सात साल की बिन्नी अपने भाई-बहिनों में सबसे बड़ी थी और
पढ़ने में सबसे होशियार भी पर खेलने में भी उसका कोई मुकाबला नही था .उसे बगीचे
में कचनार के बीज इकट्ठे करना बेहद पसन्द था .उसने अपने खिलौनों में गुड्डे
गुड़ियों और रसोई के बर्तनों के अलावा सुन्दर और चमकीले सीप-शंखों का भण्डार
इकट्ठा कर रखा था .सारे बच्चे बिन्नी जीजी कहते हुए उसके आगे पीछे फिरते थे .लेकिन बिन्नी खुश नही थी क्योंकि उसका छोटा भाई रामेन्द्र यानी रमलू उसके साथ नही था. बल्कि विपक्षी दल की तरह उसका विरोधी था .
बिन्नी से लगभग दो साल छोटा रमलू दुबला-पतला और बड़ा ही
जिद्दी लड़का था .जरा सी बात पर रूठना और तुनकना उसकी आदत थी . वह रोता भी बहुत था
इसलिये अक्सर उसकी नाक बहती थी जिसे वह ऊपर ही सुड़कता रहता था .
बिन्नी से उसका बैर बिल्ली और चूहे जैसा था .और दोनों की
लड़ाई में चूहा बिल्ली पर हमेशा ही भारी रहता था . हर बार , हर बात में . चाहे
खाने-पीने की चीजों का बँटवारा हो , या धक्का-मुक्की और मारपीट का .बिन्नी हमेशा
पीछे रह जाती थी .जैसे कि माँ उनके लिये खीर या सत्तू देती तब रमलू सबसे बड़ा
कटोरा लाकर माँ के सामने रख देता .
“इसे पूरा भरो .”-- रमलू अड़ जाता .
“इतना खा तो पाएगा नही बेटा और जीजी भी तो है न ?”—माँ कहती पर रमलू कहाँ मानता. इसी तरह पिताजी आम
काटते तो रमलू पहले ही कह देता –“ गुठली वाला हिस्सा मैं लूँगा .”
बिन्नी भी वही हिस्सा लेना चाहती थी .माँ समझाती—“ बिन्नी रमलू को ही लेने दे . वह बेवकूफ है इतना भी नही जानता कि गुठली वाला हिस्सा
खट्टा होता है और गूदा भी जितना दिखता है उतना होता नही है सच्ची .”
बात भी यही सही है . पर सवाल मर्जी और जिद था . जो हमेशा रमलू
की ही पूरी होती थी .माँ नानी के घर जातीं या बाबूजी बाजार जाते,तो रमलू ही तैयार होकर आगे आगे चल पड़ता . बिन्नी को हर जगह मन मारकर पीछे हटना पड़ता था .
बिन्नी के पीछे रहने का मतलब यह नही था कि उनमें झगड़ा होता
ही नही था . रमलू पक्का लड़ाकू था .लड़ाई का कोई बहाना नही मिलता तो वह बहाने भी
तैयार कर लेता था . जैसे बिन्नी कहीं बैठकर अपना सबक याद करती तो रमलू उसी जगह
जाकर जोर जोर से पढ़ता—“अ से अनार ..क से ककड़ी ..ब से बिन्नी ...”
“तू कही और जाकर पढ़ ना .मेरे कान पर ही क्यों चिल्ला
रहा है ?”
“मैं तो यहीं बैठूँगा .”
“मैं यहाँ पहले से ही बैठी हूँ .इसलिये जगह मेरी है ”
“ क्यों ,क्या यहाँ तेरा नाम लिखा है ?”
रमलू बड़ी बहन से तू कहकर बात करने लगता . ऐसा नही था कि बिन्नी उसे सबक नही सिखा सकती
थी .कभी कभी ज्यादा गुस्सा आ जाता तो जमकर उसकी धुनाई कर भी देती लेकिन रमलू पिटकर
भी हार नही मानता था और बराबर भिड़ने तैयार रहता था .और फिर वह बड़ी सी धमकी भी दे
डालता था –
“अब मुझसे कहलवा लेना जीजी और बाँध लेना मुझे राखी ..”
तब बिन्नी को लगता कि वह जीत कर भी हार गई है . रमलू उसका
छोटा भाई है . जब वह चलना सीख गया था तब भी कभी कभी रास्ते में बैठ जाता था ताकि
जीजी उसे गोद में ले ले . तब जीजी हुलसकर भाई को गोद में उठाकर कमर पर टिका लेती
थी .चाहे खुद एक तरफ तराजू के भारी पलड़े की तरह झुकजाती थी . अब भी चाहती थी कि
रमलू उसे माने प्यार से जीजी कहे पर उसकी समझ में नही आता कि अपने छोटे जिद्दी भाई को कैसे समझाए .
फरवरी मार्च का महीना था .इस महीने में सर्दी उसी तरह अपने
बोरिया-बिस्तर समेटने लगी थी जिस तरह सर्दी का मौसम जाते ही दुकानदार गर्म कपड़ों
के स्टाक को समेटकर तहखानों में रखने लगते हैं .आम और नीबू के फूल हवा को महकाने
लगे थे . खेतों में गेहूँ, चना,और सरसों की फसल सुनहरी होने लगी थी उसके साथ ही
बेर की कंटीली टहनियों में खटमिट्ठे बेर सुनहरे-लाल होने लगे थे . बिन्नी के घर के
पिछवाड़े एक बेर का पेड़ था जो ऐसे ही सुनहरे लाल और मीठी खुशबू वाले फलों से
लदा-फदा था . फलों के बोझ से इतनी टहनियाँ झुक गयी थीं कि हाथ बढ़ाकर बेर तोड़ लो
.
उस समय बिन्नी बेर तोड़ रही थी . वैसे रमलू को बेर पसन्द
नही हैं पर बिन्नी कोई काम करे और रमलू न करे यह तो हो नही सकता .बस रमलू पेड़ की
ओर छोटे छोटे पत्थर फेंकने लगा .
“रामेन्द्र
पत्थर किसी को लग जाएगा .”--बिन्नी
ने समझाया पर वह अकड़कर बोला—“जिसको
डर लग रहा हो वह यहाँ से भाग जाए .”
और पत्थर के टुकड़े फेंकता रहा . तभी एक बड़ा सा टुकड़ा
बिन्नी के माथे से टकराया वह उईईsss कहती हुई जमीन पर बैठ गई .हथेली से दबाने के बाद भी
माथे पर गूलर जैसा गूमड़ उभर आया .खून भी चिमचिमा रहा था . रमलू की सिट्टी-पिट्टी
गुम .आज बिन्नी नही छोड़ेगी .और बिन्नी कुछ न भी कहे पर पिताजी जरूर हड्डी-पसली एक
कर देंगे .बिन्नी उनकी लाड़ली बेटी है .फिर चोट देखकर तो माँ भी उसकी खूब खिचाई
करेंगी .
रमलू सोच ही रहा था कि माँ हाथ में हरी संटी लेकर तमतमाती
हुई आई .किसी ने वह बात माँ तक पहुँचा दी थी .वैसे भी बिन्नी और रमलू की लड़ाइयों से आसपास सभी परिचित थे .
“आज तेरी सारी अकड़ निकाल देती हूँ . नाक में दम कर
रक्खी है .”--इस वाक्य के साथ ही माँ ने संटी हवा में लहराई और रमलू की पीठ पर जमादी—‘सड़ाक्’ .रमलू बिलबिला उठा .उसे इस तरह बिलबिलाते देख बिन्नी का
कलेजा मुँह की तरफ आने लगा .उठकर माँ का हाथ पकड़ लिया .
“उसे क्यों मारती हो माँ ?”
“आज इसकी तरफदारी मत करना बिन्नी.बहुत सिर चढ़ गया है .जब देखो इसकी कोई न कोई शिकायत मिलती रहती है .”--माँ ने फिर संटी उठाई पर बिन्नी ने रोकते हुए कहा --
“लेकिन अभी उसकी गलती नही है .वह तो मेरी ही फेंकी लकड़ी
लौटकर मेरे माथे से टकरा गई थी सच्ची . अपनी कसम ..”
“ तेरी इस बात पर मुझे जरा भी यकीन नही होता ."
"यकीन करलो माँ .मत मारो , छोड़दो उसे ."--यह कहते कहते बिन्नी रुँआसी होगई .
"तेरे कहने से छोड़ रही हूँ पर कल मत कहना कि ...”
माँ ने संटी फेंककर कहा .माँ चली गई तो बिन्नी ने रमलू को
देखा
वह अभी सुबक रहा था लेकिन उसकी आँखों में अपराध-बोध के
साथ अपने लिये स्नेह और कृतज्ञता का भाव साफ दिखाई दे रहा
था .वह जरा से
संकेत पर आकर उससे लिपट जाने को तैयार
लगता था . बिन्नी ने उसे पास बुलाया तो वह सचमुच जीजी
से लिपटकर रोने लगा .बिन्नी को विश्वास होगया कि उसने
अपने छोटे भाई पर मनचाही जीत हासिल करली है .और इस बार उसका विश्वास सही था .