन्दर ही धीरे धीरे बड़े हो रहे थे तभी आपस में बातें करके तय कर लिया था कि वे यहाँ से कहीं दूर चले जाएंगे .कहानी वाली प्यारी सी दुनिया में .

पप्पा की तरह हम किसी सूखी सुनसान जगह में नहीं रहना चाहते .

हाँ, हम वहाँ जाएंगे जहाँ काँटे कंकड़ धूल न हों.

और जहाँ रंग बिरंगी पतंगें लहराती हों , रात में जुगनू उड़ते हों , तारे टिमटिमाते हों ..

एक दिन जब उनके पिता ने उन बीज बच्चों के लिये दरवाजा कोलते हुए कहा –

बच्चो ! अब समय आगया है कि तुम लोग इस बन्द कमरे से निकलकर बाहर की दुनिया देखो .

येssss”...--सभी बच्चे खुशी से चिल्लाए .

बाबा हमें पंख चाहिये.

पंखों का क्या करोगे मेरे नन्हे मुन्नो?” पौधे ने पूछा . 

हमें दूर हवा में तैरना है .जैसे कहानी वाली मछली पानी में तैरती है . जैसे पतंग हवा में लहराती है ,चिड़ियाँ आसमान में उड़ती हैं ,ठीक वैसे ही .

पौधे ने समझाया कि ऐसा करना न ज़रूरी है और न ही आसान है .

देखो किसी बच्चे को उसके माता पिता ने पंख नहीं दिये . कहते हैं ऐसे सुन्दर बच्चों को डायन अपने साथ उड़ा ले जाती है .”

डायन क्या होती है ?”

उसे तुम मुसीबत कह सकते हो .वह बारिश ,आँधी किसी भी रूप में आजाती है और मनमाने तरीके से उड़ा ले जाती है .

लेकिन बच्चे तो बच्चे थे . अड़ गए अपनी ज़िद पर . आखिर मदार के उस पौधे ने डोडे का दरवाजा खोलने से पहले सारे बच्चों को पंख लगा दिये .रेशम से भी मुलायम नाजुक रेशे वाले पंख जो चाँदी की तरह चमकते थे और बीज-बच्चों को आसानी से लम्बे समय तक आसामान में उड़ा सकते थे . सारे बच्चे घर का दरवाजा खोलकर बाहर निकले .पैराशूट के साथ प्लेन से उतरते जवानों को तो आप सबने देखा ही होगा ठीक वैसे ही आक के सारे बच्चे बीज निकल कर इधर उधर उड़ चले . खुली हवा और धूप में नई दुनिया को देखकर फूले न समाए .बीज बच्चों ने हवा का अंचल पकड़ा और इधर उधर खूब मन भर जाने तक तक उड़ते रहे . जब सिर पर तना हुआ सूरज नीचे उतरने लगा और खजूर के पेड़ की छाया नदी के दूसरे किनारे को छूने लगी तब हवा ने कहा –-“अच्छा बच्चो ! अब मैं आराम करूँगी . तुम लोग अपने पसन्द का कोई खेल चुन लो .

हवा चली गई तो बच्चे भी सैर से थक गए थे इसलिये उतरकर कोई सहजन की टहनी पर जा बैठा तो कोई मधुमालती के फूलों से बातें करने लगा .तो कोई गुलाब की झाड़ियों में जाकर अटक गया .इस तरह पंखों वाले सारे बीज बच्चे उड़ान छोड़कर कहीं न कहीं रुक गए . लेकिन एक बीज ,जो शुरु से ही सबसे अलग होगया था ,उड़ता हुआ दूर चला गया थ .

अहा ,आसमान में उड़ना कितना मजेदार है !” वह उड़ते हुए अपने आपको सुना रहा था . उसके रुपहले रेशमी पंख धूप में ज्यादा चमक रहे थे . हवा में लहराते कीट-पतंगे, चिड़ियाँ और रंगबिरंगी पतंगें .. सब उसी के बारे में बात कर रहे थे .

अरे देखो वो छोटा सा पंखो वाला बीज बच्चा . हमने ऐसा पंखों वाला बीज तो पहले तो कभी नहीं देखा . पाँच रंगों वाली पतंग लहराते हुए बोली .

हाँ पंख भी तो कितने सुन्दर हैं !”—तितली कह रही थी . वहीं दूसरी चिड़ियाँ हवा में कलाबाजी खाती हुई कह रही थीँ--

हमारे पंख तो आजू बाजू में केवल दो पंख हैं पर इसे तो चारों ओर पंख मिले हैं ,सूरज की किरणों की तरह चम चम चमकते रुपहले .”

यह सुन सुनकर बीज और भी लम्बी उड़ानें भरता कभी किसी तितली को देखकर कहता –तुम मेरी जितनी ऊँचाई तक आओ ना . कभी किसी पतंग से बातें करता—

अरे तुम्हारे साथ यह धागा क्या है ?”

वह सब छोडो , देखो कि मैं कितनी ऊँचाई पर उड़ सकती हूँ . तुम चाहो तो मेरे कन्धों पर सवार होकर दूर तक उड़ सकते हो . पर मुझे डर है कि तुम बच्चे हो घबरा न जाओ .—पतंग ने कहा .

तब तो मैं ज़रूर चलूँगा .” यह कहकर बीज पतंग के बाजू पर सवार होगया . और देर तक पतंग के साथ लहराता रहा .

धीरे धीरे शाम होने लगी . चिड़ियाँ अपने घौंसलों की ओर लौट चलीं . पतंगें भी हवा की छत से नीचे उतरने लगीं . सूरज ने सारी धूप समेट ली . अचानक उस पंखों वाले बीज ने अपने आपको अकेला पाया . एक चिड़िया लौटती हुई कह रही थी –-बच्चे घर नहीं जाना क्या?”

नहीं मैं कुछ देर और रुकना चाहता हूँ . पंखों वाले बीज ने कहा . थोड़ी देर में ही आसमान में कई तारे उग आए .पूरब में आधे से भी आधा चाँद भी उभर आया . धरती से आसमान तक धुँधला सा अँधेरा फैल गया था .

ओह अँधेरा होते ही कितना सन्नाटा होगया . सारी चहल-पहल धूप के रहते ही क्यों होती है ?”

क्योंकि तुम्हारे लिये रात आराम के लिये होती है. हम लोग दिन में आराम करते हैं . –एक जुगनू टिमटिमाता हुआ उसके पास से गुजरा .

कुछ देर मुझसे बात करो न !”

क्या तुम्हें घर नहीं जाना ? तुम्हारी माँ तुम्हें तलाश रही होगी .मुझे देर होजाती है तो मेरी माँ बहुत परेशान होजाती है .

माँ.. ––अचानक बीज को याद आया कि उसने दिनभर माँ के बारे में तो सोचा ही नहीं .वह अभी तो बच्चा ही है . सचमुच उसे माँ की ज़रूरत है .

ओह मुझे माँ के पास जाना है .”–वह पंखों वाला बीज उदास होगया . अब आसमान में तैरना उसके लिये उतना मज़ेदार न रहा .पर मुश्किल यह हुई कि वह भूल ही गया कि वह कितनी दूर आगया है माँ जाने कहाँ होगी .

तुम्हें पता है मेरी माँ कहाँ है ?”–उसने पास ही उड़ते जुगनू से पूछा .

नहीं भला मुझे कैसे पता हो सकता है. तुम्हें किसी चिड़िया से पूछना चाहिये था .”–यह कहकर जुगनू चलता बना . नन्हा बीज उसे असहाय सा देखता रहा. अचानक बिना आवाज किये एक उल्लू उसके पास से गुजरा

किस सोच में डूबा है रे बालक ?” –.

कौन हो तुम ?क्या मुझे मेरे घर का पता बता सकते हो ?”

अजीब बात है कि मुझसे पूछ रहे हो ,जबकि तुम खुद नही जानते. कोई बच्चा ऐसा भुलक्कड़ भी होसकता है , यकीन नहीं होता .

अपना घर भूल गए दुखी बच्चे को तुमसे यह उम्मीद तो नहीं थी.”-–बीज ने उदास स्वर में कहा तो उल्लू नरम लहजे में बोला .

बुरा न मानना भाई ,हम तो जहाँ भी बसेरा करते हैं हमारा घर बन जाता है .घर छोड़ देते हैं तो बस छोड़ देते हैं.

पर मुझे माँ याद आ रही है.” –बीज रुआँसा होगया तो उल्लू प्यार से बोला --

अरे अरे ,रोओ नहीं बच्चे ,देखो शायद उस झाड़ी को ज़रूर पता होगा . भूले भटके बच्चों को वह पास बिठा लेती है .

उल्लू की बात सुनकर वह पंखों वाला बीज झाड़ी के पास गया .

मैं अपने घर को भूल गया हूँ . मुझे माँ के पास जाना है . बीज की बात का झाड़ी ने कोई जबाब नहीं दिया . लेकिन झाड़ी के काँटों में उसके रेशमी पंख भी उलझ कर टूट गए . वह नीचे ज़मीन पर गिर पड़ा . उसके गिरते ही एक मीठी दुलारभरी आवाज आई --

आ गया मेरे बच्चे ! आ मेरी गोद में आजा .” यह कहते हुए उस नन्हे बीज को धरती ने अपनी नरम गरम गोद में समेट लिया .

वह नन्हा बीज अब माँ के पास आकर सचमुच बहुत खुश था .

मंगलवार, 19 मार्च 2024

बना रही है घर

 

बना रही है घर गौरैया।

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जब चाहे तब उडती थी .

आँगन-गली फुदकती थी।

जहाँ मिला कर लिया बसेरा,

चिन्ता उसे न रहती थी .

यही कि है बेघर गौरैया .

बना रही है घर गौरैया .

 

तिनका-तिनका चुनने को .

नया घोंसला बुनने को .

नये घोंसले में नन्हों की,

चीं--चीं...चूँ-चूँ सुनने को .

कितनी है आतुर गौरैया .

बना रही है घर गौरैया .

 

टुमक-टुमक--टुम चलती है .

पकड चोंच में घिसती है .

पटके ,तोडे तिनकों को ,

यों हर तरह परखती है .

कितनी कुशल सजग गौरैया .

बना रही है घर गौरैया .

 

गिलहरियों ने उसको छेडा .

कौआ-बिल्ली करें बखेडा .

जब भी जहाँ जमाए तिनके ,

अम्मा ने हर बार खदेडा ।

फिर भी है तत्पर गौरैया ,

बना रही है घर गौरैया ।

 

अम्मा ,यह उसका भी घर है .

नन्ही चिड़िया है, क्या डर है .

उसको नीड़ बनाने दो ,

सपने नए सजाने दो .

चूँ चूँ चक् चक् होगी मैया .

खुशियाँ लाएगी गौरैया .

शुक्रवार, 1 दिसंबर 2023

पेड़ की कविता

 

एक थी सतरंगी .

सतरंगी रंग-बिरंगे पंखों वाली एक सुन्दर तितली थी .वह केवल सुन्दर ही नहीं , चचंल और मनमौजी भी थी . और सबकी लाड़ली भी . उसने जैसे ही उड़ना सीखा , बस अपनी मौज में यहाँ वहाँ उड़ती रहती थी .कभी इस टहनी पर तो कभी उस फूल पर . पेड़ पौधे फूल कलियाँ ,हवा ,आसमान सब कुछ जैसे उसका अपना था . जब वह नन्हे सतरंगे पंखों को फैलाकर फूलों की तलाश में निकलती तो सब मुस्कराते हुए उस नन्ही तितली को देखते रहते थे . जब वसन्त ऋतु आई और तमाम पेड़ पौधे फूलों से सज गए . लाल ,गुलाबी, नीले ,पीले ,सफेद जोगिया ..हर रंग के फूल . फूलों को देखकर सतरंगी बहुत खुश थी .

एक सुबह नरम धूप में वह अपनी मौज में उड़ती हुई सैर को निकली थी कि उसकी नजर एक पेड़ पर ठहरकर रह गई . वह कोई ऐसा वैसा पेड़ नहीं था . उसके पत्ते और फूल बोलते थे . जब वसन्त ऋतु आती तो उसमें फूलों की जगह तो फूल होते ही थे , पत्तों की जगह भी फूल ही होते .उन दिनों वह पूरी तरह फूलों से ढँका हुआ था . जैसे किसी ने उसे फूलों की चादर ओढ़ा दी हो . पाँच पंखुड़ियों वाले फूल जिनकी गुलाबी पंखुड़ियों में बैंगनी रंग से सजावट की गई थी , इतने सुन्दर थे कि देखो तो देखते ही रहो . सतरंगी भी देखती रह गई .

वा...ह इतने सारे और प्यारे फूल तो मैंने कभी नहीं देखे .”---सतरंगी पेड़ के चारों ओर मँडराती हुई पूछने लगी --“ओ फूलों से लदे हुए शानदार पेड़ , इतने सारे फूल किसके लिये सजाए हुए हैं ? 

किसके लिये ?” -–पेड़ को ऐसे सवाल की कल्पना नहीं थी . एक नन्ही खूबसूरत तितली को देख पेड़ को बड़ा दुलार आया और अनायास ही फूलों लदी टहनी को झुलाते हुए बोला --

बेशक तुम्हारे लिये प्यारी तितली और भला किसके लिये  ?”

‘”अहा , सचमुच ये सारे फूल मेरे लिये हैं !” --पेड़ की बात सुनकर सतरंगी खुशी से फूली न समाई .

अब मुझे कहीं और जाने की ज़रूरत नहीं है . एक लम्बा ,सुहाना समय इनके साथ बिता सकूँगी . खूब बातें करूँगी और मीठा मीठा रस भी मेरा ही होगा .

और फिर ,कोई और वहां न आए ,इसके लिये उसने एक तख्ती पर छोटी सी कविता लिखकर एक टहनी पर टाँग दिया .

ये फूल सिर्फ सतरंगी के हैं . कोई इधर नहीं आना .

अगर भूल से भी आए तो देना होगा ज़ुर्माना ..

मेरी कविता अच्छी है न ?” –उसने खुद से पूछा और खुद ही ज़बाब भी दिया –-“हाँ बेशक अच्छी है .

लेकिन फूल किसी कमरे में तो बन्द थे नहीं ,जो किसी आने के लिये दीवार लाँघनी पड़ती . हवा और धूप की तो कोई दीवार बनती नहीं है . अगली सुबह जबकि धूप पेड़ों की फुनगियों से नीचे उतर भी न पाई थी ,दो-तीन काली और छोटी सी चिड़ियाँ टहनियों पर फुदकती हुई फूलों तक आगईं और गाने लगी –--" चीं चीँ चुक चुक ..चीं चीं चुक्....कहाँ छुपे थे तुम अब तक ..

मारे खुशी के उसकी पूँछ ऊपर--नीचे नाच रही थी . उसके पीछे भन् भन् भन् भन् गाते भौंरे भी आगए और उनकी आहट पाकर पीछे से कुछ मधुमक्खियाँ भी सन् सन् सन् सनाती हुई आगईं . सतरंगी को बहुत बुरा लगा कि कैसे कोई बिना पूछे दूसरों की चीज़ को अपनी मान सकता है .यह तो सरासर गलत है .

कौन हो तुम सब ? यहाँ क्यों आए हो ?”

क्यों आए हो ! यह सवाल कुछ अजीब नही है नन्ही ?-एक चिड़िया बोली .

फूलों के पास भला कौन नही आना चाहेगा ? फूल किसे अच्छे नहीं लगते ?

अच्छे लगते हैं लेकिन ये सारे फूल तो सिर्फ मेरे हैं ?”

हें... !” सतरंगी की बात से सब चकित हुए .

शायद तुम लोगों ने बोर्ड पर लिखी मेरी कविता नहीं पढ़ी .

ओ हो तुम कविता भी लिखती हो ?  लेकिन तितली रानी हमें पढ़ना नहीं आता .”—एक दूसरी चिड़िया बोली तो तितली के तेवर तेज हुए--

मैं मज़ाक नहीं कर रही

यह सुनकर भौंरा मुस्कराया--- हम मानते है  तितली रानी ..रानी नही ..राजकुमारी . हाँ तो राजकुमारी जी , क्या लिखा है आपने बोर्ड पर ..

“ असल में हमने वह जरूरी भी नहीं समझा .मधुमक्खियाँ कुछ तेजतर्रार थीं सो अकड़कर बोलीं .

“ ओह , बहुत बुरी बात है कि तुम्हें पढ़ना नहीं आता ! उससे भी बुरा यह कि पढ़ना नहीं चाहते ..खैर मैं ही समझा देती हूँ , कविता का मतलब है कि ये फूल केवल तितली के हैं . कोई और यहाँ न आए . आए तो जुर्माना भरना पड़ेगा ...  

अरे !! यह कब हुआ ?”सब फिर चकित हुए .

आज ही ..चाहो तो इस शानदार पेड़ से पूछलो ...

सबने पेड़ की पेड़ की ओर सवालिया नज़रों से देखा . पेड़ क्या कहता . ऐसा उसने तितली से खुद ही कहा था लेकिन दुलार से मन रखने कही गई बात का नन्ही तितली ऐसा मतलब निकालेगी , उसने भी सोचा तो नहीं था .

ऐसा भी कहीं होता है ! ..इस बात को हम नहीं मानने वाली .”–-मधुमक्खियाँ सन्सनाते हुए बोलीं पर तितली अपनी बात पर अटल थी .

पेड़ अब सचमुच उलझन में था कि किसकी बात माने ,किसकी नहीं . तितली को इस तरह समझाना मुश्किल होगा . काफी सोच विचारकर पेड़ ने सतरंगी की बात ही रखी . चिड़िया , भौंरों ,मधुमक्खियों को उसने इशारों में कुछ समझाया फिर सबको सुनाते हुए बोला --  

मुझे माफ करना दोस्तो ,सच है कि इस बार मैंने सारे फूल नन्ही सतरंगी के नाम कर दिये हैं .वैसे भी इन दिनों फूलों की कोई कमी नहीं है . आपको यहाँ वहाँ कहीं भी बहुत सारे फूल मिल जाएंगे . तुम सब वहाँ से जरूरत का पराग ले सकते हो .

मधुमक्खी पेड़ की बात ठीक से नहीं समझी . अड़ गई .

मुझे यहीं फूल चाहिये ..आने वाले बच्चों के लिये जल्दी जल्दी शहद इकट्टा करना है .

तब पेड़ ने धीरे से मधुमक्खी को समझाया—-“प्यारी मधुरानी , सतरंगी ने पहलीबार फूल देखे हैं . अभी उसे देखने दो .देखना जल्दी ही वह तुम्हें खुद न बुलाए तो कहना .

सबने पेड़ की बात मानली और चुपचाप चले गए .सतरंगी खुश होकर फूलों के बीच मँडराने लगी . अब वह थी और फूल थे .फूल थे और वह थी . कभी इस फूल पर जाए कभी उस फूल से बातें करे .

लेकिन फूल थे बेशुमार . सब तितली को अपने पास बुलाएं --“सतरंगी यहाँ आओ नन्ही हमसे बात करो... मेरे पास बहुत सारा पराग रस है...सतरंगी सुनो ना ....प्यारी तितली तुम एक बार भी मेरी तरफ नहीं आईं ..अरे  मुझे अनदेखा कर रही हो ...सतरंगी...सतरंगी ...

चारों तरफ फूलों का शोर . तितली हैरान . फूल लगातार पुकारे जा रहे थे ---“सतरंगी ..सतरंगी ..

“ ओफ् ओ ..मैं सबके पास एक साथ नहीं आ सकती ना ! अभी थक भी गई हूँ .

पर हम तुम्हारा इन्तज़ार कर रहे हैं...

अरे थोड़ा सब्र रखो . मैं धीरे धीरे सबके पास आऊँगी .

पर उतना समय नहीं है हमारे पास . हमें जाना होगा !

जाना है ! कहाँ जाना है ? क्यों जाना है ? ”---सतरंगी चौंकी .

वहीं , जहाँ से हम आए हैं .क्योंकि हर फूल को जाना ही होता है एक दिन .

फूलों की बात सही है प्यारी सतरंगी !” पेड़ ने कहा -- फूलों के साथ जितना समय बिता सकती हो मन भरकर बिता लो , पराग रस ले सकती हो ले लो . वरना बेकार ही जाएगा .

पर मैं इतना सारा रस अकेली नहीं ले सकती . वह बेकार जाएगा यह तो और भी बुरा होगा ..अब मैं क्या करूँ ?

इसका एक उपाय है मेरे पास . बताऊँगा . फिलहाल मैंने एक कविता लिखी है . सतरंगी तुम सुनना चाहोगी ?”

ज़रूर चाहूँगी .

तब पेड़ ने अपनी कविता सुनाई --

एक दिन दीदी ने पूछा ,

बच्चो ! एक बात बताओ .

यदि भोजन अधिक बना हो ,

लेकिन खाने वाले कम हों तो

तुम क्या करोगे ?

बचे हुए भोजन का बोलो  क्या करोगे ?

सड़ जाने , फिक जाने दोगे ?”

बच्चे बोले –नहीं नहीं

हम हरगिज वैसा नहीं करेंगे .

जिन्हें ज़रूरत हो ,उनको बाँटेंगे दीदी !

सड़ जाने ,फिक जाने से तो

काम किसी के आजाए ,वह अच्छा होगा .

इतना कहकर पेड़ रुका . तो आगे तितली ने गाया --

कविता को अनुमान गई हूँ   

अब मुझको क्या करना है .

यह जान गई हूँ  ,मान गई हूँ .

कुछ ही देर बाद सतरंगी के साथ अनेक चिड़ियाँ ,भौंरे ,मधुमक्खियाँ और कई कीट-पतंगे फूलों पर मँडरा रहे थे पेड़ खुश था , फूल खुश थे और बहुत सारे दोस्तों के साथ सतरंगी भी खुश थी . .