रविवार, 16 मार्च 2014

होली, होली, होली ।

सुबह -शाम सिन्दूरी हो  लीं ।
होली, होली, होली  ।
आँगन धूप झाँक कर बोली , 
होली, होली, होली ..।

खुलीं ,खिलीं कचनारी कलियाँ।
चीं चीं...चूँ,चूँ ..गाऐं चिडियाँ।
हुल्लड करती हरियल-टोली,
होली , होली , होली ,।

सरसों को रँग दिया वसन्ती ,
पीली ,लाल हुई सेवन्ती ।
टेसू ने लो केसर घोली --
होली , होली , होली ।

 जी भर बौराई अमराई ,
बेरों ने खुशबू फैलाई ।
है शहतूत शहद की गोली -
होली , होली , होली ।

हवा झूमती सी लहराती ,
झूम-झटक पेडों को जाती ।
उसके पास गुलाल न रोली -
होली , होली , होली ।

बगुला जी रंगों से बचने ,
नदी किनारे पहुँचे छिपने ।
दे पिचकारी मछली बोली--
होली , होली , होली ।

छुप ना कोयल बाहर आ री ,
तुझ पर रंग चढेगा क्या री ।
खुल कर करले हँसी ठिठोली--
होली , होली , होली ।
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9 टिप्‍पणियां:

  1. मस्त होली है!! सबों को भिगोकर रंग गई अपने रंगों में!!
    होली की बहुत बहुत शुभकामनाएँ!!!

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  2. वाह...सुन्दर और सामयिक पोस्ट...
    आप को होली की बहुत बहुत शुभकामनाएं...
    नयी पोस्ट@हास्यकविता/ जोरू का गुलाम

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  3. बहुत सुन्दर रचना, होली की शुभकामनायें।

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  4. आहा ! लयबद्ध सुंदर और सरल कविता
    होली और वसंत की शुभ-कामनाएं

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  5. बच्चों के लिए ?अरे ,यह तो हम बूढ़ों मन भी अपने रंगों में लपेट ले ऐसी प्यारी कविता है !

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  6. बहुत सुंदर शब्द प्रयोग, मीठी अभिव्यक्ति...

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