बादल भैया ,
अजब-गजब के हैं ये ढंग तुम्हारे ।
कितने रूप बदलते पल में ,
कितने रंग तुम्हारे ।
कुल्फी, सॉफ्टी,आइसक्रीम
तो कभी केक लगते हो
कभी बाल गुड़िया जैसे ही
बड़े 'फेक 'लगते हो ।
कभी हिरण ,खरगोश
कभी काले सफेद गुब्बारे ।
कभी भेड--बकरी जैसे ही
चलते बना कतारें ।
जंगल बाग पहाड़
कभी तो महल-दुमहले न्यारे ।।
भालू बन्दर शेर कभी
लगते हाथी के बच्चे
या बरखा रानी के हो तुम
मटके काले कच्चे ।
छूने से ही फूट पड़ें
फिर छूट पड़ें बौछारें ।।
कभी कपासी और कभी ,
लगते हो तीतरपंखी
कभी सुनहरे लाल कभी
हो जाते हो नारंगी ।
काजल जैसे भी तो तुम
लगते हो हमको प्यारे ।।