गर्मी रानी ,क्यों
लगती है ,
तुमको इतनी प्यास ?
पी जाती हो गटक् गटागट,
दिन भर कई गिलास ।
मटके रीते ,रीत
चले हैं ,
कूप ,नदी और ताल ।
इन्हें रोज भरते--भरते ,
धरती नानी बेहाल ।
कभी चाहिये शरबत तुमको ,
कभी शकंजी ,लस्सी
।
आइसक्रीम तो , अरे
बाप रे...,
पूरी..... सत्तर...अस्सी ।
एक न छोड़ी बोतल फ्रिज में,
कोल्ड-ड्रिन्क खल्लास ....
गर्मी रानी क्यों लगती है ,
तुमको इतनी प्यास ।
"क्यों लगती है प्यास ?
न पूछो मुझसे छुटकूलाल ।"
कहते--कहते गर्मी जी का ,
चेहरा होगया लाल ।
"सर्दी ने गुड ,गजक ,बाजरा ,
उड़द
मखानी दाल ,
तिल
की टिक्की गरम मँगौड़े,
परसे
भर-भर थाल ।
मैथी के चटपटे पराँठे ,
और कचौरी खस्ता ।
भजिये ,आलू-बड़े ,समोसे,
सब कुछ कितना सस्ता ।
इतना खाया.... ,इतना
खाया
पिया गया ना पानी
अब लगती है प्यास ,तभी
तो ,...
पानी ,..पानी...,पानी....
और ..और ..बस पानी