रविवार, 29 नवंबर 2020

सर्दी के दिन

 दादाजी की पगडी जैसी लम्बी रातें हैं

चुन्नू जी के चुनमुन चड्डी ,झबलों जैसे दिन

लम्बी और उबाऊ,
जटिल सवालों सी रातें
उछल-कूद और मौज-मजे की
छुट्टी जैसे दिन

जाने कब अखबार धूप का
सरकाते आँगन
जाने कब ओझल होजाते
हॅाकर जैसे दिन

जल्दी-जल्दी आउट होती
सुस्त टीम जैसे
या मुँह में रखते ही घुलती
आइसक्रीम से दिन

ढालानों से नीचे पाँव उतरते हैं जैसे
छोटे स्टेशन पर ट्रेन गुजरते जैसे दिन।

कहीं ठहर कर रहना
इनको रास नहीं आता
हाथ न आयें उड-उड जायें
तितली जैसे दिन ।

पूरब की डाली से
जैसे-तैसे उतरें भी
सन्ध्या की आहट से उडते
चिडिया जैसे दिन ।

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