“आज सुबह
था मुनमुन जी का ;
पहला-पहला पेपर
पहुँच गई स्कूल हुलस,
सबसे पहले बनठन कर .
पेपर करके घर आई ,
दीदी पर रौब जमाया .
फिर ऊधम खूब मचाया .
चाचा बोले—“ ओ मुनमुन जी !
जरा दिखाओ पेपर .
देखूं तो दस में से कितनों के ,
सही लिखे हैं उत्तर .
“क्या देखोगे
चाचा ! मैं
लिख आई सबके उत्तर .”
“अच्छा ?? देखूं तो , लिख आई
पहले का क्या उत्तर
.”
पहला ही बस छूट
गया ,
बाकी सारे लिख
आई .
“और दूसरा ?”
“जाने कैसे इसे भूल ही आई .”
“चलो ,
तीसरा ?”
“इसे
छोड़ बाकी सारे आते थे .”
“चौथे का क्या.. ?”
“चाचा ! बच्चे शोर मचाते थे .”
“और पांचवां ,छठवां ?”
सिर खुजलाती
मुनमुन बोली ,
चाचाजी मुस्काए
.
गोलमाल सातवाँ
, आठवाँ
छूटा कहीं
भटककर .
“और पूछलो जो भी चाहो ,
केवल नवां
गटककर .”
“दसवां तो कर आई होगी .”
हंसकर बोला
बंटी .
“लिखने ही वाली थी ,तबतक
बज गई टन टन घंटी .”
बज गई टन टन घंटी .”