एक थी सतरंगी .
एक सुबह नरम धूप में
वह अपनी मौज में उड़ती हुई सैर को निकली थी कि उसकी नजर एक पेड़ पर ठहरकर रह गई . वह
कोई ऐसा वैसा पेड़ नहीं था . उसके पत्ते और फूल बोलते थे . जब वसन्त ऋतु आती तो
उसमें फूलों की जगह तो फूल होते ही थे , पत्तों की जगह भी फूल ही होते .उन दिनों
वह पूरी तरह फूलों से ढँका हुआ था . जैसे किसी ने उसे फूलों की चादर ओढ़ा दी हो . पाँच
पंखुड़ियों वाले फूल जिनकी गुलाबी पंखुड़ियों में बैंगनी रंग से सजावट की गई थी , इतने
सुन्दर थे कि देखो तो देखते ही रहो . सतरंगी भी देखती रह गई .
“ वा...ह इतने सारे
और प्यारे फूल तो मैंने कभी नहीं देखे .”---सतरंगी पेड़ के
चारों ओर मँडराती हुई पूछने लगी –--“ओ फूलों से लदे हुए शानदार
पेड़ , इतने सारे फूल किसके लिये सजाए हुए हैं ? “
“किसके
लिये ?” -–पेड़ को ऐसे
सवाल की कल्पना नहीं थी . एक नन्ही खूबसूरत तितली को देख पेड़ को बड़ा दुलार आया
और अनायास ही फूलों लदी टहनी को झुलाते हुए बोला --
“ बेशक तुम्हारे लिये प्यारी
तितली ! और भला किसके लिये ?”
‘”अहा , सचमुच ये सारे
फूल मेरे लिये हैं !” --पेड़ की बात सुनकर सतरंगी खुशी से फूली न समाई .
‘ अब मुझे कहीं और जाने की ज़रूरत नहीं है . एक लम्बा ,सुहाना समय इनके साथ बिता
सकूँगी . खूब बातें करूँगी और मीठा मीठा रस भी मेरा ही होगा .“
और फिर ,कोई और वहां
न आए ,इसके लिये उसने एक तख्ती पर छोटी सी कविता लिखकर एक टहनी पर टाँग दिया .
‘ये
फूल सिर्फ सतरंगी के हैं . कोई इधर नहीं आना .
अगर भूल से भी आए तो
देना होगा ज़ुर्माना ..”
“मेरी
कविता अच्छी है न ?” –उसने खुद से पूछा और खुद ही ज़बाब भी
दिया –-“हाँ बेशक अच्छी है .“
लेकिन फूल किसी कमरे
में तो बन्द थे नहीं ,जो किसी आने के लिये दीवार लाँघनी पड़ती . हवा और धूप की तो
कोई दीवार बनती नहीं है . अगली सुबह जबकि धूप पेड़ों की फुनगियों से नीचे उतर भी न
पाई थी ,दो-तीन काली और छोटी सी चिड़ियाँ टहनियों पर फुदकती
हुई फूलों तक आगईं और गाने लगी –--" चीं चीँ चुक चुक ..चीं
चीं चुक्....कहाँ छुपे थे तुम अब तक ..”
मारे खुशी के उसकी
पूँछ ऊपर--नीचे नाच रही थी . उसके पीछे भन् भन् भन् भन् गाते भौंरे भी आगए और उनकी
आहट पाकर पीछे से कुछ मधुमक्खियाँ भी सन् सन् सन् सनाती हुई आगईं . सतरंगी को बहुत
बुरा लगा कि कैसे कोई बिना पूछे दूसरों की चीज़ को अपनी मान सकता है .यह तो सरासर
गलत है .
“कौन
हो तुम सब ? यहाँ क्यों आए हो ?”
“क्यों आए हो ! यह
सवाल कुछ अजीब नही है नन्ही ?-एक
चिड़िया बोली .
“
फूलों के पास भला कौन नही आना चाहेगा ? फूल किसे अच्छे नहीं
लगते ?”
“ अच्छे
लगते हैं लेकिन ये सारे फूल तो सिर्फ मेरे हैं ?”
“ हें... !” सतरंगी की बात से सब चकित हुए .
“ शायद
तुम लोगों ने बोर्ड पर लिखी मेरी कविता नहीं पढ़ी .”
“ ओ हो
तुम कविता भी लिखती हो ? लेकिन तितली रानी हमें
पढ़ना नहीं आता .”—एक दूसरी चिड़िया बोली तो तितली के तेवर तेज हुए--
“मैं मज़ाक नहीं कर
रही ”
यह सुनकर भौंरा
मुस्कराया---“ हम
मानते है तितली रानी ..रानी नही
..राजकुमारी . हाँ तो राजकुमारी जी , क्या लिखा है
आपने बोर्ड पर ..”
“ असल में हमने वह जरूरी
भी नहीं समझा .” मधुमक्खियाँ कुछ तेजतर्रार थीं सो अकड़कर बोलीं .
“ ओह ,
बहुत बुरी बात है कि तुम्हें पढ़ना नहीं आता ! उससे
भी बुरा यह कि पढ़ना नहीं चाहते ..खैर मैं ही समझा
देती हूँ , कविता का मतलब है कि ये फूल केवल तितली के हैं . कोई और यहाँ न आए . आए
तो जुर्माना भरना पड़ेगा ...
“ अरे !! यह कब हुआ ?”—सब फिर चकित हुए .
“आज ही ..चाहो तो इस
शानदार पेड़ से पूछलो ..”.
सबने पेड़ की पेड़ की
ओर सवालिया नज़रों से देखा . पेड़ क्या कहता . ऐसा उसने तितली से खुद ही कहा था
लेकिन दुलार से मन रखने कही गई बात का नन्ही तितली ऐसा मतलब निकालेगी , उसने भी सोचा
तो नहीं था .
“ऐसा भी कहीं होता है ! ..इस बात को हम नहीं मानने वाली .”–-मधुमक्खियाँ सन्सनाते हुए बोलीं पर तितली अपनी बात पर अटल थी .
पेड़ अब सचमुच उलझन
में था कि किसकी बात माने ,किसकी नहीं . तितली को इस तरह समझाना मुश्किल होगा . काफी
सोच विचारकर पेड़ ने सतरंगी की बात ही रखी . चिड़िया , भौंरों ,मधुमक्खियों को
उसने इशारों में कुछ समझाया फिर सबको सुनाते हुए बोला --
“
मुझे माफ करना दोस्तो ,सच है कि इस बार मैंने सारे फूल नन्ही सतरंगी के नाम कर
दिये हैं .वैसे भी इन दिनों फूलों की कोई कमी नहीं है . आपको यहाँ वहाँ कहीं भी बहुत
सारे फूल मिल जाएंगे . तुम सब वहाँ से जरूरत का पराग ले सकते हो .”
मधुमक्खी पेड़ की
बात ठीक से नहीं समझी . अड़ गई .
“मुझे
यहीं फूल चाहिये ..आने वाले बच्चों के लिये जल्दी जल्दी शहद इकट्टा करना है .”
तब पेड़ ने धीरे से
मधुमक्खी को समझाया—-“प्यारी मधुरानी , सतरंगी ने पहलीबार
फूल देखे हैं . अभी उसे देखने दो .देखना जल्दी ही वह तुम्हें खुद न बुलाए तो कहना .”
सबने पेड़ की बात
मानली और चुपचाप चले गए .सतरंगी खुश होकर फूलों के बीच मँडराने लगी . अब वह थी और
फूल थे .फूल थे और वह थी . कभी इस फूल पर जाए कभी उस फूल से बातें करे .
लेकिन फूल थे
बेशुमार . सब तितली को अपने पास बुलाएं --“सतरंगी यहाँ आओ …नन्ही हमसे बात करो... मेरे पास बहुत सारा पराग रस है...सतरंगी सुनो ना
....प्यारी तितली तुम एक बार भी मेरी तरफ नहीं आईं ..अरे मुझे अनदेखा कर रही हो ...सतरंगी...सतरंगी ...”
चारों तरफ फूलों का
शोर . तितली हैरान . फूल लगातार पुकारे जा रहे थे ---“सतरंगी ..सतरंगी ..
“ ओफ् ओ ..मैं सबके
पास एक साथ नहीं आ सकती ना ! अभी थक भी गई हूँ .
“पर हम तुम्हारा
इन्तज़ार कर रहे हैं...”
“ अरे थोड़ा सब्र रखो
. मैं धीरे धीरे सबके पास आऊँगी .”
“ पर उतना समय नहीं है हमारे पास . हमें जाना होगा !”
“जाना है ! कहाँ जाना है ? क्यों
जाना है ? ”---सतरंगी चौंकी .
“ वहीं , जहाँ से हम आए हैं .क्योंकि हर फूल
को जाना ही होता है एक दिन .
“ फूलों
की बात सही है प्यारी सतरंगी !” पेड़ ने कहा --“ फूलों के साथ जितना समय बिता सकती हो मन भरकर बिता लो , पराग रस ले सकती
हो ले लो . वरना बेकार ही जाएगा .”
“पर
मैं इतना सारा रस अकेली नहीं ले सकती . वह बेकार जाएगा यह तो और भी बुरा होगा ..अब
मैं क्या करूँ ?
”इसका
एक उपाय है मेरे पास . बताऊँगा . फिलहाल मैंने एक कविता लिखी है . सतरंगी तुम सुनना
चाहोगी ?”
“ज़रूर
चाहूँगी .”
तब पेड़ ने अपनी
कविता सुनाई --
“एक दिन दीदी ने पूछा ,
बच्चो ! एक बात बताओ .
यदि भोजन अधिक बना हो ,
लेकिन खाने वाले कम हों तो
तुम क्या करोगे ?
बचे हुए भोजन का बोलो क्या करोगे ?
सड़ जाने , फिक जाने दोगे ?”
“ बच्चे बोले –नहीं नहीं
हम हरगिज वैसा नहीं करेंगे .
जिन्हें ज़रूरत हो ,उनको बाँटेंगे दीदी !
सड़ जाने ,फिक जाने से तो
काम किसी के आजाए ,वह अच्छा होगा .”
इतना कहकर पेड़ रुका . तो आगे तितली ने गाया --
“कविता को अनुमान गई हूँ
अब मुझको क्या करना है .
“यह जान गई हूँ ,मान
गई हूँ .”
कुछ ही देर बाद
सतरंगी के साथ अनेक चिड़ियाँ ,भौंरे ,मधुमक्खियाँ और कई
कीट-पतंगे फूलों पर मँडरा रहे थे पेड़ खुश था , फूल खुश थे और बहुत सारे दोस्तों
के साथ सतरंगी भी खुश थी . .