मंगलवार, 3 सितंबर 2013

मिट्टी की बात

एक था नन्हा पौधा गुलू । बहुत ही कोमल ,प्यारा और खूबसूरत । उसके हरे-भरे पत्ते बडे उल्लासमय लगते थे मानो आकाश से जान-पहचान करना चाहते हों ।
सब उसे प्यार करते थे । सूरज की पहली किरण बगिया में आकर सबसे पहले उसी का 'गुडमार्निंग' (सुप्रभात )कहती थी । हवा उसे हल्की सी थपकियाँ देकर सुलाती और कोयल बुलबुल मीठी लोरियाँ सुनातीं । हरी घास उसे नई-पुरानी कहानियाँ सुनाती थी तो बडे-बडे पेड उसे अक्सर प्यार से छेडते---"अरे गुलू मास्टर जरा जल्दी बढो न । देखो तो तुमसे बात करते हुए हमें कितना झुकना पडता है ?"
"देखा छोटा होने का लाभ ?"---गुलू चहक उठता---"मैं सबसे सिर उठा कर बात कर सकता हूँ । है न । इसलिये बडा होने में मेरी कोई दिलचस्पी नही है ।"
यह सुन कर सब हँस पडते थे । बगीचे की रौनक बढ जाती थी । इतनी खूबसूरत दुनिया, इतना प्यार पाकर गुलू को लगने लगा जैसे उसके पंख उग आए हों । 
तभी एक दिन दो लडके बगीचे में आए । उनकी नजर जैसे ही उस नन्हे पौधे पर पडी तो उसे अपने घर लगाने के लिये उखाड कर ले गए । और उसे एक क्यारी में रोप दिया । खूब पानी भी डाल दिया पर नन्हे पौधा उदास होगया । उसे यह नई जगह बिल्कुल अच्छी नही लगी । सब कुछ अनजाना और पराया सा लगा । उसे दुख हुआ कि उसे उसके घर से दूर कर दिया जहाँ वह पैदा हुआ । साथ ही गुस्सा भी बहुत आया । आखिर उसकी मर्जी जाने बिना लडकों को ऐसा करने की अनुमति दी किसने । यह तो मनमानी और दूसरों की आजादी छीनने की घटिया कोशिश । गुलू इसे क्यों  बर्दाश्त करे ? अपने साथ हुए अन्याय का विरोध करने का अधिकार सबको है । 
बस यही सब सोचा और गुलू उदास होगया । खाना-पानी लेना बन्द कर दिया । सुन्दर पत्ते मुरझा कर लटक गए । दो कोंपलें भी ,जो अभी पलकें खोल कर दुनिया देखने वालीं थीं सहम कर वहीं ठहर गई । अब कोई छोटी-मोटी बात होती तो कुछ नही था पर यह थी सबके चहेते नन्हे गुलू की उदासी व नाराजी वाली बात, सो चारों ओर बडा हडकम्प मचा । 
सबसे पहले हडबडाई--घबराई सी हवा आई । गुलू के लटके हुए पत्तों को सहला कर बोली---"क्या हुआ गुलू मास्टर । तुम्हारी हालत तो बडी खराब है । आखिर हुआ क्या है तुम्हें ?"
"क्या तुम्हें पता नही कि मुझे दो उड्डण्ड लडकों ने मेरी जगह से मुझे उखाड कर यहाँ लगा दिया है?"
"ओ...इतनी सी बात--हवा खिलखिलाई ---मैंने तो सुना कि तुम बडे बहादुर  हो । फिर क्या हुआ जो जरा सी बात पर मुँह लटका लिया । मुझे देखो न । दिनरात दुनिया का चक्कर लगाती हूँ । फूलों से भी गुजरती हूँ और सडी--गली चीजों के ढेर से भी । मैं तो दुखी नही होती । तुम्हें यों हिम्मत नही हारना चाहिये । जो कुछ हुआ उसे भूल जाओ और खुश रहो । बी हैप्पी । अच्छा चलती हूँ । मुझे तितलियों व मधुमक्खियों के फूलों का सन्देश देने जाना है ..।"
"मुझे देखो-"..--नन्हा पौधा हवा का वाक्य दोहराते हुए कहने लगा --"-जाने कहाँ--कहाँ आवारा जैसी फिरती रहती है । किसी की चिन्ता क्या करेगी । ..अरे खुशी क्या कोई बिजली का स्विच है कि दबाओ और फक् से उजाला हो जाए ।" 
"किस उजाले की बात कर रहे हो नन्हे बाबू ?"
किरण अपने रुपहले बालों को लहराती हुई आई । उसका चेहरा दिपदिपा रहा था । किसी महारानी की तरह । उसी रौब से बोली--"हमने सुना है कि आप उदास हैं । भई ये उदासी ,ये मायूसी हमें जरा भी पसन्द नही है । आप जानते हैं कि कमजोरों को दुनिया दबाती है । हमारी तरह मजबूत और ताकतवर बनो। हम एक दिन भी न दिखें या जरा नाराजी दिखादें तो हलचल मच जाती है । इसलिये  जिन्दादिल और बहादुर बनो ।खैर.., बताइयें कि हम आपके क्या काम आ सकते हैं ?"
"फिलहाल आप हमें अकेला छोड दीजिये प्लीज..।-"-गुलू ने किरण की  बातों से  उकता कर कहा ।
"जैसी आपकी इच्छा ।"---किरण लापरवाही से बोली--- "हम चलते हैं । जब जरूरी लगे बुलवा लेना । हम आपके के लिये खाना तैयार करवा देंगे ।"
"खाना तो वो खाए जिसे जीना हो --।" गुलू ने मन ही मन कहा । किरण की बातों से उसके पत्ते ज्यादा लटक गए थे । इससे तो अच्छी तो पानी की समझायश थी । उसकी बातों में कम से कम ठंडक तो थी ।  बातों में हमदर्दी  थी । बडे अपनेपन से  कहा---"अपने लिये न सही मेरे लिये ही कुछ खा लो बच्चे । ऐसे कैसे काम चलेगा ?"
लेकिन पानी की बातें  सुनकर भी गुलू को नही लगा कि यह नई जगह जीने लायक और खुश रहने लायक है ।
पास ही बरगद की डाली पर बैठी चिडियाँ कह रहीं थीं--"बेचारा गुलू ,ऐसे तो सचमुच ही मर जाएगा ।"
गुलू को भी यकीन होगया कि उसके सामने एक ही रास्ता है---मर जाना ।
यह सब देख कर मिट्टी को बडी चिन्ता हुई । उसके सामने ही एक प्यारा पौधा सूख जाए यह तो अफसोस की बात थी । उसने धीरे से पूछा---"क्या तुमने सचमुच मरने का फैसला कर लिया है गुलू ?"
"क्या तुम्हें कोई शक है ?"--- गुलू ने सवाल के जबाब में सवाल पूछा ।
"नही..नही शक तो बिल्कुल नही । पर क्या केवल इसी बात पर कि तुम्हें नई जगह लाया गया है ।
यह छोटी बात है कि कोई किसी को अपने तरीके से जीने पर मजबूर करे । क्या तुम इसे सहन कर सकती हो ?" 
"हाँ "...मिट्टी ने गहरी साँस ली । 
"हाँ यह सहन करने वाली बात होनी भी नही चाहिये ।पर किसी की ज्यादती से घबरा कर जिन्दगी को खतरे में डालना तो ठीक नही है न ।"
"मुझे कोई उपदेश नही सुनना । जाओ यहाँ से अपने काम करो । मुझे मेरे हाल पर छोडदो बस...।"
"हाय ,गुलू तुम तो बिगड रहे हो । मेरा उद्देश्य वह नही  है । मैं तो कुछ और ही बताने वाली थी ।"   
"क्या बताने वालीं थीं ? यही न कि खुश रहो । मजबूत बनो । तभी तुम बहुत से दोस्त बना सकोगे । और तभी यह दुनिया ज्यादा सुन्दर लगेगी ..। कह डालो, कह डालो ..।"
"ओफ्..ओ...मैं वह सब नही कहने वाली । मैं तो यह बताने आई हूँ कि कुछ ही दिनों में ऋतुरानी आने वाली है । हर ऋतु में वह एक बार जरूर आती है ।" 
"तो मैं क्या करूँ ?"--गुलू ने रुखाई से मिट्टी की बात काट दी ।
"अरे बाबा ,पूरी बात तो सुनो । वह खाली नही आती । साथ में रंग-बिरंगे फूलों का टोकरा भी लाती है "
"तो मुझे उससे क्या !"
"हाँ यही तो जानने वाली बात है ।"-- मिट्टी ने तसल्ली के साथ कहा---"दरअसल वह पेड--पौधों को फूल बाँटने आती है । ढेर सारे रंग -बिरंगे फूल--लाल ,पीले, नीले, सफेद ,गुलाबी, बैंगनी जोगिया....। सब उससे फूल माँगने तैयार रहते हैं । हाँ बिना माँगे वह किसी को फूल नही देती ।"
"फिर ?"---गुलू को यह जानकारी कुछ दिलचस्प लगी ।
"फिर ?..नही समझे ?" मिट्टी ने अपनेपन से कहा --"सुनो मेरा विचार था कि तुम भी अपने लिये ऋतुरानी से फूल माँग लेते । मेरी समझ में तुम पर गुलाबी फूल अच्छे लगेंगे । वही छोटी रेशमी पंखुडियों वाले..।"
फूलों का नाम सुन कर नन्हे पौधे के मन में एक लहर सी उठी । उसकी आँखों में गेंदा , गुलाब सेवन्ती और मोगरा के पौधे झूम उठे जो किस तरह खूबसूरत फूलों से लद जाते हैं । भौंरे गीत गाते हैं । मधुमक्खियाँ नाचतीं हैं । तितलियाँ उनके कानों में जाने कितनी गपशप करतीं कि फूल खिलखिलाते हुए से लगते । पौधे की जिन्दगी के सबसे खूबसूरत दिन होते हैं वे ।
"ओह ,..लेकिन मैं फूल कैसे माँग सकता हूँ । मेरी तो हालत ही खराब है ।"--नन्हे पौधे को अपनी भूल का अहसास हुआ ।
"बस यही तो मैं तुम्हें समझाने वाली हूँ । मिट्टी ने प्यार से समझाया "---ऋतुरानी हमेशा स्वस्थ व प्रसन्न पौधों को ही फूल देती है । तुम चाहो तो अब भी बात बन सकती है । अभी बिगडा ही क्या है । "
"पर कैसे ?" गुलू की आवाज में बेचैनी थी ।
"बडी आसानी से" --मिट्टी उल्लसित होकर बोली--
"दुख और गुस्सा छोडदो । और यकीनन तुम्हारे साथ ऐसा कुछ नही हुआ कि तुम जीने का ख्याल ही छोडदो । सच तो यह है कि ये लडके सुन्दर फूलों के लालच में ही तुम्हें यहाँ लाए हैं । इसलिये इनके स्नेह को स्वीकार करो । इस नई जगह पर तुम्हारा स्वागत है । जिस दिन तुम्हें फूल मिल जाएं मुझे जरूर बताना । मेरे लिये वह बेहद खुशी का दिन होगा ।"
अगली सुबह सबने देखा नन्हा गुलू खुल कर मुस्करा रहा था । मुरझाए पत्ते ताजे और प्रसन्न लग रहे थे । सहमी सोई हुई सी दो कोंपलें भी आँखें खोलने लगीं थीं ।
(एकलव्य से प्रकाशित 'मिट्टी की बात' कहानी संग्रह से ,जिसकी छह कहानियों में तीन मेरी हैं )

17 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर कहानी .... हालांकि एक जगह से उखाड़ कर फिर से पाँव जमाना मुश्किल होता है पर हौसला सब कुछ करा सकता है ।

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    1. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल पर आज की चर्चा मैं रह गया अकेला ..... - हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल - अंकः003 में हम आपका सह्य दिल से स्वागत करते है। कृपया आप भी पधारें, आपके विचार मेरे लिए "अमोल" होंगें | सादर ....ललित चाहार

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  2. दीदी,
    इस कहानी को पढते हुए पहले तो लगा कि यह पहले पढ़ी है... लेकिन फिर याद आया कि मैं वास्तव में "मुझे धूप चाहिए" से कन्फ्यूज़न हो गया था...
    आपके पेड़-पौधे तो इस तरह बात करते हैं मानो हमारे जैसे इंसान हों... या दूसरे शब्दों में आपकी कहानियों से ही पता चलता है कि पेड़-पौधों में जीवन है... सिर्फ जीवन ही नहीं, जीने का सन्देश...
    इस कहानी में जिस प्रकार आपने हवा, किरन, पानी, मिट्टी और ऋतुरानी का चरित्र गढा है, लगता है पीछे बागान में आप चुपके से उनकी बातें सुन रही हों!!
    हर बार की तरह, यह कहानी भी "बहुत प्यारी" है!! और मैं जब "प्यारी" कहता हूँ तो सिर्फ उनके लिये जिनके लिये सर्वोत्तम का दर्ज़ा भी ज़रा कम लगता है!!
    एक बार फिर बधाई, ३/६ के लिये!! :)

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  3. भाई इस कहानी के पीछे की कहानी यह है कि मैंने गेंदा का एक पौधा कहीं से उखाड कर अपने आँगन की क्यारी में लगाया था । थोडी देर बाद ही वह मुरझा गया पर दो दिन बाद वह दुरुस्त दिखने लगा । इसी तथ्य पर कल्पनाएं दौडीं और कहानी बन गई । चकमक में छप गई और फिर 'मिट्टी की बात' में भी । तब भी प्रशंसा मिली थी लेकिन ब्लाग पर देने से मुझे वह मिल रहा है जो शेष था । बहुत कम ही सही पर रचनाओं को आत्मीयता व संवेदना के साथ पढने वाले सहदय पाठक ।

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  4. स्थान का मोह त्यागकर जहाँ भी रहें, स्वयं प्रसन्न रहें और औरों को भी प्रसन्न रखें।

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  5. बहुत खूबसूरत कहानी । समझ और सीख भी बहुत अच्छी । जहां पर बसेरा हो.......

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  6. बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
    आपने लिखा....हमने पढ़ा....
    और आप भी पढ़ें; ... मैं रह गया अकेला ..... - हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल - अंकः003 हम आपका सह्य दिल से स्वागत करते है। कृपया आप भी पधारें, आपके विचार मेरे लिए "अमोल" होंगें | सादर ....ललित चाहार

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  7. Are Wah, achhee rachanaa hai, kaheen ekk chhuppa hua message bhee hai ki sthananatran ko kaise liya zaye

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  8. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .. आपकी इस रचना के लिंक की प्रविष्टी सोमवार (23.09.2013) को ब्लॉग प्रसारण पर की जाएगी, ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें .

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  9. बहुत सुन्दर कहानी . बाल साहित्य को ऐसी ही रोचक रचनाओँ की दरकार है . आपको बधाई .

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  10. एक भावुक हृदय ही भावनाओं को समझ सकता है।यहाँ तक कि पेड़-पौधों की भावनाओं की भी अनुभूति ।
    बहुत ही मार्मिक।

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