सुनो-सुनो ओ मच्छर जी !
हो तुम कितने निष्ठुर जी !
बातों-बातों में ही तुमने
मारे डंक बहत्तर जी ।
नन्हे नाजुक लगते हो,
पर दिल के पूरे पत्थर जी ।
दया-धरम का पाठ पढे ना
हो तुम निपट निरक्षर जी ।
पढने दो ना लिखने दो
ना कहीं चैन से सोने दो ।
करके रखा नाक में दम
यह ठीक नहीं है मिस्टर जी ।
कछुआ -वछुआ मार्टिन-आर्टिन
सब उपाय बेकार हुए
मच्छरदानी में भी घुस आते हो
कितने मट्ठर जी !
हमें जरा समझाओ, अपनी
अकल खारही चक्कर जी
क्या मिलता है तुम्हें खून में
घुली हुई क्या शक्कर जी ?
हो तुम कितने निष्ठुर जी !
बातों-बातों में ही तुमने
मारे डंक बहत्तर जी ।
नन्हे नाजुक लगते हो,
पर दिल के पूरे पत्थर जी ।
दया-धरम का पाठ पढे ना
हो तुम निपट निरक्षर जी ।
पढने दो ना लिखने दो
ना कहीं चैन से सोने दो ।
करके रखा नाक में दम
यह ठीक नहीं है मिस्टर जी ।
कछुआ -वछुआ मार्टिन-आर्टिन
सब उपाय बेकार हुए
मच्छरदानी में भी घुस आते हो
कितने मट्ठर जी !
हमें जरा समझाओ, अपनी
अकल खारही चक्कर जी
क्या मिलता है तुम्हें खून में
घुली हुई क्या शक्कर जी ?