बॅाल हमारी दे दो अम्मा ।
बात हमारी सुनलो अम्मा।
आँगन में, या छत पर होगी ।
अबकी बार और दे दोगी ,
फिर हम कभी नहीं आएंगे ।
कसम हमारी ले लो अम्मा ।
बाल हमारी दे दो अम्मा
मंटू है उत्पाती पक्का ।
इसने ही मारा है छक्का ।
चाहो इसके कान खींचलो,
दरवाजा तो खोलो अम्मा ।
बॅाल हमारी दे दो अम्मा
कहती हो तुम , यहाँ न खेलो।
फिर तुम कहो कहाँ हम खेलें ।
घर छोटे हैं गलियाँ सँकरी,
अब मैदान कहाँ हैं अम्मा ।
बॅाल हमारी दे दो अम्मा ।
दीदी की कविता है न्यारी,
जवाब देंहटाएंसब बच्चों की प्यारी-प्यारी,
बच्चे अपने बड़े हो गए,
नहीं मानते बात हमारी,
दीदी की कविता है न्यारी,
सब बच्चों की प्यारी-प्यारी!!
:)
बहुत सुन्दर व अच्छी शुरुआत ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर व अच्छी शुरुआत ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंबचपन के दिन याद आ गए...
जवाब देंहटाएंबालपन के अहसास समेटे अच्छी कविता।
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