शनिवार, 4 जुलाई 2015

वर्षा दीदी आई

दूर देश में रहकर आई ,
शरमाती मुस्काती 
छम-छम वर्षा दीदी
सोने की पायल छनकाती .
उमड़े नदी तलैया ,
धूल नहाए गौरैया
लेके आए सूरज भैया 
चढ़कर पछुआ मेल
तरस रही थी धरती मैया
गले लगाया आकुल होकर

आँखें भर आईँ तो
आँसू बरसे टप् टप् .

वर्षा दीदी आईँ
देखा , चमकीं सबकी आँखें
नीली पाँखें ,हरियल शाखें 
हवा हिंडोलों में झूले .
गाएं गीत पखेरू पीपल .
मोर पपीहा श्यामा कोयल .
झन् झन् झींगुर
टर् टर् मेंढक
रामजी की बुढ़िया लिपटी ईँगुर .

ओहो ! संग में दूल्हा बादल .
डाले है आँखों में काजल .
पहने काला सूट ठाठ से, जँचते हैं
हँसते हैं लेकिन तुनक मिजाजी ,
बात बात पर गरज तरजकर हमे डराते
आँखें पीली लाल दिखाते ,
सब थर्राते .
वर्षा दीदी रोतीं चुप् चुप्
बरसें आँसू टप् टप् .

हँसते पेड़ बजाते ताली
मुस्काता है रामू माली
बाबू साहेब गरजें खाली
मन में प्यार भरी हरियाली .
देखो माँ की गोदी से
वह नन्हा अंकुर झाँका
उठकर खड़ा हुआ ,
फिर जल्दी बड़ा हुआ .

हरे मखमली कपड़े लाई वर्षा दीदी
सबके पहनाए .
पर्वत घाटी खेत किनारे
फूले नहीं समाए .
छतरी राखी झूला और मिठाई ,
नरम गरम भुट्टे जामुन
कितनी सौगातें लाई .
सबकी वर्षा दीदी आई .
सूरज भैया लेके आए ,थके थकाए
करते हैं आराम .

5 टिप्‍पणियां:

  1. वर्षा दीदी की अभूतपूर्व चित्रण।
    बहुत सुन्दर अनूठे बिम्ब देखने को मिले।

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  2. आपके दूसरे ब्लॉग पर कविता पढ़ी. 'यह मेरी समस्या है'. निम्न टिपण्णी उसी के लिए है. वहां सिर्फ 'टीम मेम्बर्स' को टिप्पणी की अनुमति है-

    ना जाने कितने पुलों का निर्माण करना होता है जीवन में. और लोग उसी पुल से निकले रास्ते के दोराहे से आगे निकल जाते हैं. जीवन फिर नयी चुनौतियों से निबटने की तयारी करने लगता है. आखिरकार इसी चक्र का स्वीकार जीवन है. मुझे ऐसा लगता है. जीवन के अंतर्द्वंद का सुन्दर दर्पण है आपकी यह रचना.

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    1. रंजन जी , मुझे बेहद खुशी मिली कि आपने रचना पढ़ी और इतनी पसन्द आई कि किसी भी तरह अपनी बात मुझ तक पहुँचाई .वास्तव में मेरे ब्लाग पर आने वाले बहुत कम हैं पर जो भी हैं मेरे लिये वे असंख्य हैं . धन्यवाद .

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