पडी फुहारें वन आँगन में ,
भीगी धरती गमक उठी है ।
धूमिल काले कलश उठाये,
मेघराज पानी भर लाये ।
उमड--गरज कर खाली कर गये,
बीजुरिया ,लो चमक उठी है ।
आ, मयूर मतवाला नाचे ,
कोयल मीठी कविता बाँचे ।
भर-भर उमडी उफनी नदियाँ ,
इतराती सी झमक उठी हैं ।
बिछा मखमली हरा गलीचा ,
झूलों से है सजा बगीचा ।
मधुर मल्हार हवा गाती है,
हरियाली भी दमक उठी है ।
कीट-पतंगों का मेला सा ,
बीर-बहूटी का रेला सा ।
मेंढक , झीगुर से झन्नाती ,
भीगी रातें बमक उठी हैं ।
सीले कपडे बिस्तर दादी ,
सेवईं पापड धूप दिखाती ।
जब लगता आकाश खुला है ,
सुस्त दुपहरी तमक उठी है ।
आओ, बरखा रानी, आओ,
जवाब देंहटाएंआओ, सबके मन हरषाओ।
गिरिजा जी बहुत अच्छा लिखा है..
जवाब देंहटाएंवर्षाऋतु पर बहुत अच्छी बाल कविता ।
जवाब देंहटाएंvarsha ritu ka safal chitran
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