सोमवार, 19 अगस्त 2013

धरती गमक उठी है ।


पडी फुहारें वन आँगन में ,

भीगी धरती गमक उठी है ।

धूमिल काले कलश उठाये,

मेघराज पानी भर लाये ।
उमड--गरज कर खाली कर गये,
बीजुरिया ,लो चमक उठी है ।

आ, मयूर मतवाला नाचे ,

कोयल मीठी कविता बाँचे ।
भर-भर उमडी उफनी नदियाँ ,
इतराती सी झमक उठी हैं ।

बिछा मखमली हरा गलीचा ,

झूलों से है सजा बगीचा ।
मधुर मल्हार हवा गाती है,
हरियाली भी दमक उठी है ।

कीट-पतंगों का मेला सा ,

बीर-बहूटी का रेला सा  ।
मेंढक , झीगुर से झन्नाती ,
भीगी रातें बमक उठी हैं ।

सीले कपडे बिस्तर दादी ,

सेवईं पापड धूप दिखाती ।
जब लगता आकाश खुला है ,
सुस्त दुपहरी तमक उठी है ।

बुधवार, 14 अगस्त 2013

हमारा तिरंगा

हमें जान से भी है प्यारा तिरंगा,
अनौखा निराला है न्यारा तिरंगा ।

ये लहराए, पहली किरण मुस्कराए

सिन्दूरी प्रभा से गगन जगमगाए।
उदय होते रवि का नजारा तिरंगा,
अनौखा निराला.......

बीच का श्वेत-रंग है हिमालय का गौरव,

गूँजता है अमन के कपोतों का कलरव।
विमल सादगी का सितारा तिरंगा,
अनौखा निराला.........

हरित बाग-वन की छटा लहलहाती,

कि नीचे हरी  क्यारियाँ मुस्कराती,
हरियाली खुशहाली का नारा तिरंगा।
अनौखा निराला.........

चक्र है बीच में जैसे आँखों की पुतली।

अखिल विश्व को दे रहा द्रष्टि उजली।
डूबती आस्थाओं का किनारा तिरंगा।।
अनौखा निराला.......

आन है मान है अपना सम्मान है।

गीत बलिदान का देश की शान है ।
एक अभिमान अपना सहारा तिरंगा।
अनौखा निराला.......

कभी शान हम इसकी गिरने न देंगे।

कभी शीश हम इसका  झुकने न देंगे।
ऊँचा है और रहेगा हमारा तिरंगा ।
हमें जान से भी है प्यारा तिरंगा ।

सभी पाठकों को स्वाधीनता-दिवस मुबारक