था एक अँधेरा
कमरा
कमरे में थी अलमारी .
अलमारी में रक्खे थे
,
कुछ डिब्बी-डिब्बे
भारी .
डिब्बी डिब्बों के
पीछे .
बैठा था आँखें मीचे .
एक काला वाला झींगुर,
सबकी नजरों से बचकर .
मन उसका था गाने का
जीभरकर झन्नाने का .
जैसे ही उसने गाया ,
चुहिया ने शोर मचाया
“यह
कौन बेसुरा गाता ?
कानों पर ही झन्नाता .”
चुप हो जा –“चींटी
बोली.”
करती छिपकली ठिठोली .
मकड़ी ने मारे ताने
“यह
जगह मिली है गाने ?”
बेवक्त लगे हो
क्योंकर ,
मेरे भाई टन्नाने .”
सुनकर खामोश हुआ वह
दो पल अफसोस हुआ यह
“संगीत
नही ये जानें
सुरताल नही पहचानें
पर सुझको तो गाना है
.
मन सुर का दीवाना है
.”
यों झींगुर लगा
सुनाने
अपने ही लिखें तराने.
सुनकर शन्नो घबराई
“अम्मा
अम्मा !”-चिल्लाई .
अम्मा की निंदिया
टूटी
हाथों से पंखी छूटी .
वह
झाड़ू लेकर आई
“करती
हूँ अभी सफाई
क्यों कहाँ छुपा
झन्नाता
कानों पर ही टन्नाता
.”
देखा डिब्बों के पीछे
बैठा था आँखें मींचे
वो काला वाला झींगुर
सबकी नजरों से बचकर .
चिमटा से पकड़ा फेंका
.
कूड़ेदानी में झौंका
.
“कैसे
तो आजाते हैं .
कानों पर टन्नाते हैं
.”
यों अम्मा बोली
कुढ़कर
कुछ कूड़ा डाला उसपर
“ले
और और ले गा ले.
बेसुरे और टन्नाले .”
अम्मा फिर आकर सोगई
शन्नो सपनों में खोगई
.
पर कूड़े में भी दबकर
गाता जाता था झींगुर
.
हर हाल उसे गाना था .
वह सुर का दीवाना था
.
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