बुधवार, 8 फ़रवरी 2023

सूरज उतरा नदी किनारे

 रूप रुपहले पंख पसारे

सूरज उतरा नदी किनारे .

 

बिखरे शंख सीपियाँ चुनने

धूप का झोला बगल दबा रे.


हवा उतर आई पेड़ों से

सर सर सर सर गली बुहारे .


नदिया ने बाहें फैलादीं ,

जल में सूरज एक उगा रे .


लहरों को मुट्ठी में भरने ,

नटखट लहरों बीच चला रे .


चचंल लहरें हाथ न आए

कभी यहाँ तो कभी वहाँ रे .


नटखट लहरें वहीं छोड़कर

धूप सुखाली है निचोड़कर .


गीले तट फिर पाँव जमाए

रेत घरोंदे मिटा बनाए .

10 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(०९ ०२-२०२३) को 'एक कोना हमेशा बसंत होगा' (चर्चा-अंक -४६४०) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  2. अति सुंदर अभिव्यक्ति दीदी।
    सादर।

    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १० फरवरी २०२३ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  3. सुन्दर अभिव्यक्ति| हवा होना चाहिए शायद (हव उतर आई पेड़ों से)

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  4. जी सही कहा. मात्रा छूट गयी. धन्यवाद. ठीक कर देती हूं.

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  5. रचना पढ़ने और प्रतिक्रिया देने के लिए आपका बहुत आभार

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