मोहन अपनी गायों को लेकर जंगल में पहुँचा ही था कि पश्चिम की ओर से आसमान में घने बादल उठते दिखे और कुछ ही देर में तेज बारिश शुरु होगई .
मौसम के इस तरह अचानक बदलने का उसे जरा भी अनुमान नहीं था . वरना गायों के साथ वह इतनी दूर नहीं आता . असल में जंगल में नदी के पार खूब सारी हरी और नरम घास मिलती है . तभी तो शाम को लौटते समय गायें खूब छकी होतीं हैं .इसलिये गाँव के ज्यादातर लोग अपनी गायें मोहन के साथ भेजते हैं .
मोहन पन्द्रह-सोलह साल का दुबला-पतला सीधा-सादा लड़का है . पिता नहीं है . अकेली माँ है जो दूसरों के खेतों में गुड़ाई कटाई जैसे काम करके कुछ कमा लेती है . मोहन को भी गायें घेरने का अच्छा पैसा मिल जाता है . इस तरह माँ-बेटे की जीविका अच्छी तरह चल जाती है . मोहन के पास भी एक गाय है . नाम है कजरी .मोहन कजरी को बहुत प्यार करता है .पर कजरी को मोहन की अम्मा से ज्यादा लगाव है . वह मोहन के हाथ से चारा खाती है , नहाती है ,जंगल जाती है पर दूध केवल अम्मा को ही देती है .
एक बार बड़ी मजेदार बात हुई . मोहन की माँ को दो दिन के लिये अपने भाई के घर जाना पड़ा . तब सवाल यह खड़ा हुआ कि दूध कौन निकाले . कजरी किसी और को तो क्या मोहन को भी हाथ नहीं लगाने दे रही थी . तब मोहन को उसके पड़ोसी ने सलाह दी कि कजरी के आगे तुम्हें माँ जैसा दिखना होगा . तब शायद बात बन जाए . मोहन के यह सलाह अच्छी लगी . उसने माँ की साड़ी पहनी . माँ की तरह ही माथे पर पल्ला किया . तब कहीं कजरी ने दूध दिया .
मोहन एक अच्छा चरवाहा है . वह जितना कजरी से प्रेम करता है उतना ही दूसरी गायों से भी करता है . मालिक की तरह देखभाल करता है . उनकी हर बात समझता है .गायें भी मोहन से हिलीमिली हैं . अपना नाम पुकारने पर तुरन्त मोहन के पास आजातीं हैं .
हाँ..तो उस दिन मोहन सचमुच मुसीबत में फँस गया . एक तो वह गाँव से बहुत दूर जंगल के खूब अन्दर पहुँच गया था ,दूसरे जरा तेज वर्षा होने पर ही नदी में बाढ़ आजाती है और गाँव तक पहुँचने के लिये पुल वाले रास्ते जाना पड़ता है जो बहुत चक्कर वाला है . पर मोहन घबराया नहीं . उसने एक बरगद के पेड़ के नीचे सारी गायों को इकट्ठा कर लिया और बारिश के बन्द होने का इन्तजार करने लगा .पत्तों के झुरमुट में चिड़ियां गिलहरियाँ बूँदों से बचने की कोशिश कर रही थीं .बीच बीच में गीले पंखों को फड़फड़ाकर सुखा रही थीं . सामने छोटी छोटी जलधाराएं बह रही थीं और बौछारों में नहाते पेड़-पौधे बहुत खुश लग रहे थे . यह सब देखते हुए मोहन कुछ देर के लिये जैसे खोगया . चिड़ियों की चहचहाहट से उसकी तन्द्रा टूटी .
'आहा पानी बन्द होगया . इतने पानी से नदी के ‘आने’ (बाढ़) का खतरा भी नहीं है .' यह सोचकर उसने घर लौटने से पहले , जैसा कि वह रोज करता था ,सारी गायों को गिना -– "गंगा ,गोमती,कलिया ,नर्मदा, पारबती ,मंजरी....सब हैं पर कजरी ..पर कजरी कहाँ है ?"
“कजरी, ओ कजरी ! ”---मोहन ने पुकारा पर जैसे वह सदा की तरह नाम सुनते ही दौड़ आती थी , नहीं आई .
“कजरी !..ओ कजरी ! आ..आ...”.मोहन ने कुछ और जोर से फिर पुकारा पर कजरी की कोई आहट नहीं . मोहन को कुछ आशंका हुई . गाय नीचे तलहटी में तो नहीं उतर गई . उधर लकड़बग्घा जैसे कुछ जंगली जानवर भी हैं जो सीधे तो गाय पर हमला नहीं कर सकते पर घायल तो कर सकते हैं और घायल होने पर मार जरूर देते हैं . अब मोहन सचमुच घबरा गया . वह इधर उधर भागता कजरी कजरी चिल्ला रहा था उसके साथ गायें भी रँभा कर मानो कजरी को ही पुकार रही थी .पूरा जंगल , घाटी कजरी के नाम से गूँज रही थी . उधर सूरज ने तेजी से नीचे उतरना शुरु कर दिया . मोहन घुटनों के बल हताश बैठा था .उसे रोना आगया. कजरी के बिना घर कैसे जाए . तब तक एक दो और चरवाहे भी आगए .
“मोहन यहाँ देर तक रुकने से कोई फायदा नहीं . घर चलो .”—एक साथी बोला .
"मैं अपनी गाय को लिये बिना नहीं जाऊँगा ."
"अकेला यहाँ क्या करेगा भाई ? अभी चल . गाँव से कुछ लोगों को साथ लेकर आएंगे उसे ढूँढ़ने."
दूसरे साथी ने समझाया . तब मोहन को भी ध्यान आया कि दूसरों की कई गायें छोटे बछड़ों बछियों की माँएं हैं .उनके बच्चे अपनी-अपनी माँ का इन्तजांर करते होंगे .उनके लिये तो चलना होगा ही.
घर की ओर लौटते मोहन के पाँव नहीं उठ रहे थे .रो रोकर उसकी आँखें घुंघुची की तरह लाल थीं . चेहरे पर घोर उदासी थी . अम्मा को क्या जबाब देगा ? कजरी का सूना खूँटा कैसे देखेगा ?
“आगया बेटा ! क्या बात है ?–माँ ने मोहन को परेशान देख पूछा .
“अम्मा कजरी खोगई .मैं उसे नहीं ढूँढ़ सका .”—यह कहते कहते मोहन रुआँसा होगया . अम्मा उससे कुछ पूछती और बताती उससे पहले ही अन्दर से रँभाने की आवाज आई---“ अम्भांssss….”
यह आवाज सुनकर मोहन की आँखें चमकीं –“अम्मा यह कजरी है?”
अम्मा ने गद्गद होकर जबाब में सिर हिलाया पर मोहन माँ को देखे बिना ही अन्दर भागा और कजरी को सामने पाकर उसके गले से ऐसे जा लिपटा जैसे वर्षों बाद मिली हो .