मंगलवार, 5 मई 2020

सबसे सुन्दर


एक छोटी सी नदी के किनारे एक बड़ा सा बगीचा फैला हुआ था .बगीचे में कई तरह के पेड़ थे .आम, कटहल, अमरूद ,सन्तरा ,कचनार ,गुलमोहर,चम्पक ,मौलश्री ,नीम आँवला आदि ..बीच-बीच में मोगरा गुलाब ,हरसिंगार, गेंदा ,रातरानी जैसे सुन्दर और सुगन्धित फूलों वाले पौधों की कतारें करीने से सजी हुईं थीं . इसी बगीचे के एक कोने में ठीक नदी के किनारे एक बबूल का पेड़ जाने कब उगा और चुपचाप बड़ा होने लगा .जब तक वह छोटा ,एक झाड़ी की शक्ल में था तब तक तो उस तरफ किसी का ध्यान नही गया लेकिन जैसे ही वह चाँदनी और गुड़हल से ऊँचा उठकर अमरूद की बराबरी करने लगा तो बगीचे के तमाम पेड़ों को वह अखरने लगा .हर कोई सोचने लगा --इतने शानदार बगीचे में यह फालतू सा पेड़ कहाँ से आगया .
“अरे यह देखने में भद्दा सा है बल्कि खास काम का भी नही है .”--आम का पेड़ बोला .उसे अपने पत्तों ,बौर ,फल और घनी छाँव पर बड़ा गर्व था . 
नीम के पेड़ ने आम की बात का समर्थन किया .बोला—
"हमारा इसका कोई मुकाबला ही नही है .हमारे साथ न इसके पत्ते गिरते हैं न ही नए पत्ते आते हैं. और न ही हमारे जैसी छाँव है . भरी गर्मियों में बिना पत्तों के किसी जिद्दी बच्चे सा लगता है जिसे कपड़े पहनना पसन्द नहीं."
“ और नहीं तो क्या, इसके पत्तों का रंग तो देखो ,जैसे रंग कम पड़ने पर चित्रकार ने चित्र में फीका ही रंग भर दिया हो .”--कचनार अपनी कल्पना पर खुद ही खुश होकर बोला . तब गुलमोहर कैसे चुप रहता .अपने लाल-नारंगी खूलों के खूबसूरत गुच्छों पर इतराते हुए बोला—
”इसके फूल देखे हैं . छोटी-छोटी बुँदकियों जैसे पीले फूलों के नाम 
पर एकदम मजाक हैं .”
“तो फिर सबसे मजेदार बात मुझसे सुनो  .”—अमरूद के पेड़ ने कुछ इस तरह कहा कि सबका ध्यान उसी की तरफ खिंच गया .
" हम सब जहाँ फूलों के साथ ही फलों की तैयारी करते हैं ,ये महाशय फूलकर फूले रहते हैं , फलने का ध्यान आता है कम से कम छह-सात महीने बाद .लोग इसी के बारे में तो कहते हैं--सावन फूलै चैत फलै . 
इस बात पर सबने तालियाँ बजाईं .
तो फल कौनसे मीठे या रस भरे होते हैं .--सन्तरा बोला --फलों के नाम रूखी बेस्वाद फलियाँ आतीं हैं जिन्हें बकरियों के अलावा जो बेचारी अचरा-कचरा सब खा लेतीं हैं ,कोई पसन्द नही करता .
बबूल का पेड़ अभी तक इन सारी बातों से अनजान था और आसपास की दुनिया को देखकर बहुत खुश था .नीचे बहती छोटी नदी उसके फूलों को पसन्द करती थी ,जो सीधे गिरकर उसकी धारा में बहते थे .लेकिन धीरे-धीरे उसे महसूस होने लगा कि वह इन सबसे अलग है . बदसूरत और बेकार .कोई चिड़िया उसके पास नहीं आती थी . एक दिन जब उसने गौरैया को पुकारा तो उसने टका सा जबाब दिया --
"मैं नही आ सकती . मुझे तुम्हारे काँटों से डर लगता है ."

बुलबुल ने कहा—"मुझे तुम्हारे फूल पसन्द नही हैं ."
कोयल बोली --"मैं हमेशा बड़े और सुन्दर पत्तों के झुरमुट में बैठकर गाती हूँ ,तुम समझ रहे हो न ?"
तोतों ने कहा--" दोस्त अगर तुम मुझे खट्टे-मीठे फल खिलाओ तो मैं जरूर आजाऊँ ."
फिर आम के पेड़ ने तो साफ कह ही दिया—"तुम्हें इस बगीचे में होना ही नही था मेरे भाई ." 
'कुदरत ने मुझे कुछ भी अच्छा नही दिया .'—बबूल का पेड़ उदास होगया .

ऋतुएं आईं और चलीं गईं .आषाढ़ सावन की काली घटाओं ने उसे फूल दिये . उसे खुशी नही हुई .वसन्त के अन्त में उसे फलियाँ भी मिलीं लेकिन उसकी उदासी दूर नही हुई .मार्च-अप्रैल में हवा खुश्क होने के बावजूद चम्पक-शिरीष और कदम्ब के फूलों की महक से बोझिल होगई थी .कचनार की डालियाँ बेशुमार फूलों से लद गईं थीं . गुलमोहर की कलियों ने हरे सन्दूकों में से लाल-नारंगी चुन्नियाँ निकाल लीं थीं . नीबू के पेड़ ने टहनियों में अनगिन सितारे टाँक लिये थे और पलाश फूलों का गुदस्ता नजर आने लगा था . तब बबूल का पेड़ बड़ी हसरत से उन सबकी साज-सज्जा देख सोच रहा था—'काश वह भी ऐसा ही एक खूबसूरत पेड़ होता .'
उन्ही दिनों बगीचे में गौरैया जैसी ही चिड़ियों का एक जोड़ा चक्कर लगा रहा था . वह बया का जोड़ा था जिसे अपने होने वाले अण्डों और फिर बच्चों के लिये घोंसला बनाना था और इसके लिये उसे उपयुक्त पेड़ की तलाश थी .नर बया जो पीले रंग के कारण मादा से अलग दिख रहा था ,मादा को एक एक कर बगीचे के सारे पेड़—आम कटहल जामुन अमरूद नीम शीशम ..दिखा चुका था पर मादा को कोई पेड़ नही जँचा अन्त में उनका ध्यान कोने में शान्त खड़े उस बबूल की ओर गया . उन्होंने बबूल की टहनियों की ऊँचाई और मजबूती देखी . छोटे विरल पत्ते और काँटे देखे .
"आहा ,यही तो पेड़ है जिसकी हमें तलाश थी ."-मादा बया चहककर बोली .
"हम इसी पर अपना घोंसला बनाएंगे ."
बूबल ने चकित होकर देखा कि वहाँ के बया और भी जोड़े आगए थे .यही नही कास और सरकंडे के रेशों से उन्होंने जल्दी ही घोंसला बनाना भी शुरु कर दिया .
कुछ ही दिनों में बबूल की टहनियों में कई सुन्दर घोंसले झूलने लगे . बगीचे के सारे पेड़ों ने अचरज के साथ बबूल के पेड़ देखा .
एक दिन घोंसलों में कई नन्ही-नन्ही आवाजें गूँजने लगीं तो बबूल का पेड़ जैसे प्यारा सा झुनझुना बन गया . उसकी पत्तियाँ खुशी से थिरक उठीं .बगीचे के सारे पेड़ कह उठे--
"बबूल का पेड़ कितना खुशनसीब है .काश हमारी टहनियों में भी ऐसे घोंसले झूलते ."
बबूल के पेड़ को अब आम या कचनार बनने की जरूरत नही थी .

1 टिप्पणी:

  1. वाह बहुत ही बढ़िया पोस्ट ,वृक्षों की आपसी वार्त्तालाप, मानव जीवन की भांति शानदार ,अद्भुत कल्पना ,नमन गिरजा जी

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