सोमवार, 19 अगस्त 2013

धरती गमक उठी है ।


पडी फुहारें वन आँगन में ,

भीगी धरती गमक उठी है ।

धूमिल काले कलश उठाये,

मेघराज पानी भर लाये ।
उमड--गरज कर खाली कर गये,
बीजुरिया ,लो चमक उठी है ।

आ, मयूर मतवाला नाचे ,

कोयल मीठी कविता बाँचे ।
भर-भर उमडी उफनी नदियाँ ,
इतराती सी झमक उठी हैं ।

बिछा मखमली हरा गलीचा ,

झूलों से है सजा बगीचा ।
मधुर मल्हार हवा गाती है,
हरियाली भी दमक उठी है ।

कीट-पतंगों का मेला सा ,

बीर-बहूटी का रेला सा  ।
मेंढक , झीगुर से झन्नाती ,
भीगी रातें बमक उठी हैं ।

सीले कपडे बिस्तर दादी ,

सेवईं पापड धूप दिखाती ।
जब लगता आकाश खुला है ,
सुस्त दुपहरी तमक उठी है ।

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