बुधवार, 9 जुलाई 2025

पतंग-परी और डुग्गू

 एक थी पतंग । हरे पीले लाल नीले और जामुनी रंग वाली पचरंगी पतंग थी ।  एक लम्बे मजबूत धागे के का हाथ थामे आसमान में लहरा रही थी । हवा के साथ लय मिलाते फर् फर् ..सन् सन् गाते हुए कुछ इतरा भी रही थी । सारी दुनिया उसे छोटी लग रही थी । वह जिस डोर का हाथ थामे थी वह डोर डुग्गू के हाथ में थी । डुग्गू आठ साल की प्यारी सी बच्ची थी । उसे अपनी पतंग बहुत प्यारी थी । वह कहती थी -- मेरी पतंग परी जैसी है ।

क्या परी को तुमने देखा है डुग्गू ?” –कोई पूछे तो डुग्गू कहती --

मेरी दादी को सब मालूम है। उन्होंने परी को देखा भी है और मैंने अपनी किताब में भी पढ़ा है कि परी बहुत सुन्दर होती है ,दुनिया के लोगों से ज्यादा । उसके पंख होते हैं । वह जब चाहे हवा के साथ उड़कर कहीं भी जा सकती है । मेरी पतंग भी उड़ती है और तुम देख ही रहे हो कि कितनी खूबसूरत है .”-–यह कहते हुए वह खिलखिला उठती । 

उस समय जब परी आसमान में हवा के साथ लहरा रही थी , चिड़ियों से बातें करती हुई कुछ इतरा भी रही थी डुग्गू ने उसे पुकारा –--"परी अब आ जाओ । काफी देर सैर करली । थक जाओगी । फिर कल तो तुम्हारा मैच है ।

यह सुनकर परी लहराते हुए और ऊपर उड़ी और चिल्लाई—"हाँ मैं उसी की तैयारी कर रही हूँ ।  यहाँ मुझे बहुत अच्छा लग रहा है .”

अरे रुको ,मेरी बात सुनो । चिल्लाकर ऐसा कहते हुए डुग्गू ने ध्यान नहीं दिया कि उसने धागे को और ढीला छोड़ दिया है । हवा खिलखिलाई –-ये लो उड़ने की छूट तो तुम खुद ही दे रही हो और कहे जा रही हो कि लौट आओ

उई...!” –-डुग्गू ने अपनी भूल पर जीभ दाँतों में दबाई और डोर खींचते हुए चिल्लाई –--ज़रा ध्यान से परी ! क्या तुम्हें पता है कि जो पतंगें तुम्हारे आसपास मँडरा रही हैं । वे तुमसे लड़ने का इरादा लिये घूम रही हैं  

हाँ पता है पर मुझे कुछ नहीं होगा । -परी और तेजी से लहराई और इससे पहले कि दूसरी पतंगें उससे टकराने की सोचतीं परी उनसे जा भिड़ी । डुग्गू उसे खींचकर दूर ले जाना चाहती पर परी वहां से हटानी ही नहीं चाहती थी । पतंगें उसे उकसाए जा रही थीं । और हुआ वही जिसकी डुग्गू को आशंका थी । जी जान से लड़ते हुए परी के पंख कट गए तो वह और उड़ न सकी और नीचे आने लगी ।

ओह ! यही तो नहीं होना चाहिये था—डुग्गू निराश होकर कहने लगी ।

कोई बात नहीं । मैं ठीक हूँ । हम फिर कोशिश करेंगे-–पतंगपरी ने डुग्गू का हौसला बढ़ाते हुए कहा । और लहराती हुई डुग्गू की तरफ आने लगी । तभी एक ऊँचे पेड़ ने उस रंग-बिरंगी सुन्दर पतंग नीचे आते हुए देखा तो ललचा  उठा । वह एक बरगद का बड़ा और घना पेड़ था जिसकी शाखें बहुत दूर तक फैली थीं । जल्दी से अपनी कोमल टहनियाँ और बड़े पड़े नरम पत्ते आगे फैलाकर अपनी गोद में समेट लिया ताकि किसी कहीं काँटे कंकड़ों में खुद को नुक्सान न पहुँचा ले । । बड़े बड़े चिकने पतों पत्तों ने तालियाँ बजाकर पेड़ की खुशी ज़ाहिर की । 

प्यारी पतंग तुम्हें चोट तो नहीं आई ?

बिल्कुल नहीं । पर तुमने मुझे क्यों रोका । मैं तो जल्दी से अपनी दोस्त के पास जा रही थी ।

ज़रूर चली जाना ,लेकिन काफी थकी लग रही हो । मेरी घनी और ठण्डी छाँव में कुछ देर आराम करो ।

बेशक ,तुम्हारे पत्ते कितने हरे और चिकने हैं । पर नए पत्ते कोमल और लाल हैं । लेकिन क्या मैं यहाँ खुश नहीं रह सकूँगी

क्यों नहीं ? यहाँ दिन में बहुत सारी चिड़ियाँ सुबह से शाम तक गीत गाती और बतियाती रहती हैं । गिलहरियाँ किट् किट् कुट् कुट् करती सरपट दौड़ती हैं । रात में उल्लू और चमगादड़ों की चौपाल जमती है । सब तुमसे खूब बातें करेंगे । कहानियाँ कहेंगे । गीत भी सिखाएंगे । खाने के लिये मेरे पास खूब सारे स्वादिष्ट फल भी हैं ।

चिड़ियों गिलहरियों ने भी पतंग परी का स्वागत किया –अब तुम हमारे पास ही रहना ।  यह सब देख-सुनकर पतंग परी खुश होगई । उसने चिड़ियों के मीठे गीत सुने । गिलहरियों का खुशी में सरपट दौड़ना देखा । चमगादड़ों से रात की कहानियाँ सुनी । उसने भी सबको आसमान के किस्से सुनाए । उसे डुग्गू का ध्यान भी नहीं आया । पेड़ तो खुद पतंग परी को सदा के लिये अपने पास रखना चाहता था । लेकिन मुश्किल यह हुई कि जल्दी ही पेड़ के आसपास बच्चों की भीड़ लग गई । सब चिल्ल्ने लगे

अरे देखो ,पेड़ में एक पतंग अटकी है .” फिर वे झगड़ने भी लगे --

वह पतंग तो मेरी है , नहीं मेरी है , ..नहीं मेरी है । नहीं नहीं मेरी है .”

कुछ बच्चे पत्थर फेंकने लगे ।

ओह इस तरह तो पेड़ को नुक्सान पहुँचेगा !” --–परी कुछ उदास होगई तो एक चिड़िया ने पूछा --

तब क्या तुम जाना चाहोगी ?”

नहीं । इनमें से कोई मेरा दोस्त नहीं है ।

क्या वह है तुम्हारी दोस्त ?”--–एक टहनी ने छत पर खड़ी लड़की की ओर इशारा किया जो ललचाई आँखों से पतंग को देख रही थी और अपने आपसे ही बात किये जा रही थी –--"ओह मेरी प्यारी सी पतंग तुम पेड़ में अटककर क्यों रह गईँ हो ? क्या तुम्हें वहाँ ज्यादा अच्छा लग रहा है ? या इस संकोच में कि तुम्हें दूसरी पतंग ने और उड़ने नहीं दिया ? प्यारी परी तुम्हें इसके लिये ज़रा भी शर्मिन्दा नहीं होना चाहिये क्योंकि तुमने अन्त तक  मुकाबला किया । बस वापस आ जाओ मैं तुम्हारे बिना बहुत उदास हूँ ।

पतंग ने देखा तो अपने आपसे बोली – डुग्गू मेरी सबसे प्यारी दोस्त !

हम भी तो तुम्हारे दोस्त हैं । अच्छा लगेगा अगर कुछ दिन हमारे साथ रहो ।” --–कई पत्ते और टहनियाँ बोल पड़ीं । पतंग बड़े असमंजस में । वह कभी रुकने का आग्रह करते बड़े बड़े कोमल पत्तों को छुए तो कभी डुग्गू की तरफ देखे जो अब बरगद के पेड़ से कह रही थी --

तुमने इतने बड़े होकर भी मेरी छोटी सी पतंग को बहलाकर फुसलाकर अपने पास रोक लिया है । देखो तो मैं कितनी छोटी हूँ । मेरे हाथ बहुत छोटे हैं और मेरे पास एक लम्बी लकड़ी भी नहीं है कि मैं अपनी पतंग को तुम्हारे चंगुल से छुड़ा सकूँ । –यह कहते हुए उसने चेहरे को रुआँसा बना लिया । पत्तों ने मुँह लटका लिया ।

यह देख तमाम चिड़ियाँ चहक उठीं । गिलहरियाँ भी सरपट दौड़ती हुई लड़की की बात पर खुश हो रहीं थीं । पेड़ अपनी लम्बी जटाएं सम्हालते हुए थोड़ा शरमा गया । पतंग को थामकर बैठे पत्तों और टहनियों से बोला –हमें उस छोटी बच्ची के लिये पतंगपरी को जाने देना चाहिये । 

बरगद की बात सुनकर हवा का इठलाता मुस्कराता एक झौंका आया और हौले से परी को थामे बैठे पत्तों को सरकाया ।  नहीं नहीं हम नहीं जाने देंगे .” --पत्तों ने थोड़ी आनाकानी की तो हवा ने उन्हें सहलाते बहलाते हुए पतंगपरी को पत्तों की बाँहों से अलग किया और अपने कन्धों पर बिठाकर कर डुग्गू की तरफ चल पड़ी ।

परी हमें भूल तो नहीं जाओगी ?” –पत्तों ने पीछे से पुकारा तो परी लहराते हुए जोर से बोली --

कभी नहीं । सुबह शाम तुम्हारी कोमल गोद में लेटे सपनों को बुलाते हुए चिड़ियों से सुरीले गीत सुने । और भला कोई कैसे भूल सकता है !” 

पतंग के चले जाने पर पत्ते कुछ उदास थे लेकिन जब उन्होंने खुशी से उछलती और ताली बजाती उस छोटी बच्ची डुग्गू को देखा तो पत्ते भी उसके साथ ताली बजाने लगे । 

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