(1990 में लिखी गई एक बाल कविता)
दे दी सूरज को छुट्टी .
तो धूप ने करली कुट्टी .
पीला सा हुआ उजाला ,
गुम उसकी सिट्टी-पिट्टी .
अब खेले आँख मिचौनी .
पर्वत ,मैदान ,किनारे ,
छुप गये पक्षी भी सारे .
था अम्बर नीला निर्मल
ओढे अब काला कम्बल ।
छाया है धुँधली काली
छुप गई वहीं हरियाली .
वे इमली , बरगद ,पीपल ,
पलभर में होगये ओझल .
रख पलक नीद की पट्टी ,
आँखों को दे दी छुट्टी ।
फिर और विहँस कर बोली ,
ओ, बबलू ,मोलू, भोली ।
होगये कहाँ ये ओझल,
इमली बरगद और पीपल ।
पंछी पर्वत और नदिया,
नीला-नीला नभ निर्मल।
इन सबको ढूँढो आओ,
या हार मान सोजाओ ।
सब खोज -खोज कर हारे ,
नभ में झाँके कुछ तारे ।
निंदिया का लगा बिछौना
फिर सबने पाँव पसारे ।
पलकों पर काली-काली,
चुपके चादर डालेगी ।
नयनों में रंग छुपाकर,
सपनों में ले जाएगी।
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (२५-०८ -२०२२ ) को 'भूख'(चर्चा अंक -४५३२) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
धन्यवाद अनीता जी
हटाएंवाह!!!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर बालकविता ।
मनमोहक ।
धन्यवाद सुधा जी
हटाएंबेहतरीन, यह विषय आवश्यक है ! शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंप्रणाम और आभार
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