वह बहुत
ही सर्द सन्नाटे से भरी रात थी .सर्दी के आतंक से सड़कें ,गलियां सहमी और खामोश
थीं. पेड़-पौधे कोहरे की चादर में लिपटे थे फिर भी काँप रहे थे . बाहर लॉन में
यूकेलिप्टस के पत्ते आंसू बहा रहे थे .यह सब देख जैसे सितारे भी थरथरा उठे थे .
उस समय
रात के लगभग साढ़े बढ़ बजे होंगे . लेकिन श्रीमती वर्मा अभी तक जाग रही थी और नीद की
प्रतीक्षा उसी तरह कर रही थीं जिस तरह प्लेटफार्म पर कोई यात्री लेट हुई ट्रेन की
प्रतीक्षा करता है .
श्रीमती
वर्मा की नींद उड़ने का कारण कोई चिंता भी हो सकती थी और कड़ाके की सर्दी भी, जो परीक्षा में ड्यूटी देने वाले मास्टरजी की तरह सब
जगह कड़ी नजर जमाए थी.
लेकिन वास्तव
में उनकी नींद उड़ने का कारण किवाड़ की दरार से आती पतली सी आवाज थी—कूं..कूं ..कूं
.. जो क्रमशः कातर होती जाती थी .
“यह कम्बख्त तो फिर लौट आया शायद “—श्रीमती वर्मा ने
कुढ़ते हुए सोचा .
“ कितना ढीठ है जरा सा पिल्ला ? खुद इतनी दूर छोड़कर आई थी
फिर भी सूंघ-सांघकर लौट आया मरा . यह सारी करामात दीपू की है .”
दीपू
श्रीमती वर्मा यानी शोभादेवी का भांजा है .बड़ी ननद ने यहाँ पढ़ने के लिए भेजा है पर
इसे शोभादेवी ही जानती हैं कि दीपू का मन पढाई में कम और कुत्ता-बिल्ली के बच्चों
से खेलने और और गिलहरियों को चना मूंगफली खिलाने ज्यादा लगता है . कही किसी पेड़ पर
कोई घोंसला दिख गया तो समझो उसका दिन वहीँ बीतना है .यही वजह है कि पढाई के बहाने
दीपू अक्सर सक्सेना जी के बगीचे में जा बैठता है .
शोभादेवी
को दीपू के इन शौकों से कोई खास आपत्ति नहीं है लेकिन घर में किसी जानवर के बच्चे
,खास तौर पर कुत्तों को लाने की सख्त मनाही है क्योंकि वह काफी सफाई-पसंद महिला है
.
लेकिन
पिल्लों को देख दीपू का खुद पर काबू नहीं रहता है .मामी की वर्जना के बावजूद उसके
साथ कोई न कोई पिल्ला या किसी जानवर का बच्चा देखा जासकता है .
उस दिन
भी ,यह जानते हुए भी कि पिल्ले को देख मामी का पारा चढ़ जाएगा ,वह एक काले गोल-मटोल
गुलफुले से पिल्ले को ले आया .मामी ने देखते ही आदेश सुनाया –“ घर में आना है तो इसे
कही बाहर छोड़कर आ .नहीं तो तू भी इसके साथ गलियों में भटक .मैं जीजी से कह दूंगी कि...
“मामी ! मेरी बात तो सुनो प्लीज ..”—गजब का ढीठ है दीपू
भी .डरने का अभिनय करता हुआ पिल्ले को लिए ही अंदर आगया .
“मैं तुम्हें नाराज नहीं करना चाहता था मामी सच्ची , विद्या-कसम
लेकिन क्या है कि यह बेचारा तीन दिन से भूखा है .कोई बेरहम इसकी माँ को कुचलकर भाग
गया .बेचारा उसी जगह बैठा जोटा रहता है . मामी मैं इसे छोड़ आऊंगा सच्ची ,बस जरा
सा दूध दे दो .”
शोभादेवी
ने दूध इस शर्त पर दिया कि दीपू आज ही अभी उसे कही दूर छोड़ आएगा.
“एक बार लपक गया तो जाने के नाम भी नहीं लेगा यह .देखो न दूध को कैसे लपलप करके
पी गया . ”
शर्त के अनुसार दीपू
पिल्ले को छोड़ आया पर शाम को वह घर की चौखट पार कर रहा था .
“मैं दीपू की चालबाजी खूब समझती हूँ .जरुर यही-कही छोड़कर आया होगा जानबूझकर .” –शोभादेवी ने अपने पति श्री वर्माजी को बताया
और कहा—“ मुझे दीपू पर जरा भी भरोसा नहीं . आप खुद इसे कही दूर छोड़कर आना .”
वर्माजी पत्नी के निर्देशानुसार उस पिल्ले को दूर किसी गली में छोड़ आए पर यह क्या, दो दिन बाद वे महाशय शान से वर्माजी के द्वार की तरफ चले आ रहे थे . यह देख शोभादेवी ने अपना माथा पीट लिया . मारे खीज के उसे पैर से दूर धकेला ,मन ही मन दीपू को बुरा भला कहा और फिर खुद जाकर उसे स्टेशन के उस पार एक नाले के किनारे छोड़ आई .
वर्माजी पत्नी के निर्देशानुसार उस पिल्ले को दूर किसी गली में छोड़ आए पर यह क्या, दो दिन बाद वे महाशय शान से वर्माजी के द्वार की तरफ चले आ रहे थे . यह देख शोभादेवी ने अपना माथा पीट लिया . मारे खीज के उसे पैर से दूर धकेला ,मन ही मन दीपू को बुरा भला कहा और फिर खुद जाकर उसे स्टेशन के उस पार एक नाले के किनारे छोड़ आई .
“अब नहीं आएगा”—शोभादेवी ने तब इत्मीनान से सोचा था .
“लेकिन मैं तो आ गया .“---बाहर से लगातार आ रही कूकने की आवाज जैसे यही कह रही थी .
“आ गया है तो मर “—शोभादेवी ने रजाई को चारों ओर से दबाते हुए अपने आपको मुक्त किया .
रात के साथ सर्दी की भी गहराई बढती जा रही थी .दीपू और वर्माजी गहरी नींद में थे पर शोभादेवी कुछ ज्यादा ही सर्दी महसूस कर रही थीं .रजाई के अंदर भी हाथ-पाँव जमे जा रहे थे .
रात के साथ सर्दी की भी गहराई बढती जा रही थी .दीपू और वर्माजी गहरी नींद में थे पर शोभादेवी कुछ ज्यादा ही सर्दी महसूस कर रही थीं .रजाई के अंदर भी हाथ-पाँव जमे जा रहे थे .
“जब अंदर कमरे में , रजाई के भीतर यह हाल है तो बाहर क्या
होगा ? कही वह ठिठुरकर मर-मरा न जाए “
इस
विचार के बाद वह लेटी न रह सकी .किवाड़ खोलकर देखा .पिल्ला दीवार से चिपका काँप रहा
था .मानो ठण्ड से बचने दीवार के अंदर घुस जाना चाहता हो . उसका कूकना धीमा होगया
था जैसे बहुत रो लेने पर बच्चा निढाल हो जाता है .
शोभादेवी
ने पिल्ले को उठाकर शाल में लपेट लिया . और रजाई में दबा दिया . उन्हें महसूस हुआ
कि नन्ही सी धडकनों से उसका कोमल शरीर हिल रहा था . हल्की सी घुरघुराहट उसकी राहतभरी
नींद की सूचना थी .
अब
शोभादेवी को नींद आने लगी थी .
इस लघुकथा का शीर्षक अपने आप में सारी कहानी कहता है. और अगर मैं कहूँ कि यह मेरे बचपन की सत्य घटना पर आधारित है तो आश्चर्य भी नहीं होना चाहिये. मेरी बुआ को जानवरों से सख़्त नफरत है. एक कुत्ता ऐसे ही उनके घर आने लगा. मेरे फूफा जी की पोस्टिंग तब मुज़फ्फरपुर में थी. वो शनिवार को पटना आते थे और सोमवार को चले जाते थे. तब गंगा में स्टीमर चलता था जिससे नदी पारकर उत्तरी बिहार से यातायात सम्भव हो पाता था.
जवाब देंहटाएंफूफा जी उस कुत्ते को अपने साथ पुचकारते हुये ले गये और चुपके उसे स्टीमर पर चढा लिया और गंगा के पार ले जाकर छोड़ दिया. बुआ को इत्मिनान हुआ. लेकिन आश्चर्य तो तब हुआ जब अगले शनिवार को वह कुत्ता चुपके से फूफा जी के साथ पटना वापस आ गया हफ्ते भर उनका इंतज़ार करता हुआ.
उसके बाद बुआ ने उसे कभी नहीं भगाया अपने घर से!
माँ का दिल तो दिल है सभी के लिए धड़कता है... सुन्दर कहानी..
जवाब देंहटाएंगिरिजा जी मैने भी कहानी लिखने की कोशिश की है...कृपया मेरी कहानी" पाखी की पंखुरी" पढ़ कर अपना विचार अवश्य दे ..धन्यावाद...आभार
जवाब देंहटाएंइस कहानी ने बचपन याद दिला दिया वैसे अभी भी बचपन में ही हूँ
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