सोमवार, 14 सितंबर 2020

अपनी खड़ी बोली

 

मिसरी की गोली

अपनी  खडी बोली ।

माँ ने दूध में है घोली

अपनी खडी बोली ।

 

सरस है ,सक्षम है

सरल और शुद्ध है

अनुभूतियों का सागर

अभिव्यक्ति में प्रबुद्ध है

संस्कृति के द्वार पर

जैसे रंगोली .

मिसरी की गोली

अपनी खडी बोली ।

 

झरना ज्यों झरता है

पवन जैसे बहता है

धरती में नमी पाकर

बीज जैसे उगता है

आता वसन्त भरे

फूलों की झोली .

मिसरी की गोली

अपनी खडी बोली ।

 

शिशु की है किलकारी .

अलकें ज्यों गभुआरी .

अन्तर की बातों सी

हिन्दी मनोहारी .

इससे ही सजती है

सपनों की डोली .

मिसरी की गोली

अपनी खड़ी बोली .

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