शनिवार, 29 अक्टूबर 2016

जगमग दीप जले


गिरी अँधेरे की दीवारें ,
जगमग दीप जले .
झिलमिल झिलमिल सजी कतारें
जगमग दीप जले .

गया दशहरा जैसे ही ,
तन मन आई दीवाली .
द्वार द्वार दीवारों घर-
आँगन आई दीवाली .
हास और उल्लास ,
बीस दिन कब कैसे निकले .
गिरी अँधेरे की दीवारें,
जगमग दीप जले .

खील-बतासे पकवानों
मिष्ठान्नों के मेले हैं .
लड़ी-पटाखों नए नए
उपहारों के रेले हैं .
महल झोपड़ी क्या है ,
सबके चेहरे खिले-खिले .
गिरी अँधेरे की दीवारें ,
जगमग दीप जले .

नन्हे दीपों ने ही तम को ,
हाथों हाथ लिया है .
छुट्टी आज तुम्हारी कहकर
उसको विदा किया है .
आज उदासी और हताशा 
अपने हाथ मले .
गिरी अँधेरे की दीवारें ,
जगमग दीप जले .

पर्व और त्यौहार साल में
यों ही सभी मनाएं .
क्रिसमस ईद दिवाली होली
भर-भर खुशियाँ लाएं .
हिलमिलकर रहने हँसने का
अवसर खूब मिले .

गिरी अँधेरे की दीवारें ..
.जगमग दीप जले .  

1 टिप्पणी:

  1. बहुत ही प्यारा सा शिशु गीत... पर्वों के आगमन के साथ ही उल्लास का वातावरण छा जाता है... और अंत में प्रेरक सन्देश भी!
    आप सभी को दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएँ!!

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