मिसरी की गोली
अपनी खडी बोली ।
माँ ने दूध में है घोली
अपनी खडी बोली ।
सरस है ,सक्षम है
सरल और शुद्ध है
अनुभूतियों का सागर
अभिव्यक्ति में प्रबुद्ध है
संस्कृति के द्वार पर
जैसे रंगोली .
मिसरी की गोली
अपनी खडी बोली ।
झरना ज्यों झरता है
पवन जैसे बहता है
धरती में नमी पाकर
बीज जैसे उगता है
आता वसन्त भरे
फूलों की झोली .
मिसरी की गोली
अपनी खडी बोली ।
शिशु की है किलकारी .
अलकें ज्यों गभुआरी .
अन्तर की बातों सी
हिन्दी मनोहारी .
इससे ही सजती है
सपनों की डोली .
मिसरी की गोली
अपनी खड़ी बोली .
हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय जोशी जी .
जवाब देंहटाएंसच में मिसरी ही है हमारी हिन्दी ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और बिलकुल सही बात कही आपने शुभा जी । अभिनंदन आपका इस काव्य-सृजन हेतु ।
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