मई-जून है ,भैया सँभलो,
किसी तरह तो बचकर निकलो .
अनचाहे ही आया है जो ,
वह गुस्सैला है .
धूल–पसीना से लगता मैला-मैला है.
लू और तूफानों से भरा हुआ थैला है .
तपती धूप भरे आँखों में.
पानी पीने ,
भर ले
जाने
लाल लाल मटके लाया है
सूरज का कोई अपना है .
बस गर्मी गर्मी जपना है .
जाने कौन दिशा से आ धमका है.
नदी ताल पोखर पर आ बमका है .
छीन हवा से नमी-तरावट.
साँसों को दे दी अकुलाहट .
पानी-पानी मची दुहाई .
देखो इसकी लापरवाही .
रोम रोम से बहा पसीना .
कूलर लगता दीना-हीना .
बकरी भेड़ रँभाती गैया .
सूने पनघट ,ताल-तलैया
सूनी ,आकुल है गौरैया
.
दूर क्षितिज पर धरती हाँफे
पाखर पीपल डर से काँपे .
ठंडक कोई कोना नापे .
सनन् सनन् सन् लू के झौंके
उफ् बे मौके ,कोई रोके .
धूल उड़ाता ,
नमी
चुराता
भूख मिटाता प्यास बढ़ाता
खुल खुल खाँसे ,जलती साँसें
सनकी बूढ़ा ,
करकट-कूड़ा
बचकर निकलो ,
पकड़ बिठा लेगा तुमको
सुलगे अलावपर .
--------------------