गुरुवार, 13 नवंबर 2014

अलविदा -दूधिया दाँत

14 नवम्बर 2014
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पूरा पक जाने पर टपके टहनी से ज्यों आम ।
पूरी खिलकर ,झट से झर जाएं पाँखुरियाँ  शाम।


छुट्टी मिलते ही शाला से बच्चे दौड़े भागे

 रोज खिसक लेते चन्दा जी ,सूरज जी के जागे ।
ऐसे ही अलविदा कह गए छोड़ दूधिया पाँत।
खोल हँसी की खिड़की खिसक गए नटखट दो दाँत ।


मान्या जी थीं हक्की बक्की एक न फूटा बोल । 
जाते जाते दाँत ,खोल गए सबके आगे पोल ।

   


आठ साल की होगई है अब मेरी गुड़िया रानी 
सालों साल सबेरा उसकी लिक्खे नई कहानी ।

मन की महकी फुलबगिया है , आँखों की उजियारी ।
उसकी मीठी बातों में ही ,सिमटी दुनिया सारी ।




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