शुक्रवार, 16 जून 2023

सूरज का कोई अपना है .

 

मई-जून है ,भैया सँभलो,

किसी तरह तो बचकर निकलो .

अनचाहे ही आया है जो ,

वह गुस्सैला है .

धूल–पसीना से लगता मैला-मैला है. 

लू और तूफानों से भरा हुआ थैला है .

तपती धूप भरे आँखों में.

पानी पीने , भर ले जाने 

लाल लाल मटके लाया है

सूरज का कोई अपना है .

बस गर्मी गर्मी जपना है . 

 

जाने कौन दिशा से आ धमका है.

नदी ताल पोखर पर आ बमका है .

छीन हवा से नमी-तरावट.

साँसों को दे दी अकुलाहट .

 

पानी-पानी मची दुहाई .

देखो इसकी लापरवाही .

रोम रोम से बहा पसीना .

कूलर लगता दीना-हीना .

 

बकरी भेड़ रँभाती गैया .

सूने पनघट ,ताल-तलैया

सूनी ,आकुल है गौरैया .

 

दूर क्षितिज पर धरती हाँफे

पाखर पीपल डर से काँपे .

ठंडक कोई कोना नापे .

 

सनन् सनन् सन् लू के झौंके

उफ् बे मौके ,कोई रोके .

धूल उड़ाता , नमी चुराता

भूख मिटाता प्यास बढ़ाता

खुल खुल खाँसे ,जलती साँसें

सनकी बूढ़ा ,

करकट-कूड़ा

बचकर निकलो ,

पकड़ बिठा लेगा तुमको

सुलगे अलावपर .

--------------------

2 टिप्‍पणियां:

  1. अद्भुत...शानदार कव‍िता...वाह ग‍िर‍िजा जी .....भावपूर्ण

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत धन्यवाद अलकनन्दा जी कि आपको कविता पसन्द आई। शायद लोग एक तरह की रटीरटाई कविताएँ ही पसन्द करते हैं। यह कविता चकमक में बहुत साल पहले प्रकाशित हो चुकी है।

    जवाब देंहटाएं