सर्दी का अन्त हुआ ,आया वसन्त .
लम्बे अब दिन हुए .उजले हैं अनछुए .
धूप नई निखरी है .पात पात बिखरी है .
उत्सव दिगन्त हुआ आया वसन्त.
भोर ने उतारी कुहासे की शाल अब
गुलमोहर मुट्ठी भर लाया गुलाल अब.
वैभव अनन्त हुआ ,आया वसन्त .
पात पात सिन्दूरी वन वन पलाश हुआ
फूली है कचनार जैसे कोई दुआ .
कविता लिखी पन्त , आया वसन्त.
झौर झौर बौर खिला ,पोर पोर रूप मिला
सरसों को वासन्ती , बहुरंगी सेवन्ती .
रूप आभ बेअन्त ,आया वसन्त .
भोर गुनगुनाती सी ,साँझ कुनमुनाती सी ,
कोयलिया तान छेड़ , हवा झनझनाती सी .
अनबन का हुआ अन्त ,आया वसन्त .
रूप का ही राज है , राग रंग साज है
तितली हैं फूल हैं ,फूल के दुकूल हैं .
ऋतुओं का कन्त हुआ आया वसन्त .