गर्मी रानी ,क्यों
लगती है ,
तुमको इतनी प्यास ?
पी जाती हो गटक् गटागट,
दिन भर कई गिलास ।
मटके रीते ,रीत
चले हैं ,
कूप ,नदी और ताल ।
इन्हें रोज भरते--भरते ,
धरती नानी बेहाल ।
कभी चाहिये शरबत तुमको ,
कभी शकंजी ,लस्सी
।
आइसक्रीम तो , अरे
बाप रे...,
पूरी..... सत्तर...अस्सी ।
एक न छोड़ी बोतल फ्रिज में,
कोल्ड-ड्रिन्क खल्लास ....
गर्मी रानी क्यों लगती है ,
तुमको इतनी प्यास ।
"क्यों लगती है प्यास ?
न पूछो मुझसे छुटकूलाल ।"
कहते--कहते गर्मी जी का ,
चेहरा होगया लाल ।
"सर्दी ने गुड ,गजक ,बाजरा ,
उड़द
मखानी दाल ,
तिल
की टिक्की गरम मँगौड़े,
परसे
भर-भर थाल ।
मैथी के चटपटे पराँठे ,
और कचौरी खस्ता ।
भजिये ,आलू-बड़े ,समोसे,
सब कुछ कितना सस्ता ।
इतना खाया.... ,इतना
खाया
पिया गया ना पानी
अब लगती है प्यास ,तभी
तो ,...
पानी ,..पानी...,पानी....
और ..और ..बस पानी
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (1-6-21) को "वृक्ष"' (चर्चा अंक 4083) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
--
कामिनी सिन्हा
धन्यवाद कामिनी जी . अवश्य आऊंगी .
जवाब देंहटाएंपानी के विषय में बहुत प्यारी मन भावन कविता ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्यारी रचना पढ़ते समय छोटे बच्चों वाला एहसास होता है सच में बहुत ही बेहतरीन है ये कविता बचपन की याद दिला दी!😇😇😇😇😇😇😇😇
जवाब देंहटाएंहमारे ब्लॉग पर भी आइएगा आपका स्वागत है🙏🙏
बहुत ही उम्दा भाव और लेखनी।
जवाब देंहटाएंबालोपयोगी सुन्दर रचना!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर मधुर गीत |
जवाब देंहटाएंसुंदर सार्थक।
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
Free me Download krein: Mahadev Photo | महादेव फोटो