सोमवार, 30 दिसंबर 2013

नई सुबह

नीम की सबसे ऊँची टहनी पर किट्टू ने देखा । अभी तो चारों तरफ अँधेरा था ।आसमान में थरथराते हुए से तारे और धुन्ध में डूबे हुए पेड-पौधे अभी रात शेष होने की सूचना दे रहे थे ।
वह दिसम्बर की आखिरी रात थी । कडकडाती सर्दी में पत्ता-पत्ता काँप रहा था । किट्टू का सारा शरीर बर्फ हुआ जारहा था । लेकिन नई सुबह का विचार उसके मन में ऊष्मा पैदा कर रहा था । 


इस सुबह का किट्टू को बेसब्री से इन्तजार था । अपनी माँ सोना गिलहरी और कई चिडियों से उसने महीनों पहले सुन रखा था कि पहली जनवरी की सुबह नई और अनौखी होगी क्योंकि इस बार पहली जनवरी को केवल साल ही नया नही होगा बल्कि सदी भी नई होगी । साल या सदी का बदलना किट्टू के लिये एकदम नई बात थी । इसलिये वह सबसे अदिक उत्साहित था । अपने सारे क्रियाकलाप छोड कर वह मुँडेर पर धूप का आनन्द लेता हुआ उत्सव की उन तैयारियों के बारे में सुनता रहता जो नववर्ष के स्वागत के लिये की जारहीं थी ।
हरियल ,मैना पंडुकी,बया, कबूतर और नीलकण्ठ ने गीतों का कार्यक्रम तैयार किया था ,कुछ इस तरह कि गाते-गाते सबेरा हो और नए साल का स्वागत मधुर गीतों से हो । वे सबको यह भी दिखा देना चाहते थे कि गीत गाना केवल कोयल, पपीहा, या श्यामा को ही नही ,उन्हें भी आता है और बेशक उनसे अच्छा ।
गौरैया, बुलबुल, फुदकी ,हुदहुद ,कठफोडवा, आदि ने नृत्य प्रस्तुत करने का जिम्मा लिया । उन्होंने मोर के परम्परागत नृत्य से अलग एक नई शैली का नृत्य तैयार किया था जिसमें उछलना, कूदना ,दौडना, खदेडना, और भिडना ,सब शामिल था । उनके विचार से खुशी जाहिर करने का यह एक बेहतर और मौलिक तरीका था ।
चींटू चूहे और छुटकी छछूँदर ने शानदार दावत रखी थी और उल्लू व चमगादड ने रोशनी का बढिया इन्तजाम किया था । 
अरे मुझको भी तो कोई काम दो...मुझे भी तो नई सुबह का स्वागत करना है ...। किट्टू इन तैयारियों को देख उत्साह से भर जाता । गौरैया कहना चाहती कि , अभी उँगली भर के हो बच्चे । क्या काम करोगे । लेकिन उसने चहक कर कहा----"बिल्कुल ,और तुम्हें जो करना है वह यह कि अपनी खूबसूरत पूँछ को सम्हाले मूँगफली के दाने कुतरते रहो और हम सबके काम की निगरानी करो ।"
दिसम्बर की उस आखिरी रात अपने वशभर कोई नही सोया । लेकिन रात ढलते-ढलते सबको नींद के झोंके आने लगे । अकेला किट्टू ही था जिसने एक पल भी झपकी नही ली । उसे फिक्र थी कि सोजाने पर हो सकता है कि नई सुबह के आने का पता ही न चले । और इस तरह तो वह सुबह का स्वागत कर ही नही सकेगा । इसलिये जैसे ही कुक्कू मुर्गे ने पहली बाँग दी--" कुकडू.....कूँ " वह फुर्ती से पेड की सबसे ऊँची टहनी पर जाकर बैठ गया । वहाँ से नई सुबह को सबसे पहले अभिवादन किया जा सकता था ।
लेकिन आसपास घिरे अँधेरे को देख उसे कुक्कू की जल्बाजी पर अचरज हुआ ।
"तुम्हारी अक्ल को क्या हुआ है कुक्कू ? क्या अब भी तुम्हें किसी ने टार्च दिखादी ,जो रात में ही सुबह का एलान कर बैठे ?"
"अरे नही किट्टू जी,"---कुक्कू झेंप कर बोला---"वह तो टी.वी. वालों ने टार्च का विज्ञापन जो करवाया था । कमाई वाली बात थी न । लेकिन अब तो मैंने यकीनन सही समय पर ही बाँग दी है । क्या है कि सर्दियों में सूरज सर रजाई से निकलने में अलसाते हैं इसलिये उजाला नही होपाता । बाँग सुन कर पहले चिडियाँ जागतीं हैं फिर वे सूरज जी को जगातीं हैं तब कहीं आराम से बाहर निकलते हैं जनाब इसीलिये तो....। सब्र करो ,कुछ ही देर में उजाला होने लगेगा ।"
सचमुच कुछ देर बाद पेड-पौधे धुन्ध की चादर उतारने लगे । तारे भी एक-एक कर गायब होने लगे । और फिर पूरब में क्षितिज पर लालिमा बिखरने लगी ।
बस अब नई सुबह आने को ही है---किट्टू ने खुश होकर देखा । जैसे झाँझी के सूराखों से दीपक की रोशनी फूटती है वैसे ही प्राची के क्षितिज से सुनहरी किरणें फूटने लगीं थीं । और कुछ ही पलों में पहाड के पीछे से किसी ने जैसे बडी लाल गेंद को उछाल दिया हो , सूरज उभर कर ऊपर उठने लगा।
"नई सुबह मुबारक हो ! मुबारक हो "---पेडों की टहनियों पर बैठीं चिडियाँ चहकने लगीं । पेड किसी झुनझुने की तरह बज उठे । तभी सोना ने पुकारा----"किट्टू , मुबारक़ नई सुबह । तुम वहाँ अकेले क्या कर रहे हो ? हमारे साथ आकर खुशियाँ मनाओ ।"
"नई सुबह ?" किट्टू ने आश्चर्य से पूछा ।
"कहाँ है नई सुबह ?" मैं तो उसके आने का रात से ही इन्तजार कर रहा हूँ ।"   
"तुम्हें नई सुबह नहीं दिखाई देती ?"---कालू कौवे का छोटा बच्चा बोल पडा जो दिखने में कालू जैसा ही बडा होने पर भी सूरत से काफी बचकाना और भोला लगता था----"तुम्हारी आँखें तो दुरुस्त हैं न ?" 
"मेरी आँखों को छोडो, पहले यह बताओ कि नई सुबह है कहाँ ?"--किट्टू ने तेजी से पूछा ।
"यही तो है नई सुबह ।" कौवा के बच्चे ने कहा और अपनी माँ से उसकी पुष्टि करवाने बोला----"है न माँ ?" 
"बिल्कुल " उसकी माँ विश्वास के साथ बोली --"यही तो है नई सुबह ।"
नन्हा किट्टू बडा हैरान हुआ । उसने फिर से चारों ओर गौर से देखा । सब कुछ रोज जैसा ही तो है 
सूरज रोज की तरह ही लाल रंग का उगा है । आसमान नीला ही है । सामने का पहाड आज भी सुरमई रंग का है । नदी उसी तरह पश्चिम की ओर बह रही है । खेत ,मैदान,पेड-पौधे फूल-पत्ते, सब जैसे कल थे वैसे ही तो आज भी हैं । यहाँ तक कि हवा भी उतनी ही ठण्डी है वैसी ही खुशबू वाली । आखिर नयापन है भी तो कहाँ ??
"मैं क्या जानूँ ?" कौवे का बच्चा किट्टू के तर्कों से उलझन में पड गया --" मेरी माँ कहती है , कैलेण्डर ,टी.वी., रेडियो, अखबार और सारी दुनिया कह रही है ,वह क्या गलत है ?"
लेकिन किट्टू के गले यह बात नही उतरी कि सिर्फ अखबार में छपने या कैलेण्डर के अंक बदलने से ही कोई सुबह नई कैसे हो सकती है जबकि सब कुछ वैसा ही हो ।
"तुम्हारा सोचना अपनी तरह से बिल्कुल सही है "----सोना ने किट्टू को प्यार से समझाया --"केवल कैलेण्डर से नई सुबह नही हो सकती क्योंकि जितने कैलेण्डर उतने ही नए साल । कोई पहली जनवरी को नये साल का आरम्भ बताता है कोई बाईस मार्च को ,कोई गुडी पडवा को तो कोई मोहर्रम की पहली तारीख को ....। दरअसल वह नयापन अखबार कैलेण्डर मे नही हमारे अपने मन में है ।"
किट्टू यह सुनकर और भी उलझ गया । 'नयापन ? विचारों में ? कैसे ?..।
सोना समझाती रही ---"हाँ मेरे बच्चे ,नयापन हमारे अपने विचारों से आता है । मान लो कि पूरे साल कोई त्यौहार न आए । कोई होली, दिवाली ,दशहरा ,ईद ,क्रिसमस आदि त्यौहार न मनाए जाएं तो पूरा साल कितना लम्बा और उबाऊ लगेगा । न आनन्द होगा न उल्लास । त्यौहार हमें खुशी ही नही उम्मीदें व हौसले भी देते हैं । नई सुबह को भी तुम नए एहसास का नाम दे सकते हो । नए विचारों व नए संकल्पों का नाम । नए साल के बहाने हम मन में उल्लास उमंग और ताजगी लाते हैं । उल्लास के साथ बिताए कुछ पल हमें नई ऊर्जा देते हैं । मेरे विचार से तो नई सुबह का यही मतलब है ।"
"फिर तो माँ "....किट्टू माँ की बात को और ज्यादा समझने के लिये थोडा रुका फिर बोला--" हम हर सुबह को भी एक नई सुबह मान कर एक खुशहाल दिन की शुरुआत कर वसकते हैं ।" 
"क्यों नही ?" तमाम चिडियाँ चहक उठीं---"यह तो और भी अच्छी बात होगी ।" और फिर वे किट्टू को नववर्ष के उत्सव में खींच ले गईँ ।
(जनवरी सन् 2000 चकमक में प्रकाशित )

2 टिप्‍पणियां:

  1. नव-वर्ष्ज को सम्पूर्ण नवीनता के साथ परिभाषित किया है आपने.. मैंने भी इन्हीं भावों के साथ एक कविता लिखी थी कुछ साल पहले... एक बड़ी खुशी की प्रतीक्षा में हम जीवन की अनगिनत छोटी-छोटी खुशियाँ खो देते हैं.. एक साल के लिये साल के 365 दिनों की खुशियों को क्यों भुलाया जाए.
    हमारी ओर से आप्को तथा घर के सभी बड़े-छोटों को वर्ष 2014 की शुभकामनाएँ!!

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  2. "फिर तो माँ "....किट्टू माँ की बात को और ज्यादा समझने के लिये थोडा रुका फिर बोला--" हम हर सुबह को भी एक नई सुबह मान कर एक खुशहाल दिन की शुरुआत कर वसकते हैं ।"
    ati sundar aasha se bhari hui ,main dil se aapki aabhari hoon ,nav varsh ki dhero badhaiyaan aapko .

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