सोमवार, 11 अप्रैल 2022

करूँ मैं क्या ?

 पूसी पहुँची पटना जबसे ,

अपने पूरे घर में तबसे ,

है चुहियों का राज,

करूँ अब क्या ?

 

पहले-पहल एक ही आई .

एक और फिर पडी दिखाई .

अब पूरा का पूरा कुनबा ,

दिन भर खेले छुआ-छुलाई .

और कबड्डी रात ,

करूँ अब क्या ?

 

ऊपर -नीचे सरपट दौडें ,

जैसे किसी रेस के घोडे ।

आलू-प्याज पुलाव पकौडे ,

फल भी नहीं अछूते छोडे ।

चिन्दी, कागज, डिब्बी-डिब्बे.

सभी कुतर कर थोडे-थोडे ,

कर डाले बेकार ,

करूँ अब क्या ?

 

पिंजरे को पहचान गई है .

टिकियों को ये जान गईं हैं .

देख सूँघ हिल-मिल जाती हैं

बच कर निकल-निकल जाती हैं .

कितनी खटपट करो डरालो ,

नाली बिल सब बन्द करालो .

कितना छका-थका लेती हैं .

कैसे राह बना लेती हैं .

करती हैं बेहाल ,

करूँ मैं क्या ...

 

करती रहती किट्..किट्..कुट्..कुट् ...

चुभती रहती चीं..चीं..चुक्..चुक्..

मचे रात-दिन धमा-चौकडी

अपनी सारी गई हेकडी

जमीं ठाठ से घर में ऐसे ,

घर इनके पुरखों का जैसे

सोपाते हैं जैसे-तैसे ..,

कैसे-कैसे हाल ...

करूँ अब क्या ?

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